आदमखोर तेंदुए के सामने 'भीगी बिल्ली' बन गया है वन विभाग
ठाकुरद्वारा में खूंखार तेंदुआ तीन बच्चों को मौत के घाट उतार चुका है और करीब २४ को जख्मी कर दिया है। वन विभाग तेंदुए के सामने भीगी बिल्ली बना हुआ है।
मुरादाबाद [राशिद सिद्दीकी] उत्तराखंड से यूपी के प्रवेशद्वार ठाकुरद्वारा में तेंदुए का आतंक है। यूं तो उत्तराखंड से आने वाली नदियों के साथ रामगंगा के किनारे बसे करीब सौ गांवों में सालों से तेंदुए की आमद है, लेकिन अब यह ज्यादा ङ्क्षहसक हो रहे हैं। मासूमों को निवाला बना रहे हैं। हालत यह है कि जिले की करीब तीन लाख की आबादी की जान खतरे में है और इसे रोकने की जिम्मेदारी निभाने वाला वन विभाग तेंदुए के सामने भीगी बिल्ली बना हुआ है।
नदी के किनारे रहते हैं तेंदुए
ठाकुरद्वारा तहसील में तेंदुए का सर्वाधिक खौफ है। यहां रामगंगा समेत ढेला, फीका आदि नदियों के किनारे अक्सर तेंदुए देखे जाते हैं। तेंदुए का जोड़ा बच्चों के साथ भी इन क्षेत्रों में घूमता हुआ देखा गया है। मौसम सर्द होने अथवा यह कहें कि गन्ने की खेती के दौरान तेंदुए की आमद बढ़ जाती है। तेंदुए खेत में छिप जाते हैं और शिकार करके भूख मिटाते हैं। इस साल ठाकुरद्वारा क्षेत्र में तीन बच्चों को तेंदुए मारकर खा चुके हैं। करीब 24 बच्चों पर हमला करके जख्मी कर दिया। कई मर्तबा महिलाओं और ग्रामीणों ने तेंदुए से मुकाबला करके बच्चों की जान बचाई है।
दहशत में हैं सौ गांव के बाशिंदे
रामगंगा नदी के किनारे वाले करीब 24 गांवों में दहशत की स्थिति यह है कि बिल्ली भी दिखती है तो लोग तेंदुए का शोर मचा देते हैं। इन गांवों में बच्चे घरों में कैद रहते हैं और महिलाएं खेतों पर नहीं जाती हैं। किसान भी अकेले खेत पर जाने से डरते हैं। इसलिए लोग समूह में जाते हैं। पुरुष रात में गांव की पहरेदारी करते हैं। पशुओं को भी अब घर के भीतर बांधा जा रहा है। रोजमर्रा के तमाम ऐसे काम हैं जो तेंदुए के खौफ के कारण नहीं हो पा रहे हैं।
पिंजरे में नहीं फंसता चतुर तेंदुआ
इस सबके बाद भी वन विभाग को अभी तक तेंदुओं को पकडऩे में सफलता नहीं मिली है। हैरानी यह है कि वन विभाग की ओर से लगाए गए पिंजरे में तेंदुआ आता ही नहीं है। कैमरे लगाने और ड्रोन कैमरे से तेंदुए की लोकेशन तलाशने की योजना भी विफल साबित हुई है। यही नहीं ग्रामीणों में विश्वास बहाल करने में भी वन विभाग नाकाम रहा है। इसलिए ग्रामीणों में तेंदुए के खौफ के साथ वन विभाग के खिलाफ आक्रोश भी है।
खेत पर गाने सुनें तो नहीं आएगा तेंदुआ
खेत पर किसान जाएं तो रेडियो और मोबाइल पर तेज आवाज में गाने सुनते रहें। इससे तेंदुआ पास नहीं आएगा। वन विभाग की यह सलाह अजीब है, लेकिन तेंदुए से बचाव के लिए कारगर बहुत है। प्रभागीय वन अधिकारी कन्हैया पटेल बताते हैं कि सतर्कता ही तेंदुए से बचाव है। गन्ने की फसल होने के दौरान नवंबर से फरवरी तक तेंदुए अधिक आते हैं। नदी किनारे के गांवों में रहना तेंदुए की जीवनशैली है। वैसे वह इंसानों पर हमला नहीं करता है, लेकिन तीन बच्चों की मारने की घटना से वह भी हैरान हैं। वह कहते हैं कि महिलाओं और बच्चों को खेत पर लेकर नहीं जाना चाहिए। पुरुष भी लाठी-डंडे साथ रखें। विभाग की लापरवाही और ग्रामीणों में गुस्से के सवाल पर बोले, तेंदुए की सतत निगरानी की जा रही है।
