युवा साहित्यकार की रचनाओं से हिंदी की उड़ान को लगे पंख, प्रोफेसशल कोर्स में भी होने लगी हिंदी में पढ़ाई
Hindi Day 2021 हिंदी को बढ़ावा देने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार अपनी रचनाओं से हिंदी भाषा को विश्व पटल पर बढ़ावा देते आ रहे हैं। हिंदी अब विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली तीसरी भाषा बन गई है। हिंदी में अब प्रोफेशनल कोर्स भी होने लगे हैं।
मुरादाबाद, जेएनएन। Hindi Day 2021 : हिंदी को बढ़ावा देने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार अपनी रचनाओं से हिंदी भाषा को विश्व पटल पर बढ़ावा देते आ रहे हैं। इसी का नतीजा है कि हिंदी अब विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली तीसरी भाषा बन गई है। हिंदी में अब प्रोफेशनल कोर्स भी होने लगे हैं जबकि पहले प्रोफेशनल कोर्स पर अंग्रेजी हावी थी। देश को अपनी रचनाओं के माध्यम से आयना दिखाने वाले साहित्यकारों का हिंदी के प्रति समर्पण भाव ही मातृ भाषा को आगे बढ़ा रहा है। कोरोना काल की बात करें तो कई युवा साहित्यकारों ने अपनी मातृ भाषा के शब्दों से रचनाओं में रंग भर रहे हैं।
हिंदी के प्रति जागरूकता को रचनाएं लिखीं तो वहीं शुद्ध हिंदी में कोरोना काल में जब हम घर में कैद थे, तब उनके अनुभवों को रचना से गढ़ा। रिश्तों की अहमियत व कोरोना से दुश्वारियों को झेलने के लिए रचनाओं से हिम्मत बढ़ाई। युवा साहित्यकारों का मानना है कि हिंदी दिवस हमें सदैव हिंदी में काम करने और हिंदी शब्द ज्ञान को बढ़ाने से लेकर इसके प्रचार प्रसार के लिए जागरूक करता है। हिंदी की उड़ान पर युवा साहित्यकार मयंक शर्मा ने अपनी रचना से मातृ भाषा के प्रति जागरूक किया है। हिंदी अब उड़ने लगी निज पंखों को खोल, सात समंदर भी लोग रहे हैं बोल। अपना हो या गैर का रखती नहीं विचार, हिंदी ने हर शब्द को खोल दिए हैं द्वार...। हिंदी के प्रति बढ़ते रुझान पर महिला युवा साहित्यकार हेमा भट्ट तिवारी ने लिखा कि अंग्रेजी की शान में, झूमे पूरा साल। वह मिस्टर भी रो रहे, अब हिंदी के हाल। हिंदी की लोरी सुनी, हिंदी की फटकार।
हिंदी जननी सी सखे, नमन करूं सौ बार।। बाल रचना से युवा साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर ने बच्चों को संस्कारित करने का हिंदी के माध्यम से प्रयास किया है। महकाओ फिर से हर कोना, दूर करो पापी कोरोना...कड़वी गोली खानी हो तो सटक-सटक खा जाएंगे। बीमारी से लड़ना होगा। योगा भी अपनाएंगे। इनका कहना है कि शुद्ध सरल भाषा में लिखने से बच्चों का भी हिंदी के प्रति रुझान बढ़ेगा। कोरोना काल में जब एक दूसरे से दूरियां बढ़ी तो राजीव प्रखर ने अपनी सरल हिंदी में मुक्तक लिखे। साहित्यकारों का मानना है कि जटिल हिंदी को हर कोई नहीं समझ सकता।