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कॉपी-किताबों की महंगाई से अभिभावकों की जेब लड़खड़ाई

अप्रैल के महीने में अभिभावकों को हर तरफ खर्च नजर आ रहे हैं। स्कूल की फीस से लेकर कॉपी-किताबों की महंगाई ने घर का बजट बिगाड़ दिया है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 01:38 AM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 10:12 AM (IST)
कॉपी-किताबों की महंगाई से अभिभावकों की जेब लड़खड़ाई
कॉपी-किताबों की महंगाई से अभिभावकों की जेब लड़खड़ाई

मुरादाबाद(तेजप्रकाश सैनी)। अप्रैल के महीने में अभिभावकों को हर तरफ खर्च नजर आ रहे हैं। स्कूल की फीस से लेकर कॉपी-किताबों की महंगाई ने घर का बजट बिगाड़ दिया है। कभी किसी पार्टी के एजेंडे में सस्ती शिक्षा दिलाने की बात शामिल नहीं हुई। जबकि देश के विकास की पहली सीढ़ी शिक्षा ही है। कॉपी-किताबों पर बढ़ी महंगाई के कारण अभिभावकों की जेब लड़खड़ा गई है।

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अप्रैल माह में एक बच्चे की कॉपी-किताब खरीदने के लिए 13,000 से 15,000 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। अगर दो बच्चे हैं तो एक मध्यम परिवार के मुखिया की पूरी पगार कम पड़ रही है। पढ़ाई पर महंगाई की पड़ताल की गई तो जीएसटी और चीन इसके लिए जिम्मेदार हैं। किताब जीएसटी से मुक्त हैं, लेकिन प्रिंटिंग में इस्तेमाल कागज व इंक पर भारी भरकम जीएसटी के कारण पिछले दरवाजे से किताबों- कापियों पर महंगाई बढ़ी है। कागज पर 12 फीसद व इंक पर 18 फीसद जीएसटी है जबकि दो साल पहले पांच फीसद वैट लगता था, जिससे इतनी महंगी किताबें नहीं होती थीं। अबकी बार किताबें 15 फीसद व कापियां 10 फीसद तक की महंगी होने से अभिभावकों की कमर टूट गई है। इस साल से चीन को कागज निर्यात करने से कागज महंगा हो गया है। क्योंकि चीन ने अपने देश में प्रदूषण की समस्या के चलते कागज की फैक्ट्री बंद कर दी है। जिससे कागज तीन महीने में 25 फीसद और महंगा हो गया है।

एनसीईआरटी की किताबें सस्ती, निजी प्रकाशकों की महंगी

एनसीईआरटी व निजी प्रकाशकों की किताबों के दामों में धरती आसमान का अंतर है। कारण निजी प्रकाशक स्कूलों से साठगांठ करके किताबें पाठ्यक्रम में शामिल कराते हैं, जिससे स्कूलों को मोटा कमीशन मिलता है। अब जिन दुकानों पर इन प्रकाशकों की किताबें होंगी उनसे भी स्कूलों का कमीशन तय है। यही कारण है कि निजी किताबों के दामों में अंतर होता है। एनसीईआरटी की किताबों पर मात्र पांच फीसद दाम बढ़े हैं, जबकि निजी किताब अगर 300 रुपये की है तो 15 फीसद के हिसाब से 45 रुपये की बढ़ोतरी एक साल में हुई है।

एक साल में कापी-किताब पर महंगाई

पेज पहले इस साल रुपये

172 40 48 132 (प्रैक्टिकल) 70 80

120 30 38

140(रजिस्टर) 42 50

एनसीईआरटी की 8वीं तक की किताबों के दाम

विषय पहले अब

गणित 55 60

विज्ञान 55 60

ङ्क्षहदी 55 60

संस्कृत 50 55

अंग्रेजी 55 60

अंग्रेजी स्कूलों में प्राइमरी कक्षा का खर्च

किताबें 4000

फीस 1200

वार्षिक शुल्क 3000

कंप्यूटर लैब 800

यूनिफार्म 600

ट्रांसपोर्ट 1200

जूते 300

मोजे 50

बोतल 250

बैग 500

लंच बॉक्स 150

अन्य खर्च 1000

कुल 13,050

आरटीई नहीं बनी गरीबों का सहारा

आरटीई में जितने पंजीयन होते हैं उतने प्रवेश नहीं हो रहे हैं। पिछले साल 4,000 पंजीयन जिले में आरटीई के तहत प्रवेश के लिए हुए थे, लेकिन प्रवेश दो हजार बच्चों के हुए। पब्लिक स्कूलों में 25 फीसद के हिसाब से आरटीई में प्रवेश नहीं हो रहे। जिससे इस कानून का पालन सरकारें नहीं करा पा रही हैं। इसमें सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

कागज व इंक पर है जीएसटी

भले ही किताबें जीएसटी से मुक्त हैं, लेकिन कागज व इंक पर जीएसटी बहुत लगाया है। इसका असर अप्रत्यक्ष रूप से किताबों पर महंगाई के रूप में पड़ा है। चीन को कागज निर्यात करने से तीन महीने में कागज के दाम 25 फीसद बढ़े हैं।

-सुनील अरोरा, पुस्तक विक्रेता, गांधी नगर।

निर्यात से बढ़ी है डिमांड

चीन को कागज निर्यात करने से डिमांड बढ़ी है, जिसका असर अपने देश में पड़ा है। 15 फीसद तक किताबें इस बार महंगी हुई हैं जबकि एनसीईआरटी की आठवीं तक की किताबों पर पांच रुपये वृद्धि हुई है।

-संतोष किंगर, पुस्तक विक्रेता, टाउन हाल।

पांच रुपये की हुई है वृद्धि

एनसीईआरटी की किताबों पर पांच रुपये की वृद्धि हुई है, जो बहुत ज्यादा नहीं है। एनसीईआरटी में दो तीन विषयों को छोड़कर सभी विषयों की किताबें बाजार में उपलब्ध हैं।

अशोक अरोरा, पुस्तक विक्रेता, चौमुखा पुल

चुनाव में पढ़ाई की महंगाई का मुद्दा बनना चाहिए। हर साल कोर्स के नाम पर पाठयक्रम बदल दिया जाता है।

तरुण गोस्वामी, अभिभावक।

मेरी बेटी की किताब और कॉपी 4000 रुपये की हैं। सस्ती शिक्षा का मुद्दा कोई राजनीतिक दल नहीं उठाता।

जावेद, अभिभावक

कोर्स बदलने के कारण परिवार में छोटा बड़े की किताबें इस्तेमाल नहीं कर सकता। यह कैसी शिक्षा प्रणाली है।

नीतू मेहरोत्रा, अभिभावक

शिक्षा व्यवस्था के लिए जो कानून बने हैं उससे अभिभावकों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है।

संजू गुप्ता, अभिभावक 


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