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अब यूपी के इस जिले में एनआरसी की सुगबुगाहट ने उड़ा दी लोगों की नींद Moradabad News

एनआरसी का खौफ प्रमाणपत्र के लिए लग रही लाइन आलम ये है कि ८० वर्ष के लोग भी जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कतार में लग रहे हैं।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sat, 12 Oct 2019 11:35 PM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 09:55 AM (IST)
अब यूपी के इस जिले में एनआरसी की सुगबुगाहट ने उड़ा दी लोगों की नींद Moradabad News
अब यूपी के इस जिले में एनआरसी की सुगबुगाहट ने उड़ा दी लोगों की नींद Moradabad News

मुरादाबाद, जेएनएन : उत्तर प्रदेश में शीघ्र एनआरसी लागू होने की सुगबुगाहट गांव तक पहुंच गई है। मेहनत मजदूरी और खेती किसानी तक सीमित अशिक्षित लोग भी अपनी जन्मपत्री तलाशने लगे हैं। इनमें ज्यादातर के पास एकमात्र निर्वाचन आयोग का पहचानपत्र है। कई लोगों के नाम मतदाता सूची से भी गायब हैं। ऐसे लोग जन्म प्रमाणपत्र और स्थायी निवास प्रमाणपत्र के लिए जनसेवा केंद्रों के साथ नगरीय क्षेत्र में अपने वार्ड के सभासद और ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधानों के चक्कर लगा रहे हैं।

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८० वर्ष के लोग भी जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कतार में

असम के बाद उत्तर प्रदेश के लोगों को भी एनआरसी (नेशनल सिटीजन रजिस्टर )का डर सताने लगा है लिहाजा खौफ में लोग वैकल्पिक रिकॉर्ड जुटाने लगे हैं। आलम ये है कि ८० वर्ष के लोग भी जन्म प्रमाणपत्र बनवाने के लिए कतार में लग रहे हैं।

अब तक यह थी व्यवस्था

जनसेवा केंद्र संचालकों का कहना है कि अभी तक जन्म प्रमाणपत्र हो या फिर स्थायी निवास प्रमाणपत्र के लिए ई-डिस्ट्रिक्ट डिस्टिक वेबसाइट पर आवेदन करना होता है। इसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सभासद या फिर ग्राम प्रधान का प्रमाणपत्र माननीय है। ऑनलाइन आवेदन के बाद नगर पालिका एवं खंड विकास कार्यालय के सक्षम अधिकारी को रिपोर्ट देनी होती है। जिला स्तर पर सक्षम अधिकारी की स्वीकृति मिलने के बाद जन सेवा केंद्र से जन्म एवं स्थायी निवास प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है।

तीन सौ रुपये तक वसूले जा रहे

आमजन के साथ बुजुर्ग भी जन्म प्रमाणपत्र के लिए जनसेवा केंद्रों पर लाइन लगा रहे हैं। इस अफरातफरी में जनसेवा केंद्र वाले भी हर प्रमाणपत्र की एवज में २०० से ३०० तक वसूल रहे हैं। एनआरसी में नाम वंचित रहने के भय से मजदूर-किसान कामकाज छोड़कर प्रमाण पत्र बनवाने में जुटे हैं।

क्या है एनआरसी

नेशनल सिटीजन रजिस्टर (एनआरसी) भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए बनाई गई एक सूची है। इसका मकसद अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों और घुसपैठियों की पहचान करना है। इस प्रक्रिया के लिए १९८६ में सिटीजनशिप एक्ट में संशोधन कर असम के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। अभी यह असम में ही लागू है।

अस्सी वर्ष की उम्र हो गई । कभी पढऩे नहीं गए। सारी उम्र खेती किसानी में गुजर गई। अब घर से निकाले जाने का डर सता रहा है। बच्चे अपने साथ मेरा भी जन्म प्रमाणपत्र बनवा रहे हैं।

नन्हें खां पुत्र रहमतुल्लाह, शरीफ नगर ठाकुरद्वारा

७५ साल की उम्र हो चुकी है। बेटी बेटों के बच्चे भी जवान हो गए। मेहनत मजदूरी कर बच्चों को पाल रहे हैं। खेती किसानी की और घर आकर सो गए। अब तरह-तरह के कागजों को जरूरी बताया जा रहा है, वरना घर से निकाल दिया जाएगा।

सुगरा पत्नी नन्हे खां,

शरीफ नगर ठाकुरद्वारा

एक तो कामधाम ठप है। ऊपर से तरह-तरह के कागज बनवाने का खर्च झेलना पड़ रहा है। हर तरफ एनआरसी के नाम से अजीब सा लोगों में डर है। ज्यादा से ज्यादा कागज समेटने की होड़ मची है।

मोहम्मद यूसुफ, ठाकुरद्वारा

गृहमंत्री के बयान के बाद लोगों में घबराहट होने लगी है। हम जैसे मेहनत मजदूरी करने वाले लोग पुराने तमाम कागजात तलाशने लगे हैं। लोगों के पास वोटर आइडी के अलावा कुछ नहीं है। आज भी तमाम लोगों के पास बिजली कनेक्शन भी नहीं है।

असलम पुत्र फैजुल हसन, ठाकुरद्वारा

एनआरसी को लेकर शासन स्तर से कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है और न ही कोई ऐसा सत्यापन किया जा रहा है। वोटर वेरीफिकेशन का कार्य चल रहा है। उसका एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।

डॉ. अजय कुमार

एसडीएम ठाकुरद्वारा


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