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मनरेगा के अलावा नहीं काम-धंधा, संकट में हैं शहरों से लौटे कामगार Moradabad News

जिले में अब तक आ चुके है 28 हजार प्रवासी कामगार 3900 प्रवासी मजदूरों को मिला रोजगार। श्रमिकों को उठानी पड़ रही है भारी परेशानी।

By Ravi SinghEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 06:15 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 06:15 PM (IST)
मनरेगा के अलावा नहीं काम-धंधा, संकट में हैं शहरों से लौटे कामगार  Moradabad News
मनरेगा के अलावा नहीं काम-धंधा, संकट में हैं शहरों से लौटे कामगार Moradabad News

सम्भल,जेएनएन। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक लॉकडाउन के चलते कामगारों के काम-धंधे पूरी तरह से चौपट हो चुके हैं। अब कंपनी और फैक्ट्रियां काम शुरु जरूर कर रही है, लेकिन कामगारों को उनके बुलावे का इंतजार है, जबकि दिल्ली, एनसीआर में ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा समेत वाहनों के सुचारू रूप से शुरू होने का इंतजार है। इन गतिविधियों के बीच लॉकडाउन के चलते शहर से गांव की ओर लौटे प्रवासी कामगारों के समक्ष परिवार को चलाने का संकट है।

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मनरेगा के अंतर्गत जिले में वर्तमान में 35,723 मजदूर काम कर रहे हैं, जिनमें केवल 3900 प्रवासी मजदूरों को ही काम दिया गया है। ऐसे में उन मजदूरों का क्या होगा जो शहरी क्षेत्र में रहकर अन्य गतिविधियों और पेशेवर कामों के माध्यम से अपना धंधा चलाते थे जो अब गांव में ना कृषि करने की हालत में है और न ही मजदूरी के सिवा कुछ अन्य धंधा। लिहाजा उन्हें लॉकडाउन की खुलने के बाद सब कुछ सामान्य होने का इंतजार है।

प्रवासी कामगार

दिल्ली में रहकर एक निजी कंपनी में जॉब कर रहा था लॉकडाउन के बाद कंपनी ने काम बंद कर दिया, जिसके बाद हम अपने गांव वापस लौटे हैं। कुछ समय के लिए घर पर खाली रहना पड़ा। अब हमने मनरेगा के अंतर्गत जॉब कार्ड बनवा कर काम मांगा, काम मिल गया है, जिसके जरिए से परिवार की रोजी-रोटी चल रही है। मनरेगा के अलावा हमारे पास आमदनी का और कोई जरिया नहीं है। जब तक कंपनी अपना काम दोबारा शुरू नहीं कर देती है, तब तक गांव में रहकर ही काम करना होगा।

- जसवंत , सैंजना मुस्लिम

वर्षों से ही पूरा परिवार दिल्ली में रहकर मेहनत मजदूरी करता रहा है, बड़े भाइयों के दिल्ली में रहकर काम करने के दौरान से बचपन से मैं भी वहां मेहनत मजदूरी करता आ रहा हूं। लॉकडाउन से पहले मैं दिल्ली में ई रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था लेकिन जैसे ही लॉक डाल लागू हुआ उसके बाद से ही हम घर वापस लौट आए। खेती भी हमारे पास इतनी नहीं है, जिससे हमारा गुजारा हो सके। अब घर पर सभी लोग खाली हैं, इंतजार कर रहे हैं कब लॉक डाउन खुले, उसके बाद हम लोग वापस खाने कमाने के लिए लौटे।

- हरपाल , मकसूदनपुर

होली दीवाली जैसे बड़े पर्वों को छोड़कर मैं गांव से दिल्ली जाकर कमाई का जरिया ढूंढता रहता था। लॉकडाउन से पूर्व में नोएडा और गाजियाबाद के खोड़ा कालोनी में ऑटो रिक्शा चलाकर आमदनी कर रहा था लेकिन लॉकडाउन लागू होते हुए सभी वाहनों को बंद कर दिया गया, जिसके बाद हमें अपने गांव वापस लौटना पड़ा। अब गांव की रोजगार सेवक के माध्यम से हमने नया जॉब कार्ड बनवाते हुए मनरेगा के अंतर्गत काम करना शुरू कर दिया है।

