गर्भवती महिलाओं को है अगर मिर्गी की बीमारी तो नवजात को भी हो सकती है
मिर्गी की बीमारी 50 से ज्यादा उम्र के लोगों की बजाय अब बच्चों में भी हो रही है।
मुरादाबाद : मिर्गी की बीमारी 50 से ज्यादा उम्र के लोगों की बजाय अब बच्चों में भी हो रही है। गर्भवती महिलाओं को अगर ये बीमारी है तो उनके बच्चों पर भी इसका असर पड़ेगा। गर्भवती महिलाओं में लक्षण पहचानने के साथ ही उनका इलाज भी जरूरी है। तीन से पांच साल में मिर्गी रोग पूरी तरह समाप्त हो सकता है। गर्भवती महिला को अगर मिर्गी का दौरा पड़ गया तो मां-बच्चे की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। गर्भ ठहरने के 12 सप्ताह में जांच कराने पर गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। जन्म से ही थी त्वचा लाल नजीबाबाद के रहने वाले मयंक चौहान की छह माह की बेटी रूही चौहान की त्वचा जन्म से ही लाल थी। दिखाने के बाद भी इलाज नहीं हो पाया तो वे मुरादाबाद सिविल लाइन स्थित डीएमआर अस्पताल में न्यूरोफिजिशियन डॉ. मंजेश राठी के पास ले गए। चिकित्सक को न्यूरोक्यूटेनिस सिंड्रोम मिला। उसका इलाज शुरू किया गया। पैदा होने के डेढ़ माह में ही पड़ा मिर्गी का दौरा सम्भल रोड के रहने वाले सुहैल अहमद की नौ माह की बेटी अलीजा फातिमा को पैदा होने के डेढ़ माह में ही मिर्गी का दौरा पड़ गया था। वो जन्म के बाद रोई नहीं थी। यानी दिमाग की ऑक्सीजन कम थी। इस वजह से उसे दिमागी बीमारी हुई और उसे दौरे पड़ने लगे। डीएमआर नर्सिग होम में परीक्षण के बाद उसका इलाज शुरू हुआ, अब वह पहले से बेहतर है। जन्म से 28 दिन तक बच्चों को रहता है न्यूनेटल मिर्गी का खतरा न्यूरोफिजिशियन डॉ. मंजेश राठी का कहना है कि जन्म से 28 दिन तक बच्चों को न्यूनेटल मिर्गी का खतरा रहता है। समय से इलाज नहीं हो पाया तो बच्चे बोल और चल नहीं पाते हैं। गर्भवती महिलाओं में परिवर्तन देखें तो एक बार न्यूरोफिजिशियन को भी दिखाएं। इससे बीमारी का पता चल जाएगा। साठ साल की उम्र में दौरा पड़ने पर हो सकता है दिमाग में ट्यूमर
न्यूरोफिजिशियन डॉ. मोनित अग्रवाल कहते हैं कि साठ साल की उम्र में अगर किसी को मिर्गी का दौरा पड़ता है तो उसके दिमाग में ट्यूमर भी हो सकता है। ये गंभीर बात है। लक्षण पहचानने के बाद दिमाग के चिकित्सक को दिखाएं। इसमें लापरवाही न बरतें। झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें।
गर्भवती महिलाओं में मिर्गी के लक्षण - शरीर में सूजन
- बीपी हाई होना
- सिरदर्द बना रहना
- आंखों की रोशनी में बदलाव
- पेशाब में प्रोटीन होना
- उल्टियां
- दौरे पड़ना इन बातों पर दें ध्यान - तनाव, चिंता या अन्य भावनात्मक मुद्दों के साथ निपटना।
- अल्कोहल या नशीली दवाओं का अत्यधिक सेवन या शराब व नशीली दवाओं को छोड़ने की प्रक्रिया।
- नींद के कार्यक्रम में परिवर्तन या पर्याप्त एवं अच्छी नींद लेना।