हाथी के पांव से बांधकर घसीटे गए थे नवाब मज्जू खां
रईस शेख, मुरादाबाद : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही
रईस शेख, मुरादाबाद : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।।
मुल्क की आजादी में मुरादाबाद के मजीदुद्दीन उर्फ मज्जू खा का नाम उन शहीदों में शुमार किया जाता है जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए मुल्क की आजादी में अपना अतुलनीय योगदान दिया। अंग्रेजों ने उन्हें बेहद दर्दनाक मौत दी थी। उनके बेटे अमीरुद्दीन, बहनोई शब्बीर अली खां और रफीउद्दीन खां पर भी 1858 में मुकदमा चलाकर उन्हें गोली मार दी गई।
जंगे आजादी के दौरान 14 अप्रैल 1855 तक मुरादाबाद का हंगामा पूरी तरह खत्म हो गया था। 25 अप्रैल को जनरल जानसन गौरी फौज और सिख रेजीमेंट के साथ मुरादाबाद पहुंचा। यह बहुत ही जालिम था। इस दौरान लगभग 20 हजार मुजाहिदों को फांसी पर लटकाया गया।
बहादुर औलाद-
मज्जू खां 18वीं सदी के शुरुआत में कठीर रुहेलखंड आने वाले बहादुरों की औलाद में से एक थे। मेरठ में 1857 में गदर हुआ तो एक व्यक्ति मेरठ के मुजाहिदीन की खबर लेकर 11 मई, 1857 को मुरादाबाद आया। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई। अंग्रेजी हुक्मरान जीटीसी विलसन 12 मई को मुरादाबाद पहुंचा। 18 मई को पलटन के 70 आदमी मेरठ से मुरादाबाद आए और उन्होंने आसपास के क्षेत्र में बगावत शुरू कर दी। दो मई को मौलवी मनु की शहादत का वाक्या हुआ। 29 मई, 1857 को बरेली में यह खबर उड़ा दी गई कि आज ¨हदुस्तानी फौज बगावत करेगी। 30 मई की शाम रेजीमेंट के 445 लोग मुरादाबाद पहुंचे। 31 मई को रविवार को सूबेदार मुहम्मद बख्श उर्फ बख्त खां और तोपखाना व पलटन नंबर 18 व 68 छावनी बरेली के लोग बागी हो गए। उन्होंने अंग्रेजों को मुरादाबाद से भगा दिया। इसके बाद नवाब मज्जू खां को ¨हदुस्तानी 29वीं पलटन ने अपना अफसर बनाया। कौमपरस्तों को बहकावे में रखने के लिए नवाब मज्जू खां को जिला प्रशासक बना दिया गया।
वह रामपुर फौज के साथ लालबाग मोर्चा पर बहादुरी से लड़ रहे थे। इसी बीच उन्हें गिरफ्तार करने का मशवरा दिया गया। पैर में गोली लगने से मज्जू खां घायल हो गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनका मुकदमा अंग्रेज निकलसन के सामने पेश हुआ। पहले उनके हाथ-पैर व हड्डियां तोड़ने का आदेश हुआ। इसके बाद उन्हें ताजा चूने में डाल कर उन पर पानी डाला गया। बाद में उन्हें हाथी के पैर से बांध कर तमाम शहर में घुमाया गया। बाद में उनकी लाश मुहल्ला गलशहीद में इमली के पेड़ से बांध कर लटका दी गई। महल, मकान व दीवानखाना लुटवा दिया गया।
कई दिन लटकी रही लाश-
कई दिन तक उनकी लाश पेड़ पर लटकी रही। बाद में शव को उतार कर जुमे के दिन मैदान में एक तरफ फेंक दिया गया। इसी बीच हजरत शाह मुकम्मल शाह रह. के मजार की तरफ से दो सफेदपोश इंसान ईदगाह की सड़क पर आए। उन्होंने लाश को गुस्ल देकर मस्जिद पत्तन शहीद के पीछे दफन किया। पार्षद सुहेल खान कहते हैं कि आज भी उनका परिवार मजार शरीफ की देखभाल कर रहा है। उनकी याद में गलशहीद चौराहे का नाम शहीदे आजम नवाब मज्जू खां चौक रखा गया है।