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Terrorist Attack: 15 साल पहले रामपुर में बलिदान हुए थे सात जवान, जख्म आज भी ताजा, क्या हुआ था 31 दिसंबर की रात?

Rampur CRPF Camp Terrorist Attack सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर 31 दिसंबर 2007 की रात ढाई बजे आतंकियों ने हमला कर दिया था। आतंकी दिल्ली-लखनऊ मार्ग स्थित सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर के गेट नंबर एक से अंदर घुसे थे। यहां गेट से पहले रेलवे क्रासिंग भी है।

By Vivek BajpaiEdited By: Published: Fri, 23 Sep 2022 05:26 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 05:26 PM (IST)
Terrorist Attack: 15 साल पहले रामपुर में बलिदान हुए थे सात जवान, जख्म आज भी ताजा, क्या हुआ था 31 दिसंबर की रात?
Rampur CRPF Camp Terrorist Attack: रामपुर सीआरपीएफ कैंप हुए आतंकी हमले के दोषी। जागरण आर्काइव

रामपुर, जागरण संवाददाता। Rampur CRPF Camp Terrorist Attack: रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले के 15 साल बीत चुके हैं लेकिन, रामपुर वासियों के जेहन में उसके जख्‍म अब भी ताजा हैं। 31 दिसंबर 2007 के देर रात हुए हमले में सात जवान बलिदान हो गए थे, वहीं एक नागरिक की भी मौत हो गई थी। एक जनवरी 2008 को नए साल के जश्‍न के दिन पूरा देश शोक में डूब गया था। इस हमले के 12 साल बाद 2 नवंबर 2019 को रामपुर की अदालत ने हमले के दोषियों को सजा सुनाई थी। जिसमें दो पाकिस्‍तानी आतंकियों समेत चार को फांसी, एक को उम्र कैद, एक को दस वर्ष का कारावास दिया था। वहीं दो आरोपितों को साक्ष्‍य के अभाव में बरी कर दिया गया था।

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सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर पर 31 दिसंबर 2007 की रात ढाई बजे आतंकियों ने हमला कर दिया था। आतंकी दिल्ली-लखनऊ मार्ग स्थित सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर के गेट नंबर एक से अंदर घुसे थे। यहां गेट से पहले रेलवे क्रासिंग भी है। आतंकियों ने गेट पर मौजूद जवानों पर गोलियां बरसाईं और हैंड ग्रेनेड भी फेंके। इसके बाद आतंकी एके-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाते हुए सीआरपीएफ केंद्र के परिसर में काफी अंदर तक चले गए थे।

इस हमले में सीआरपीएफ के सात जवान बलिदान हो गए थे। वहीं सीआरपीएफ कैंप के गेट के बाहर अपने रिक्शा पर सो रहे चालक की भी मौत हो गई थी। पुलिस ने हमले में आठ आरोपिातें पीओके का इमरान शहजाद, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का मुहम्मद फारुख, बिहार का सबाउद्दीन उर्फ सहाबुद्दीन, मुंबई गोरे गांव का फहीम अंसारी, उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ का मुहम्मद कौसर, जिला बरेली के थाना बहेड़ी का गुलाब खांं, मुरादाबाद के ग्राम मिलक कामरू का जंग बहादुर बाबा और रामपुर का मुहम्मद शरीफ को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। इन्‍हें लखनऊ और बरेली की जेलों में बंद किया गया था।

आतंकी हमले के अभियोग में 38 की गवाही हुई, जबकि फहीम अंसारी पर अलग से चलाए गए फर्जी पासपोर्ट और पिस्टल बरामदगी मामले में भी 17 की गवाही हुई। 19 अक्टूबर 2019 को अभियोग में बहस पूरी हो गई थी और 2 नवंबर 2019 अदालत ने सजा सुनाई। अदालत ने पाकिस्‍तानी नागरिक इमरान और मुहम्मद फारुख समेत बिहार के सबाउद्दीन सबा, रामपुर के शरीफ उर्फ सुहेल को फांसी की सजा सुनाई थी।

मुरादाबाद में मूंढापांडे के जंग बहादुर को आजीवन कारावास और मुंबई के फहीम अंसारी को दस साल की सजा सुनाई गई। फहीम को फर्जी दस्‍तावेज बनाने में सजा मिली, उसे हमले का दोषी नहीं माना गया। साक्ष्‍यों के अभाव में बरेली के गुलाब खां और प्रतापगढ़ के कौसर खां को दोष मुक्त कर दिया गया था। हालांकि, सजा पाए दोषियों ने उच्‍च न्‍यायालय में अपील की है। 

आतंकियों के मुकदमे वापस लेना चाहती थी अखिलेश सरकार

2012 में अखिलेश यादव की सरकार बनने के बाद आतंकियों पर दर्ज मुकदमों की वापसी के लिए पत्राचार हुआ था। तत्कालीन सपा सरकार ने प्रशासन से रिपोर्ट मांगी थी। प्रशासन ने कोर्ट में ट्रायल चलने का हवाला देकर मुकदमा वापसी की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में कठिनाई बताई थी। इसके बाद अखिलेश सरकार पीछे हट गई थी वरना सात जवानों का बलिदान राजनीति की भेंट चढ़ जाता। 


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