कानून की सख्ती का असर, रामपुर में घट गए तीन तलाक के मामले, शरई अदालतें भी खाली
तीन तलाक पर कानून बनने के बाद लोग अपनी परेशानी का हल निकालने के लिये शरई अदालतों में आ रहे हैं पर तीन तलाक के मामले घटे हैं।
सम्भल, जेएनएन। तीन तलाक पर कानून बनने के बाद लोग अपनी परेशानी का हल निकालने के लिये शरई अदालतों में आ रहे हैं, पर तीन तलाक के मामले घटे हैं। छोटे मोटे झगड़े, तलाक हुआ या नहीं, बच्चो को लेकर पति-पत्नी का टकराव, वालिद की जयजाद में बेटी का हक, महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार आदि के मामले भी शरई अदालतों में पहुंच रहे हैं।
तीन तलाक पर कानूुन बने एक साल हो गया है। इस दौरान शरई अदालतों में तीन तलाक के मामलों में काफी कमी आई है। कानून बनने के बाद शरई अदालतों में हर महीने एक दो मामले ही आ रहे हैं, जबकि इसके पहले हर माह दस से बीस मामले तक आते थे। तीन तलाक कानून के असर से घरेलू हिंसा के मामले भी कम हुए हैं। कोरोना की वजह से खर्च को लेकर कुछ मामले बढ़े हैं। उलेमा ने बताया कि इस महीने में दो मामले तलाक के आए हैं। तीन तलाक को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। ज्यादातर मामले समझौते से सुलझ जाते हैं। कहते हैं कि शरई अदालत का मकसद तलाक कराना नहीं बल्कि मियां और बीवी की बीच झगड़ों को खत्म करना है।
तीन तलाक का कानून सरकार का राजनीतिक फैसला था। इससे मुस्लिम महिलाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आज भी सभी शरीयत व सुन्नत को मानते हैं। सरकार मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा, रोजगार पर अधिक ध्यान देती तो बेहतर होता।
मुहम्मद गुलनवाज खां एडवोकेट
तीन तलाक की प्रथा के समाप्त होने से मुस्लिम समाज की महिलाओं में संतोष व सुरक्षा की भावना है। मुस्लिम महिलाओं का भविष्य सुधारने का मार्ग सरकार ने प्रशस्त किया गया है। मुस्लिम समाज की महिलाओं में खुशी की लहर है।
छत्रपाल सिंह यादव, सचिव, तहसील बार एसोसिएशन, चन्दौसी
तीन तलाक कानून से मुस्लिम महिलाओं को काफी लाभ हुआ है। कानूनन यह अपराध की श्रेणी में आता है। तीन तलाक में सबसे बड़ी कमी उस महिला के भरण पोषण की थी। अब तीन तलाक देना आसान नहीं होगा।
रंजना शर्मा, एडवोकेट
तीन तलाक प्रथा खत्म कर उसका आपराधिक तरीके से ट्रायल किया जाना मुस्लिम महिलाओं के हित में प्रशंसनीय कदम है। हम इसके लिए सरकार का आभार व्यक्त करते हैं। इससे मुस्लिम महिलाओं को न्याय मिलेगा।
नवनीत यादव, एडवोकेट