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लॉकडाउन के सन्नाटे में भूख से तड़प रहे बेडिय़ों में जकड़े बेजुबान Moradabad News

बेजुबानों को जीवन दान दे रहे डियर पार्क के पड़ोसी। वन विभाग की उपेक्षा से बदहाल है डियर पार्क। 64 एकड़ में फैले पार्क में बदहाली का आलम। 3 संविदा कर्मी देखरेख के लिए वन विभाग ने रख

By Ravi SinghEdited By: Published: Tue, 12 May 2020 11:55 AM (IST)Updated: Tue, 12 May 2020 11:55 AM (IST)
लॉकडाउन के सन्नाटे में भूख से तड़प रहे बेडिय़ों में जकड़े बेजुबान Moradabad News

मुरादाबाद,जेएनएन। वन विभाग की लापरवाही के कारण बेजुबान भूख से तड़प रहे हैं। दाने दाने को मोहताज इन बेजुबानों का जीवन पार्क के पड़ोसियों की दया पर निर्भर है। इनकी अनकही वेदना सुनने व समझने वाला कोई नहीं है। फिलहाल तो इसे बंद ही किया हुआ है।

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शहर किनारे रामपुर रोड स्थित डियर पार्क इस वक्त सन्नाटे में लिपटा है। 64 एकड़ में फैले पार्क का वजूद भले ही दशकों पुराना है, लेकिन जर्जर चहारदीवारी, तितर-बितर हो चुकी सड़कें, आम लोगों की बेखौफ आवाजाही इसकी बदहाली की कहानी बयां कर रही है। डियर पार्क के गार्ड आनंद प्रकाश बताते हैं कि वर्ष 1990-93 का वक्त डियर पार्क का स्वर्णिम काल था। तब डियर पार्क में तालाब, मगरमच्छ, स्टीमर के अलावा दर्जनों की तादाद में वन्य जीव रहा करते थे। प्रशासनिक मदद से वन विभाग ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया था। वक्त के करवट लेते ही डियर पार्क अस्तित्व व वजूद के संकट से जूझने लगा। यहां वर्तमान में आठ हिरण व एक आस्ट्रेलियन पक्षी ईमू पार्क को सजीव किये हुए हैंं।

वन्य जीवों को नहीं मिलता मनचाहा भोजन

डियर पार्क में मौजूद हिरण व ईमू को उनका मनपसंद भोजन नसीब नहीं है। गार्ड ने बताया कि वन्य जीवों की देखभाल के लिए संविदा पर दो महिलाओं की नियुक्ति की गई है। पड़ोसी गांव बसंतपुर रामराय की रहने वाली दोनों महिलाएं हिरण के लिए घास व पत्तों का इंतजाम करती हैं। जबकि ईमू का निवाला डियर पार्क कर्मियों की थाली अथवा ग्रामीणों की कृपा पर निर्भर है। बताते हैं कि हिरण व ईमू को खाने में गेहूं पसंद हैं। दोनों महिलाएं अपने घर से रोटियां लाकर ईमू को देती हैं। वन्य जीवों के खाने के नाम पर वन विभाग एक रुपये भी नहीं खर्च करता। वर्षों तक डियर पार्क की शोभा बढ़ाने वाले एक काले हिरण की मौत करीब चार माह पहले हो गई।

डियर पार्क में मौजूद वन्य जीवों की देखरेख के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति है। वन्य जीव गेहूं खाते हैं। गेहूं उपलब्ध कराने के लिए शासन से कोई राशि मुहैया नहीं होती। स्थानीय लोग रोटी अथवा बिस्कुट खिलाते हैं। हालांकि वन्य जीवों की सुरक्षा के लिहाज से इस पर रोक लगाई गई है।

-ज्ञानेंद्र सिंह, उप सहायक संभागीय अधिकारी, मुरादाबाद।  


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