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अब दफनाने की जगह दाह संस्कार किया करेंगे नट,सदियों बाद बदलेगी परंपरा Moradabad News

नटों के गांव सलावा में सदियों के इंतजार के बाद दाह संस्कार हो सकेंगे। मुरादाबाद उप्र के इस गांव में शवों को दफन किया जाता था। मूल परंपरा में लौटने को लेकर गांव में खुशी है।

By Ravi SinghEdited By: Published: Wed, 20 May 2020 09:53 AM (IST)Updated: Wed, 20 May 2020 10:55 AM (IST)
अब दफनाने की जगह दाह संस्कार किया करेंगे नट,सदियों बाद बदलेगी परंपरा Moradabad News

मुरादाबाद(श्रीशचंद्र मिश्र राजन)। नटों के गांव सलावा में सदियों के इंतजार के बाद दाह संस्कार हो सकेंगे। सात सौ की आबादी वाले मुरादाबाद, उप्र के इस गांव में शवों को दफन किया जाता था। नटों का कहना है कि वे अपने हालात के चलते मूल परंपरा से भटक गए और दोबारा लौट न सके। कोरोना काल में हालात बदले और मुख्यधारा का साथ मिला तो अपनी जड़ों को पाकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं।

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मुरादाबाद जिले से 15 किमी दूर छजलैट ब्लॉक के गांव सलावा में ढाई सौ नट परिवार निवास करते हैं। इसे नटों की बस्ती कहा जाता है। पूजा-प्रार्थना पद्धति से लेकर विवाह और अन्य रस्मोरिवाज में गांव हिंदू परंपराओं का पालन करता है। लेकिन गांव में शवों का दाह संस्कार नहीं किया जाता था।

जब भी किसी की मौत हुई, तो शव को गांव के बाहर डेढ़ बीघा जमीन पर बने नियत स्थान पर दफन कर दिया जाता। इस स्थान को ग्राम सभा ने आवंटित कर रखा है। नट परिवार घुमक्कड़ी कर जीवन व्यतीत करते रहे हैं, लेकिन गांव इनका स्थाई ठीहा रहा। कई-कई माह यहां-वहां घूम-फिरकर तमाशा दिखाते, कमा कर वापस लौटते और कुछ अरसे बाद फिर चले जाते। मुख्यधारा के समाज से दूरी, अस्थायित्व, निर्धनता और कठिन हालात के चलते न जाने कब दाह संस्कार की परंपरा छूट गई, पता नहीं। लेकिन इनका कहना है कि कुछ सदियां तो बीत ही गईं।

लॉकडाउन में सभी लोग गांव में ही हैं। अरसे बाद सभी एक साथ मिले, बैठे, तो बात चली। चाहकर भी दाह संस्कार न कर पाने की टीस उभरी। विचार-विमर्श कर अपनी यह वेदना मुख्यधारा के समाज और प्रमुख लोगों से व्यक्त की गई। सभी का साथ मिला, तो तय हुआ कि जड़ों को लौटेंगे, अब दफनाएंगे नहीं, दाह संस्कार की मूल परंपरा को अपनाएंगे।

सलावा गांव की महिला प्रधान सरोज देवी के पति महेंद्र सिंह रंधावा बताते हैं कि दाह संस्कार से वंचित होने के कारणों में एक बड़ा कारण निर्णय लेने के लिए अवसर और जागरूकता का अभाव भी था। लॉकडाउन में सभी गांव में जुटे, तो सभी ने सहमति से इस मुद्दे पर पंचायत बैठाई। नटों के अलावा जाट और विश्नोई समाज के लोग भी पंचायत का हिस्सा बने। पंचायत में तय हुआ कि अब नट भी उसी श्मशान घाट पर शवों का दाह संस्कार करेंगे, जहां अन्य अन्य करते हैं। जिस भूमि पर नट अब तक शवों को दफनाते थे, वहां समाज की नई बस्ती बनेगी।

ग्रामीण ऋषिराज सिंह बताते हैं कि सलावा गांव के नट सैकड़ों वर्ष से इस परंपरा से दूर थे। अब जो हुआ है, मील का पत्थर है। कोरोना और लॉकडाउन ने गांव के इतिहास में नया अध्याय दर्ज कर दिया। पंचायत के ऐतिहासिक फैसले से सलावा गांव खुश है। असरबी, शारदा और अमीचंद खुशी से फूले नहीं समा रहे। सभी ने एक सुर में कहा कि वर्षों से दिल में दफन मुराद अब पूरी होने जा रही है। पंचायत ने दाह संस्कार का अधिकार देकर वर्षों से ढोई जा रही विसंगति को दूर कर दिया है। नट समुदाय को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दिया है, जिससे सभी खुश हैं। एक अधूरापन था, जो मिट जाएगा। 


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