जनता दरबार में फरियादियों को डांटते थे विधायक, लोगों ने दूरियां बनाई तो फिसल गई कुर्सी Moradabad News
सत्ता का नशा जब सिर चढ़कर बोलता है तो अक्सर जनप्रतिनिधि आपा खो देते हैं। विधायक जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। जनता ने ऐसा सबक सिखाया कि फिर कुर्सी न हासिल कर सके।
मुरादाबाद (मोहसिन पाशा)। किसी जमाने में एक विधायक जी की प्रदेश में तूती बोलती थी। जब तक रहे, लखनऊ से दिल्ली तक लाल टोपी उनकी पहचान बनी रही रही। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते थे। विधानसभा में उनके उठाए मुद्दे पर सरकार भी काम करतीं। उत्तराधिकारी को क्षेत्र की जनता ने एक बार विधायक बनाया। इसके बाद कचहरी के पास दरबार सजने लगा। लगा कि लाल टोपी का विकल्प मिल गया है। पर मामला उल्टा ही था, उम्मीद लेकर पहुंचने वालों में आधे डांट खाकर लौटने लगे। लोगों ने दूरियां बनाना शुरू कर दिया, फिर क्या था कुर्सी से फिसल गए। उत्तराधिकारी ने कुर्सी के लालच में कई दलों के झंंडे उठाए। हाथ का भी साथ लिया लेकिन, जनता की नाराजगी बरकरार रही। अब उनका दरबार भी नहीं सजता। नेताजी को समझ में आ गया है कि जो बनाते हैैं उनसे बिगड़ी तो फिर उठाते नहीं हैं।
तीन सितारों वाली बढ़ा रहीं धड़कन
जिले में तीन सितारों वाली दो वर्दी ïïवालीं जब से आईं हैैं, महिला थाने की कुर्सी हिलने लगी है। दोनों की नजर कुर्सी पर है। पहले भी इस कुर्सी पर बैठकर करिश्मा दिखा चुकी हैं। इनमें से एक तो चुनाव के दौरान पड़ोसी जिले में चली गईं थीं। दूसरी कई जिलों से घूमकर फिर से मुरादाबाद आ गईं हैैं। बड़े साहब को सलाम करके कुर्सी पर दावेदारी पेश कर चुकी हैं। फिलहाल जो स्टार वाली कुर्सी संभाले हैैं, साहब के लाल रंग से लिखे निर्देशों का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरत रही हैैं। महिलाओं की समस्याओं का समाधान कराकर अपने नंबर बढ़ाने में लगी हैं। कई बिगड़े रिश्तों जोड़े, कुछ बहनों के निकाह कराए तो कई की शादियां भी। आंखों में आंसू लेकर आने वालों की हमदर्द हैं। किसी को मौका नहीं दे रहीं कि बड़े साहब के पास जाकर रोना रोए।
नेताजी को पड़ोसी का खौफ
सम्भल लोकसभा क्षेत्र की एक विधानसभा क्षेत्र के विधायक अपनी कुर्सी को लेकर बहुत फिक्रमंद हैैं। इसकी एक नहीं कई वजह हैैं। डर सता रहा है कि पड़ोस के विधायक का बेटा हाथी पर सवार होकर चुनावी समर में उतरा तो समीकरण बिगाड़ जाएंगे। उनके ठाठ देखकर घर के ही कई लोगों में सियासत में उड़ान भरने की चाहत है। टीस वैसे अपने ही खून में सबसे ज्यादा है। अंदेशा है कि जरा भी इधर-उधर की बातें कीं तो घर में भी साइकिल की सवारी करने के लिए दंगल हो सकता है। उधर, ससुराल में दूसरी पीढ़ी सियासत में कुछ पाने की जद्दोजहद कर रही है। बेगम के छोटे भाई ने तो कई जोड़ी सफेद कपड़े सिला रखे हैैं। मिलने-जुलने वालों से इसी अंदाज से मुलाकात भी करते हैैं। पत्नी के बड़े भाई में तो सियासी महत्वकांक्षा कूट-कूटकर भरी है। अल्लाह खैर करे।
साहब की डांट से अकल ठिकाने
बहजोई के एक इंस्पेक्टर मंडल वाले साहब के मुंह लगने लगे। डांट लगाई तो अकल ठिकाने आई। मुंह से निकला सर.. आदेश का पालन होगा। वैसे मंडल के साहब बड़े दयालु हैैं। जो पास आ जाए उसे इंसाफ मिलना तय है। नववर्ष पर एक फरियादी हाथ जोड़े जैसे-तैसे उनके पास पहुंच गया। उसने इंसाफ दिलाने की रट लगा ली। बड़बोलेपन के चलते डांट भी पड़ गई लेकिन, डटा रहा। हाथ जोड़कर फरियाद करता ही रहा। इस पर साहब ने सीधे इंस्पेक्टर को फोन लगवा दिया। बातचीत शुरू हुई तो अभी तक की कार्रवाई की जानकारी देनी शुरू कर दी। इस पर मंडल वाले साहब को गुस्सा आ गया। उन्होंने उसे उसी भाषा में समझाना शुरू कर दिया। फिर क्या था उन्हें अपने और मंडल वाले साहब के पद के कद में अंतर का एहसास भी हो गया और फरियादी को न्याय मिल गया।