तीन मासूमों को खा गया तेंदुआ
तेंदुआ सालभर में तीन बच्चों को निवाला बना चुका है, जबकि 24 से 25 बच्चों को जख्म दे चुका है। पालतू और जंगली जानवर की तो संख्या ही नहीं है। तेंदुए ने पहला शिकार एक फरवरी की शाम मजदूर मुहम्मद यामीन के 13 साल के बेटे सुहैल को बनाया था। दूसरा शिकार ग्राम बालापुर के जंगल में 17 सितंबर को किया। गन्ने के खेत से निकलकर अपने मामा के साथ चारा लेने गए 10 साल के शिवा को निवाला बना लिया था। तीसरी घटना बीते शनिवार को ग्राम ख्वाजपुर की मंडैय़ा में हुई। राजेश सिंह जाटव की बेटी महिमा का तेंदुए ने शिकार किया।
ग्रामीणों के हौसले से इनकी बची जान
डिलारी के ग्राम मुनीमपुर में 19 सितंबर को वीर सिंह सैनी की ढाई साल की बेटी वंदना को मां शशि देवी की गोद से तेंदुआ छीन ले गया था। परिजनों ने घेरकर वंदना को छुड़ाया था। इसमें वंदना घायल हो गई थी। ग्रामीणों ने करनपुर-डिलारी मार्ग जाम कर दिया था। इसी दरमियान कोतवाली के ग्राम भगियावाला में किसान की बेटी पलक को तेंदुआ उठा ले गया था। ग्रामीणों ने तेंदुए को घेरकर बच्ची को छुड़ाया था। इससे पूर्व तेंदुआ खाईखेड़ा नहारवाला में सात साल के बालक अंकित पर हमला कर जख्मी कर दिया था। ग्राम अब्दुल्लापुर लेदा में मजदूर मुहम्मद यूनुस की बेटी अलफिजा को भी घर में घुसकर जख्मी कर दिया था। डिलारी के गुलडिय़ा माफी में ध्यान सिंह, विनोद कुमार, घासी राम और नृपेंद्र को तेंदुए ने जख्मी कर दिया था। पायदापुर में राजबहादुर को पंजे मार दिए तथा जाफराबाद में शाकिर की बेटी अलशिफा को घायल कर दिया था।
इन गांवों में गूंजती है तेंदुए की दहाड़
सुरजन नगर, जयनगर, बैरखेड़ा, बलिया, बहादुर नगर, रामपुर घोघर, शेरपुर बहलीन, बालापुर, मलकपुर, लालापुर, लालपुर, पानूवाला, राजूपुर, शहबाजपुर कला, विजयरामपुर, दारापुर, मदारपुर, रतूपुरा, रानीनांगल, ख्वाजपुर धनतला, रानीनांगल, अब्दुल्लापुर लेदा, बुधनगर, भगियावाला, रूपपुर टंडोला, कालावाला, लालावाला, गोपीवाला, कालाझांडा, मानपुर, नाखूनका, इस्लाम नगर, चटकाली, सिहाली खद्दर, दरियापुर रफातपुर, मुनीमपुर, रायभूड़, रामपुर बलभद्र समेत करीब सौ गांव। इसके अलावा कांठ के खादर क्षेत्र में भी अक्सर तेंदुआ आ जाता है।
जान हथेली पर रहती है हमारी
तेंदुए के आतंक वाले गांवों के लोग मानते हैं कि जान हर वक्त हथेली पर रहती है। महेंद्र सिंह, प्रधान बालापुर कहते हैं कि तेंदुए को पकडऩे में नाकाम रहने वाला वन विभाग ग्रामीणों में विश्वास बहाल करने में भी विफल रहा है। जिंदगी खौफ के साये में गुजर रही है। कुंडेसरा गांव के कुलभूषण बताते हैं कि तेंदुए के कारण खेतों में जाने से किसान अब डरने लगे हैं जिससे खेती में नुकसान हो रहा है। शासन और प्रशासन ने भी किसानों का दर्द समझने की कोशिश नहीं की है। मडैया गांव के शीशराम ने बताया कि बच्चों की जान की परवाह रहती है। बच्चों को स्कूल छोड़कर आने और लेकर आने की ड्यूटी भी निभानी पड़ रही है। घर में कोई नहीं होता तो बच्चे स्कूल नहीं जाते।
रायभूड़ के भानू प्रताप सिंह का मानना है कि तेंदुए के कारण पशुओं की जान पर बनी है। औरतें खेत पर नहीं जा रही हैं इसलिए अक्सर चारे की कमी के चलते पशु भूखे रह जाते हैं। सरकारी तंत्र का सहयोग नहीं मिलने से बेबस हैं।