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शाहे आलम ने घर-घर जाकर फैलाया तालीम का उजियारा Moradabad News

जज्बा देशप्रेम और समाज सेवा। बदलाव की बयार के लिए इस युवा की एक छोटी सी शुरुआत ने आज बड़ी लकीर खींच दी है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Mon, 03 Feb 2020 09:59 AM (IST)Updated: Mon, 03 Feb 2020 06:30 PM (IST)
शाहे आलम ने घर-घर जाकर फैलाया तालीम का उजियारा Moradabad News
शाहे आलम ने घर-घर जाकर फैलाया तालीम का उजियारा Moradabad News

अनुज मिश्र, मुरादाबाद। नाम शाहे आलम। उम्र 23 वर्ष। जज्बा देशप्रेम और समाज सेवा। बदलाव की बयार के लिए इस युवा की एक छोटी सी शुरुआत ने आज बड़ी लकीर खींच दी है। युवा के प्रयास से आज मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले सम्भल के मोहिउद्दीनपुर गांव से अशिक्षा का दाग मिट गया है। उन्होंने घर-घर जाकर शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि आज गांव के बच्चे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।ऐसे शख्स का नाम शाहे आलम। सम्भल के मोहिउद्दीनपुर गांव के रहने वाले शाहे आलम हिंदू कॉलेज की 24वीं एनसीसी बटालियन के वर्ष 2017 में अंडर ऑफिसर रह चुके हैं। शाहे आलम के प्रयास से आज गांव के जिन बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया था, वह स्कूल जाने लगे हैं। यही नहीं अभिभावक भी अब बच्चों को शिक्षित कराने के लिए आगे आ रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण में भी बच्चे बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।

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एनसीसी से मिली प्रेरणा: शाहे आलम कहते हैं कि देश और समाज के लिए कुछ कर सकूं, इसके लिए एनसीसी ज्वाइन किया। एनसीसी की ट्रेनिंग में हमेशा सिखाया गया कि देश प्रथम है। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम समाज के लिए भी कुछ बेहतर करें। तब से संकल्प ले लिया था कि समाज के लिए कुछ करूंगा। लिहाजा, समाजसेवा में जुट गया। समाजसेवा के साथ शाहे आलम सेना में जाने के लिए तैयारी में जुटे हुए हैं।

मिल चुके हैं 16 मेडल 

शाहे आलम को उनके कार्यो के लिए अब तक 16 मेडल मिल चुके हैं। राज्यपाल पुरस्कार के लिए उनका नाम शासन को भेजा जा चुका है, यही नहीं प्रधानमंत्री से मिलाने के लिए भी एनसीसी की ओर से शाहे आलम का नाम भेजा गया है।

मंदिर और मस्जिद से एलान करा शिक्षा का महत्व बताया

यह कार्य इतना आसान नहीं था। शुरुआत में लोगों तक पहुंचना शाहे आलम के लिए आसान न था। लिहाजा, शाहे आलम ने मंदिर और मस्जिद का रुख किया। वहां से एलान करा कर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया। बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद के पास भेजने के लिए कहा। जिसके बाद शाहे आलम का रास्ता आसान होता गया, लोग खुद-बा-खुद शाहे आलम से जुड़ते गए।


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