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आधुनिक तकनीक से बच रही नवजात के जीवन की डोर

रविवार को मुरादाबाद एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स की सीएमई कांठ रोड स्थित होटल में हुई।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 09:05 AM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 09:05 AM (IST)
आधुनिक तकनीक से बच रही नवजात के जीवन की डोर

मुरादाबाद : रविवार को मुरादाबाद एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स की सीएमई कांठ रोड स्थित होटल अमारा में हुई। सीएमई की शुरुआत अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र शर्मा, सचिव डॉ. शांतनु दत्त ने अतिथि चिकित्सकों का स्वागत से की। तीन सेशन में हुई सीएमई में चिकित्सकों ने नवजात बच्चों की गंभीर बीमारियों पर चर्चा की।

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बताया गया कि जो बच्चे छह या सात माह में होते हैं उनकी जिंदगी बचाने में भी अब अस्पताल सक्षम हैं। दावा किया गया कि पांच सौ ग्राम के बच्चे को भी बचाया जा रहा है। आधुनिक दौर में बच्चों को बचाने के लिए लक्षण पहचानने की जरूरत है। दिल्ली के रेनबो चिल्ड्रंस अस्पताल के क्लीनिकल डायरेक्टर एंड वरिष्ठ कंसलटेंट डॉ. प्रवीण खिलनानी ने बताया कि कम दिन के बच्चों के लिए पहले काफी दुश्वारी थी, लेकिन अब सब मुमकिन है। हमारे अस्पताल में नवजात से लेकर 18 साल तक के बच्चों का इलाज किया जा रहा है। बच्चे के परीक्षण के साथ ही उसकी जिंदगी बचाने का प्रयास किया जाता है। इसके बाद डॉ. नवीन कुमार, डॉ. रवि गंगल, डॉ. सुनील कुमार खट्टर, डॉ. गौरव त्यागी, डॉ. अनुराग खन्ना, डॉ. वीएस दीक्षित, डॉ. राजेंद्र कुमार, डॉ. वीके सक्सेना आदि चिकित्सक थे। ये बोले डॉक्टर

कई बार बच्चे मां के पेट में पेशाब या पॉटी कर देते हैं। उन बच्चों को सांस की परेशानी हो जाती है। इसके लिए आधुनिक उपकरण उपयोग करके उनकी जिंदगी बचाई जा रही है। इसके अलावा कई बार समय से पहले प्रसव वाले बच्चों को भी काफी परेशानी होती है। जो बच्चे जन्म के फौरन बाद नहीं रोते हैं। उनका भी इलाज किया जा रहा है।

डॉ. नवीन प्रकाश गुप्ता, फिजिशियन बीस फीसद बच्चों को सर्जरी की जरूरत

समय से पहले होने वाले तकरीबन 20 फीसद बच्चों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। पेट दर्द से लेकर सांस तेज चलने की भी समस्या कॉमन देखने को मिलती है। बच्चों की सभी तरह की सर्जरी पूरी तरह संभव है। बस जरूरत है तो उन्हे सही से दिल्ली तक लाने की। कई बच्चों में बनावटी परेशानी जैसे रीढ़ की हड्डी का फोड़ा भी देखने को मिलता है। उन्हें भी आपरेशन से ठीक किया जा सकता है।

डॉ. संदीप सिंहा, सर्जन जांच से परेशानी का पता चल जाता है

गर्भवती महिला के अल्ट्रासाउंड में बच्चे की परेशानी का पता चल जाता है। कई बच्चे किडनी इंफेक्शन से पीड़ित भी होते हैं। इसके लिए वाटर बैग वाल्यूम देखना जरूरी होता है। किडनी से पीड़ित बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ती, ज्यादा पानी पीते हैं, ज्यादा टॉयलेट जाते हैं। पांच साल का बच्चा अगर बिस्तर में टॉयलेट कर लेता है तो उसका स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी है।

डॉ. अमित अग्रवाल, नेफ्रोलॉजिस्ट


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