-दिनेश कुमार, ग्राम कल्हा

कई वर्ष पूर्व गांव में सैलून की दुकान करते थे लेकिन उससे परिवार का खर्च नहीं चल सका। जिसके बाद अन्य भाइयों की तरह मैं भी दिल्ली चला गया और वहां पर चाट व गोल गप्पे का काम किया। काम ठीक ठाक चल रहा था बच्चे भी स्कूल में पढ़ रहे थे लेकिन अचानक लॉकडाउन शुरू होने के बाद काम धंधा भी छिड़ गया और बच्चों की पढ़ाई भी साथ ही आमदनी खत्म होने के बाद परिवार को दिल्ली में रख पाना संभव नहीं था। अब घर वापस लौटे हैं, घर पर ही 14 दिन के लिए क्वारंटाइन है।

- उमेश कुमार धनारी

मैं पिछले एक वर्ष से राजस्थान के नागौर में रहकर कंस्ट्रकशन का काम करता था। जिससे परिवार का पालन पोषण करता हूं। दो वर्ष पहले पिता जी का निधन होने गया था। जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति तोड़ी कमजोर हो गई। अब कुछ काम सही हुआ तो कोरोना संक्रमण की वजह से लॉकडाउन लग गया। इससे नौकरी भी छूट गई। में पिछले चार मई से होम क्वारंटाइन हूं।

भावेश माथुर, सौंधन

मैं पिछले छह वर्षों से नोएडा के परी चौक एक में पराठे का ठेला लगा कर परिवार का पालन पोषण करता था। मेरे साथ मेरा परिवार भी रहता था। इससे बच्चें को पढ़ाई के साथ साथ कुछ पैसे घर भेजता था। लॉकडाउन लगने से काम धंधा बंद हो गया। मैं अपने परिवार के साथ लॉकडाउन-1 में गांव वापस आ गया। गेहूं की कटाई के समय मैने परिवार के साथ गेहूं काटे अब खेती किसानी कर किसी तरह परिवार की जीविका चला रहा हूं।

हरिओम यादव, सिहावली

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- पिछले पांच वर्षों से हिमाचल प्रदेश के बददी में एक कपड़ा फैक्ट्री में कपड़े की कङ्क्षटग का काम करता था। मेरे साथ मेरा परिवार भी वहीं रहता था। वहीं पर मेरे बच्चे भी पढ़ते थे। लॉकडाउन लगने की वजह से फैक्ट्री बंद हो गई। जिससे काम भी बंद हो गया। जिससे और आय का जरिया भी बंद हो गया। मैं 23 मई को परिवार के साथ गांव आ गया। अब यहां पर खेती का काम करूंगा। मैं फिलहाल 14 दिन के लिए होम क्वारंटाइन हूं।

जोगराज, टांडा

मैं 10 वर्षों से हरियाणा राज्य के झझर में राजमिस्त्री का काम करता था। मेरे साथ मेरा परिवार भी वहीं रहता था। लॉकडाउन की वजह से काम धंधा पूरी तरह से बंद हो गया। मैं पिछले ढेड महीने से वहीं किराये के कमरे में रहा। जब पैसे की कमी हुई तो मैं छह मई को अपने गांव आ गया। गांव में अब कोई छोटा मोटा काम मिल जाता है तो उसे करके परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं।

राजेन्द्र प्रजापति, सौंधन

मनरेगा में नहीं मिले काम तो 9675487337 पर करें कॉल

 ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के अंतर्गत करते हुए प्रवासी मजदूर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकते हैं ऐसे में ग्राम पंचायतों को अधिक से अधिक जॉब कार्ड बनाते हुए अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं मनीषा की जिला उपायुक्त बलवंत ङ्क्षसह ने बताया कि ग्राम पंचायतों में कोई भी प्रवासी मजदूर काम मांगता है और अगर उसे काम नहीं मिलता है तो वह सीधे अधिकारियों से संपर्क कर सकता है जिसके बाद उसे तत्काल काम उपलब्ध कराया जाएगा हमने सभी खंड विकास अधिकारियों और पंचायत सचिवों के माध्यम से रोजगार सेवकों को भी सक्रिय किया है। अब तक 3900 प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिया जा चुका है। 


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