अब शरई अदालत में नहीं पहुंच रहे तीन तलाक के केस, जानिए क्या है वजह
अपर पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार सिंह का कहना है कि जिले में तीन तलाक के 84 मामले दर्ज हुए हैं। आरोपितों को गिरफ्तार करने के साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है।
रामपुर (मुस्लेमीन )। तीन तलाक की रोकथाम के लिए कानून बने एक साल हो गया है। मुस्लिम समाज में इसका असर भी नजर आ रहा है। अब पीडित महिलाएं शरई अदालत में फरियाद लेकर नहीं पहुंच रही हैं। वे सीधे थाने में मुकदमे दर्ज करा रही हैं और आरोपितों को जेल भिजवा रही हैं। सालभर के अंदर रामपुर में तीन तलाक के 84 मामले दर्ज हो चुके हैं। लेकिन, शरई अदालत में भी एक भी केस नहीं पहुंचा है, जबकि कानून बनने से पहले महीने में कई मामले पहुंचते थे। रामपुर में शरई अदालत भी है, जिसमें मुसलमानों के आपसी मामले शरीयत के कानून के हिसाब से सुलझाए जाते हैं। इस अदालत में संपत्ति विवाद और बंटवारे के साथ ही तीन तलाक के मामले भी आते रहे हैं।
अदालत के नायब सदर मुफ्ती मकसूद कहते हैं कि कानून बनने के बाद से एक भी मुकदमा शरई अदालत में नहीं आया है। पहले हर माह कई मामले आते थे। अब आपसी विवाद के ही मामले पहुंच रहे हैं। लेकिन, कोरोना काल में पिछले चार माह से अदालत में सुनवाई नहीं हो रही है। थानों में हो रही रिपोर्ट तीन तलाक को लेकर कानून बनने के बाद पीड़ित महिलाएं थाने में पहुंच रही हैं। उनकी रिपोर्ट दर्ज हो रही है और आरोपितों को जेल की हवा खानी पड़ रही है। हालांकि अब भी तीन तलाक की मनमानी थम नहीं पा रही है। अजीमनगर थाना क्षेत्र के डोंकपुरी टांडा गांव में तो अजीबोगरीब मामला सामने आया। इस गांव की फरहाना को दो बार तलाक का दंश झेलना पड़ा। पति उस पर शक करने लगा और इसी वजह से तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया। पंचायत हुई तो पति के साथ दोबारा रहने की बात तय हुई। इसके बाद उसने तीन माह 13 दिन की इद्दत की। महिला का जेठ के साथ हलाला कराया गया। हलाला के बाद महिला ने फिर तीन माह 13 दिन की इद्दत की। उसके बाद पति के साथ दोबारा निकाह हुआ, लेकिन पति की शक करने की आदत नहीं बदली और फिर उसे मारपीटकर तीन तलाक दे दिया था। हालांकि इस मामले में पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया था।