खिलाड़ियों को मूलभूत सुविधाएं तक मयस्सर नहीं, कैसे बनें हॉकी के जादूगर Moradabad news
विश्व स्तरीय खिलाड़ी तैयार करने की बात होती है लेकिन हकीकत इससे जुदा है। खेल दिवस बीतते ही सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।
मुरादाबाद। आज राष्ट्रीय खेल दिवस है, यानी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन। हर बार इस दिवस के आने पर सरकारें बड़े-बड़े दावे करती हैं। विश्व स्तरीय खिलाड़ी तैयार करने की बात होती है, लेकिन हकीकत इससे जुदा है। खेल दिवस बीतते ही सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।
मुरादाबाद के सोनकपुर स्टेडियम की ही बात करें तो मंडल मुख्यालय होने के बाद भी यहां सुविधाओं का टोटा है। यहां खेले जाने वाले 13 खेलों में सिर्फ छह खेल ही ऐसे हैं, जिसके कोच उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं इन सबके बीच यह प्रदेश का इकलौता मंडल मुख्यालय का स्टेडियम भी है जहां न तो तरणताल है न ही खिलाडिय़ों के रहने के लिए हॉस्टल।
बदहाली से जूझ रहा राष्ट्रीय खेल
हॉकी को न केवल मेजर ध्यानचंद के नाम से जाना जाता है, बल्कि यह हमारा राष्ट्रीय खेल भी है। इसके बावजूद यह खेल बदहाली के दौर से गुजर रहा है। खिलाड़ी घास के मैदान पर प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं जबकि वर्तमान में होने वाली सभी अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं एस्ट्रोटर्फ मैदान पर ही हो रही हैं। खिलाड़ी घरेलू मैचों और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं तक सीमित रह जाते हैं।
घट गई खेल प्रशिक्षकों की संख्या
सरकार स्टेडियम की सुविधाएं बढ़ाने के बजाए लगातार घटा रही है। आंकड़ों को देखें तो यहां पर फरवरी में 13 खेल प्रशिक्षक हुआ करते थे। संविदा कोच का अनुबंध खत्म होने के बाद यहां क्रीड़ा अधिकारी और उप क्रीड़ाधिकारी को मिलाकर कुल छह खेल प्रशिक्षक बचे हैं।
सात खेलों के नहीं हैं कोच
सोनकपुर स्टेडियम में वर्तमान में कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट, हॉकी, एथलेटिक्स, फुटबाल, हैंडबाल, बॉक्सिंग, कुश्ती, वॉलीबाल, बास्केट बाल, बैडमिंटन और जूडो खेला जाता है। जबकि यहां पर सिर्फ हाकी, एथलेटिक्स, वॉलीबाल, बैडमिंटन, बॉक्सिंग और जूडो के ही कोच रह गए हैं।
छोटे से खेल मैदान पर होती हैं प्रतियोगिताएं
मंडल मुख्यालय का स्टेडियम होने के बाद भी यहां पर खेल का मैदान काफी छोटा है। आलम यह है कि कई बार एक साथ खेल प्रतियोगिताएं होने पर खिलाडिय़ों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। हॉकी और अन्य खेलों के समय बदलने तक पड़ जाते हैं।
अपने दम पर चमकाया नाम
मंडल का खेलों में दबदबा कम नहीं है लेकिन, जिन खिलाडिय़ों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, उन्होंने अपने बल पर ही कर दिखाया है। इनमें पीयूष चावला, मुहम्मद शमी, शिवा, आर्यन जुयाल जैसे क्रिकेटर हैं तो कबड्डी में राहुल चौधरी, एथलेटिक्स में युनूस खान जैसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर अलग मुकाम हासिल किया।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
उप जिला क्रीड़ाधिकारी रंजीत राज का कहना है कि हमने अपनी तरफ से कई बार प्रस्ताव बनाकर भेजा है। इसके बावजूद कोशिश रहती है कि यहां प्रैक्टिस करने वाले खिलाडिय़ों बेहतर कर सकें।
क्या कहते हैं खिलाड़ी
खिलाड़ी आदेश कुमार ने कहा कि हम भी बेहतर प्रदर्शन करके मेडल लाना चाहते हैं और इसके लिए मेहनत भी करते हैं, लेकिन कई बार सुविधाएं न होने के कारण चूक जाते हैं। रिहान का कहना है कि स्टेडियम में एक तरणताल और हॉस्टल तो होना ही चाहिए। सभी मंडल स्तर के स्टेडियम में यह है, लेकिन यहां के खिलाडिय़ों को सुविधा क्यों नहीं मिलती। हॉकी खिलाड़ी विशाल दिवाकर ने कहा कि हॉकी के सभी मैच एस्ट्रोटर्फ पर होते हैं लेकिन, यहां पर घास के मैदान पर ही प्रैक्टिस करनी पड़ती है। इससे बड़े मैचों में दिक्कत होती ही है।