अब कोरोना करा रहा चादी
कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही है पर कुछ अस्पताल संचालक कोरोना को आय का जरिया बना रहे।
मुरादाबाद,जासं: कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही है, पर कुछ अस्पताल संचालक कोरोना को आय का जरिया बना रहे हैं। जब कोरोना संक्रमण चरम पर था, तब कोई अस्पताल संचालक अपने हॉस्पिटल को कोविड अस्पताल घोषित कराने को तैयार नहीं था। जिलाधिकारी ने कुछ निजी अस्पतालों को कोविड अस्पताल घोषित किया तो विरोध भी हुआ था। संक्रमण कम होने लगा तो अधिकांश अस्पतालों ने कोविड के इलाज की अनुमति ले ली है। इससे कोविड के उपचार के नाम पर दोहरा लाभ कमाने की तैयारी है। रोगी को अस्पताल में भर्ती करने से पहले कोरोना की जाच की जाती है। संक्रमित मिलते ही मरीज जिस बीमारी का उपचार कराने आया था, उसका उपचार बाद में, पहले दस दिन कोरोना का इलाज किया जाता है। इसके बाद उसकी बीमारी का उपचार शुरू किया जाता है। रोगी से कोरोना के साथ-साथ जिस बीमार का उपचार करना है, उसकी फीस भी वसूली जाती है।
बाबू बनने का खतरा
रेलवे अधिकारी स्टाफ की कमी होने पर कुछ बुकिंग क्लर्क को स्थानीय स्तर पर चीफ कामर्शियल इंस्पेक्टर बना रहे हैं। उनके अधीन कई वरिष्ठजनों को भी काम करना पड़ता है। हाल ही में क्लर्क से इंस्पेक्टर बनने वाले की कारगुजारी चर्चा में हैं। इंस्पेक्टर साहब से परेशान कर्मियों ने ट्रेड यूनियन से गुहार लगाई। यूनियन ने इसे मुद्दा बना लिया और अधिकारियों से शिकायत करनी शुरू कर दी। उनसे मूल पद पर काम कराए जाने की माग उठाई जाने लगी। दूसरी ओर इंस्पेक्टर राज कायम रखने का प्रयास शुरू हो गया। लेकिन, मामला असफल रहा। ट्रेड यूनियन के विरोध का स्वर तेज होने लगा तो इंस्पेक्टर साहब को क्लर्क बनने का खतरा मंडराता दिखाई देने लगा। ऐसे में उन्होंने बिजनेस डवलपमेंट यूनिट में जाने का प्रयास किया। वहा सफलता नहीं मिली। अब वह छुट्टी लेकर चले गए और इंस्पेक्टर राज कायम रखने के लिए दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं।
पेट में होने लगा दर्द
जिला महिला अस्पताल में नई मुखिया की तैनाती होने के बाद हालात बदल गए हैं। वह अस्पताल को नियमानुसार चला रहीं हैं, जिससे कई लोगों के पेट में दर्द होने लगा है। दलाल व प्राइवेट अस्पताल में रोगियों को ले जाने वाली आशा कार्यकर्ताओं की मनमानी पर अंकुश लगा दिया है। इसके बाद से कभी हंगामा, कभी शोर शराबा होने लगा है। इसके पीछे की राजनीति दलाली एवं काम नहीं करने वाले हैं। वहीं राजनीतिक दलों के नेताओं को भी बुला रहे हैं। ऐसी स्थिति में दलाली करने वालों और काम करने वालों के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई है। हालत यह हैं कि मुखिया की सही सलाह भी स्टाफ को बुरी लगने लगी है। एक स्टाफ को उनकी सलाह इतनी बुरी लगी कि जिलाधिकारी तक से शिकायत कर दी। आगे क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा। इतना जरूर है कि व्यवस्थाओं में सुधार दिखने लगा है।
दंडित करने का अधिकार छिना
नगर की सरकार में सफाई व्यवस्था में सुधारने के लिए नए मुखिया की तैनाती हुई। पहले वाले मुखिया ने तो कर्ताधर्ता की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठाए थे। वैसे नगर में स्वास्थ्य की चिंता करने वाले अधिकारी अपर मुख्य चिकित्साधिकारी स्तर के होते हैं। उनका अधिकार नगर के सहायक को सौंप दिया गया है, जो स्वास्थ्य विभाग के मुखिया से कमतर ही होते हैं। स्वास्थ्य विभाग के मुखिया के पास में कोई बजट होता नहीं है। उसने काम नहीं करने वाले कर्मचारियों को दंडित करने का अधिकार भी छीन लिया गया है। इससे महानगर की स्वास्थ्य व्यवस्था लगातार खराब होती जा रही है। इसका दोषारोपण स्वास्थ्य के मुखिया पर मढ़ा जा रहा है। परेशान होकर सफाई व्यवस्था के मुखिया ने पूरे मामले की जानकारी शासन तक पहुंचने की तैयारी कर ली। ऐसे में सहायक के अधिकारों पर कैंची चलेगी या नहीं, यह तो शासन से मिले निर्णय से तय होगा।