कुछ माननीयों ने दिखाई दरियादिली, एक जनप्रतिनिधि की घोषणा का शहर को इंतजार Amroha News
साहब हमेशा खामोश रहते हैं। संकट की घड़ी में भी मौन मगर जादू ऐसा है कि माननीय हों या हाकिम उनके खिलाफ कभी बोलता कोई नहीं है।
अमरोहा (अनिल अवस्थी)। माननीयों की दरियादिली अब दिखाई दे रही है। कुछ थोड़ा लेट हो गए, उन्हें शायद दूसरों पर भारी पडऩे की ललक थी, इसीलिए घोषणाओं का इंतजार करते रहे। एक जनप्रतिनिधि ने अपनी निधि से दस लाख दिए तो दूसरे ने 11 लाख की घोषणा कर दी। इस पर सलामी बल्लेबाज रहे मंत्री ने छक्का जड़ दिया। निधि से 20 लाख देने के अलावा एक माह का वेतन भी दे डाला। इसके बाद तो पिछले वाले एक बड़े माननीय से भी नहीं रहा गया। उनके पास सरकारी निधि तो थी नहीं, खुद की तिजोरी खोल दी, 16 लाख दे दिए। इसके बाद मौजूदा भी मैदान में गए। निधि से 51 लाख की चेक काट दी। अब एक जनप्रतिनिधि पिता अपने जनप्रतिनिधि पुत्र के साथ बचे हैं। इन पर अब सभी की नजर है। वैसे दोनों अब पीछे कैसे रह सकते हैं। राजनीतिक गलियों में उनकी दरियादिली का इंतजार हो रहा है।
रसद वाले मौनी बाबा
देश कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है। ऐसे में हर किसी की ङ्क्षचता खानपान व्यवस्था बनाए रखने की। बेचारा गरीब तो सरकारी राशन की बाट जोहता है। इसके चलते खाद्य व रसद मुहैया कराने वाले महकमे से उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं। मगर यहां के बड़े साहब मौनी बाबा के नाम से जाने जाते हैं। कभी कुछ बोलते ही नहीं। अगर किसी ने ज्यादा टोका तो साफ बोल देते हैं, ट्रांसफर करा दो, हम तो पहले ही प्रार्थनापत्र दे चुके हैं। मुखिया जब यहां आए थे तो यह साहब उनकी निगाहों में चढ़ गए थे, मगर सितारे अच्छे थे। चेतावनी से ही जान छूट गई। तब से आज तक डटे हैं। राशनकार्ड से लेकर वितरण तक कई घोटाले हो चुके हैं।
रुक फोटो क्लिक होने दो
बड़ी गाड़ी से उतरे हैं, कपड़े बताते हैं कि धन्नासेठ हैं। हाथ में कुछ पैकेट हैं। नजरें मुंशी प्रेमचंद के नायक होरीनुमा गरीब तलाश रही हैं। तभी एक नजर आ जाता है। गंदे कपड़े, सिकुड़ा पेट, धंसी आंखें उसकी तंगहाली बयां करती है। सेठ की फौज दौड़कर घेर लेती है। लेने वाला बेचारा एक, देने वाले अनेक। सेठजी की फीङ्क्षलग दानवीर कर्ण जैसी है। लेने वाला जैसे ही पैकेट पकड़ता है, खाने से पहले डांट खा जाता है, ...रुको, पहले फोटो क्लिक होने दो। वह सहम जाता है, कई एंगल से फोटो ङ्क्षखचते हैं, तब पैकेट मिलता है। कोरोना के संकट में ये नजारे आम हैं। संकट में असली मददगार योद्धा और भी हैं, मगर वह परदे के पीछे हैं। कुछ बेहतर करके नाम कमाने की इच्छा ठीक है, पर मदद के पैकेट पर अपना नाम व फोटो छपवाना ठीक नहीं। परिस्थितियों के मारे खुद्दार के जज्बातों का ख्याल जरूरी है।
मुफ्त में खाने के शौकीन
लॉकडाउन में कोरोना संक्रमण से जनता दहशत में। मगर कुछ ऐसे भी हैं जो इसमें भी मौज लेने से पीछे नहीं हैं। इनके घर में ऊपर वाले का दिया सब कुछ है, पर मुफ्त खाने के बहुत शौकीन हैं। इनकी यही खासियत इन्हें लॉकडाउन में भी सड़क तक खींच लाती है। हालांकि आत्मरक्षा को पूरे चौकस हैं, डॉक्टर का पर्चा साथ रखते हैं। रोके जाते हैं तो झट से पुलिसवालों को दिखाकर बीमार बन जाते हैं। इसके बाद जरूरतमंदों के लिए मुफ्त में बांटे जा रहे लंच पैकेट को बटोर कर लाते हैं। हालांकि पैकेट लेने में मेहनत खूब कर रहे हैं। बहादुर हैं तभी तो लॉकडाउन में भी रिस्क ले रहे हैं। किचन से फुर्सत करा दी, इसलिए घरवाली भी खुश है। हालांकि कुछ पहचान लिए गए हैं। इसलिए अधिकारी खाना वितरण करने वालों को इनसे बचने का मशविरा देने लगे हैं। इससे बेचारे थोड़ा तनाव में हैं।