पौधों के रूप में जीवित हैं स्वजनों की स्मृतियां
जीवन भर मां की ममता की छांव में रहने की ख्वाहिश थी लेकिन जावेद ।
मुरादाबाद (प्रदीप चौरसिया)। जीवन भर मां की ममता की छांव में रहने की ख्वाहिश थी लेकिन, जावेद की मां 2011 में चल बसीं। उन्होंने मां की कब्र के पास बरगद का पौधा लगाया जो आज पेड़ का रूप ले चुका है। उन्हें लगता है कि मां उनके साथ ही हैं। इसके बाद उन्होंने जिसके परिवार में कोई मौत हो जाती है,उसको पौधा देने की ठानी। स्वजन उसकी देखभाल परिवार के सदस्य की तरह ही करते हैं।
कुंदरकी ब्लाक के लालपुर गंगवारी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता जावेद की मां की 11 अक्टूबर 2011 को मौत हो गई। मां के वियोग में जावेद टूट गए थे। उन्होंने बाजार से बरगद का पौधा लिया और मां की कब्र के पास इसे लगा दिया। इस पौधे की देखभाल वह मां की तरह करते रहे। पौधा अब पेड़ बन गया। जब मां की कमी महसूस होती है, तो पेड़ के पास बैठ जाते हैं। गांव के किसी परिवार में सदस्य की मौत हो जाने पर जावेद बाजार से छायादार या फलदार पौधे लेकर उसके घर जाते हैं। स्वजनों को समझाते हैं कि पौधा लगाकर इसकी देखभाल करें। बानो पौत्री और पौत्र की तरह करती हैं पेड़ों की देखभाल
वर्ष 2014 में गांव के असलम की एक बेटी और 2015 में दूसरी बेटी की मौत हो गई। इससे असलम की मां बानो पोती याद में रात दिन रोती रहीं। जावेद ने उन्हें पाखड़ और शहतूत का पौधा लाकर दिया। इसे आंगन के दोनों कोनों में लगा दिया। इसके बाद दिसंबर 2019 में बानो के पौत्र की मौत हो गई। इस पर जावेद ने फिर से पौधा दिया। अब बानो इन तीनों पौधों की देखभाल अपने पौत्र और पौत्री के रूप में करती हैं। बानो कहती हैं कि पेड़ों को देखकर लगता है कि उसके आंगन में तीनों खेल रहे हैं। आठ साल में सौ लोगों को दे चुके हैं पौधे
जावेद कहते हैं कि पिछले आठ साल में गांव के विभिन्न परिवार में सौ अधिक सदस्यों की मौत हो चुकी है। सभी परिवार को बाजार से पौधा लेकर देते हैं। सौ में से 80 पौधे बड़े हो रहे हैं। कुछ लोगों ने आंगन में, कुछ ने घर के बाहर, कुछ ने कब्रिस्तान या श्मशान घाट में पौधा लगाया है।