फोटो खिंचने की शर्म के मारे भूखे पेट सोने को मजबूर गरीब Amroha News
फोटो से बचने को भूखे पेट भी नहीं ले रहे खाने के पैकेट। कई जगह इस बात को लेकर हो चुकी है आलोचना। सहायता तो लोग देते हैं लेकिन फोटो वायरल कर गरीबों का मजाक भी बनाते हैं।
हसनपुर (राशिद चौधरी)। खुद्दार मेरे शहर का फाके से रह गया, राशन तो बहुत था मगर फोटो से डर गया। किसी शायर का यह शेर लॉकडाउन के इन दिनों में यहां सटीक बैठ रहा है। गरीब वर्ग के लोग तो बेझिझक प्रशासन तथा समाजसेवियों के साथ फोटो ङ्क्षखचाकर राशन एवं खाने के पैकेट ले रहे हैं लेकिन, खुद्दार लोग फोटो खिंचने की शर्म के मारे भूखे पेट सोने को मजबूर हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर 21 दिन का देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। 25 मार्च से अपना कामकाज बंद कर सभी लोग घरों में रहकर इसका पालन कर रहे हैं। सरकार तथा प्रशासन की गरीब लोगों पर पूरी नजर है। दिहाड़ी मजदूर एवं अन्य गरीबों के खाते में जहां सरकार ने धनराशि डाल दी है। वहीं कोटेदारों से उन्हें राशन भी भरपूर दिलाया जा रहा है।
सरकार ने अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दे रखे हैं कि कोई भी गरीब भूखे पेट न सोए। लिहाजा प्रशासन ने समाजसेवियों की मदद से कम्युनिटी किचन खोल रखे हैं। खाना गरीबों में बांटा जा रहा है। इसके अलावा सूखी खाद्य सामग्री भी प्रशासन तथा समाजसेवी संगठनों द्वारा गरीबों को बांटी जा रही है लेकिन, प्रशासन तथा समाजसेवी लोग खाने एवं खाद्य सामग्री का पैकेट देते समय फोटो खींच रहे हैं। ऐसे में खुद्दार मध्यम वर्गीय लोग इससे समाज में प्रतिष्ठा गिरने के डर से भूखे पेट होते हुए भी न तो खाने के पैकेट को हाथ लगा रहे हैं और न ही उनके घरों तक राशन पहुंच रहा है। राजनीतिक लोग जहां सियासत के तौर पर गरीबों को खाद्य सामग्री देते हुए फोटो ङ्क्षखचवा रहे हैं, वहीं प्रशासन को सरकार को दिखाने के लिए फोटो वेबसाइट पर डालने पड़ते हैं।
गरीब लोगों को हर संभव खाद्य सामग्री एवं राशन के साथ ही तैयार खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं। पैकेट देते हुए फोटो खींचकर डालना पड़ता है। इसलिए सामान देते हुए पात्र के साथ फोटो ङ्क्षखचवाना हमारी मजबूरी है।
विजय शंकर, उपजिलाधिकारी, हसनपुर।