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गन्ने की फसल की टपक व‍िध‍ि से करें स‍िंंचाई, उत्‍पादन बढ़ने के साथ बचेगा खर्च

Irrigation by drip method गन्ना किसानों के लिए एडवाइडरी की गई जारी। जलप्लावन क्षेत्रों में शरद कालीन बुवाई करने पर जोर। टपक सिंचाई अथवा छिड़काव विधि को अपनाने से पानी की बचत के साथ साथ अधिक उपज भी प्राप्त होती है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 03:30 PM (IST)
गन्ने की फसल की टपक व‍िध‍ि से करें स‍िंंचाई, उत्‍पादन बढ़ने के साथ बचेगा खर्च
सुरक्षा के उपायों को अपनाकर मौसम के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

मुरादाबाद, जेएनएन। Irrigation by drip method। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ना किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रतिवर्ष गन्ने की खेती में वर्षा के कारण जलभराव, बाढ़ अथवा सूखा पड़ने के कारण गन्ने की बुवाई एवं निराई-गुड़ाई में व्यवधान होता है। इसलिए गन्ना फसल के प्रबंधन एवं सुरक्षा के उपायों को अपनाकर मौसम के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

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वैज्ञानिकों ने बताया क‍ि सूखा पड़ने की आशंका हो और वर्षा ऋतु में लंबी अवधि तक बारिश न हो ऐसे क्षेत्रों में सूखा सहने की क्षमता से युक्त सूखा रोधी किस्मों का गन्ना बोएं। टपक सिंचाई अथवा छिड़काव विधि को अपनाने से पानी की बचत के साथ साथ अधिक उपज भी प्राप्त होती है। जिला गन्ना अधिकारी डॉ. अजयपाल सिंह ने बताया कि जलप्लावन ग्रस्त क्षेत्रों में गन्ने की शरद कालीन बुवाई उत्तम है। शरद कालीन बुवाई संभव न होने पर बसंत काल में गन्ने की अगैती बुवाई करनी चाहिए। गन्ना बीज का उपचार करके गन्ने की बुवाई ट्रेंच विधि से करनी चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग वर्षा ऋतु से पहले अवश्य कर लें। जलभराव के बाद की खड़ी फसल में पोटाश के घोल का छिड़काव करने से फसल की वृद्धि होती है। कीटों एवं रोगों का प्रकोप कम होता है। जल निकास की व्यवस्था होने पर जून माह के मध्य तक गन्ने की पंक्तियों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दें। इससे जल निकासी के लिए नालियां बन जाती हैं। एक खेत का पानी दूसरे खेत में जाने से रोकना आवश्यक है। लाल सड़न रोग का प्रकोप होने पर पूरे क्षेत्र में रोग फैलने की आशंका रहती है।


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