नामवर सिंह के निधन से साहित्य जगत शोकाकुल, मुरादाबाद के साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि
491,हिंदी के प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का मंगलवार देर रात एम्स के ट्रामा सेंटर में निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई। लेखकों, आलोचकों और साहित्यकारों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।
मुरादाबाद : हिंदी के प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का मंगलवार देर रात एम्स के ट्रामा सेंटर में निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गई। लेखकों, आलोचकों और साहित्यकारों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।
मुरादाबाद के साहित्यकारों में शोक
मुरादाबाद के साहित्यकारों ने सूचना मिलने के साथ ही सोशल मीडिया पर डॉ. नामवर सिंह को श्रद्धांजलि देना शुरू कर दिया। साहित्य जागरण वाट्सएप ग्रुप पर नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम लिखते हैं डॉ. नामवर सिंह हिंदी साहित्य के बड़े रचनाकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। वह हिंदी साहित्य जगत के बड़े समालोचकों में थे। हिन्दी साहित्य में आलोचना पक्ष की यह बड़ी क्षति है। बीते वर्ष 2018 में और अब 2019 के आरंभ से ही साहित्य के बड़े-बड़े हस्ताक्षरों का जाना, भीतर तक झकझोरता है। कुमार रवीन्द्र, पुष्पेंद्र वर्णवाल, ज्ञानवती सक्सेना, शंकर सुल्तानपुरी, डॉ अर्चना वर्मा, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी और अब डॉ. नामवर सिंह जैसे बड़े साहित्यकार अलविदा कह गए। आखिर चाहता क्या है यह समय। वहीं शायर जिया जमीर ने लिखा है कि हिंदी में आलोचना शब्द आते ही जिस तेजी से उनका चेहरा जहन में उभरता है वह उनके कद को साबित करता है । इसके साथ ही हेमा भट्ट तिवारी, डॉ. राकेश चक्र, कृष्ण कुमार नाज, राजीव प्रखर, डॉ. अर्चना गुप्ता, श्रीकृष्ण शुक्ल, रीता सिंह ने विदेश से श्रद्धांजलि अर्पित की। डा. अजय अनुपम ने कहा कि हिंदी साहित्य के एक युग का अवसान हो गया है। शीर्ष पंक्ति का शून्य बडा़ हो गया है। अब नये पत्ते तेज धूप सहने का साहस बटोर कर आगे बढऩा सीखेंगे। नामवर जी को विनम्र श्रद्धांजलि। प्रख्यात शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि नामवर जी का जाना केवल सृजनात्मक साहित्य की ही नहीं साहित्यिक आलोचना की भी महान क्षति है। इस कमी का पूरा होना बहुत मुश्किल नजर आता है। इस ज्ञान सागर को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
यशभारती पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ नवगीतकार माहेश्वर तिवारी तिवारी लिखते हैं कि समकालीन हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह का जाना आलोचना के परिसर को गहरे शून्य से भर गया है । उनकी आलोचना देशज शब्दों में बतकही और शुद्ध हिंदी में विमर्श की पद्धति की आलोचना थी । कविता के नये प्रतिमान और दूसरी परम्परा की खोज उनके कृतित्व के आयाम कहे जा सकते हैं। उनके साथ मंच साझा करने के कई अवसर मिले जिसमें दस बारह वर्ष पहले रामपुर का एक आयोजन, देवास , म.प्रदेश के नईम स्मृति समारोह प्रमुख है । नामवर जी के गद्य की ही तरह उनकी बतकही परक आलोचना भी महत्वपूर्ण रही। वे एक कुशल अध्यापक ,वक्ता और अपने जीवन के प्रथम अध्याय में एककुशल गीतकार भी रहे। हिंदी के सृजनात्मक फलक से उसका आईना खो गया है जिसमें झांककर सृजनधर्मी अपना अक्स देखा करते थे।
एम्स के ट्रामा सेंटर में हुआ नामवर सिंह का निधन
नामवर सिंह जनवरी में अचानक अपने कमरे में गिर गए थे जिसके बाद उन्हें एम्स के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया था। उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ था और उनकी हालत में सुधार भी हो रहा था तभी मंगलवार रात अचानक उनके निधन की खबर से समूचा साहित्य जगत शोकाकुल हो गया।
नामवर की जीवनी और उपलब्धियां
नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1926 को बनारस (वर्तमान में चंदौली जिला) के एक गांव जीयनपुर में हुआ था। लंबे समय तक 1 मई 1927 को उनकी जन्म-तिथि के रूप में माना जाता रहा है और नामवर जी स्वयं भी अपना जन्म-दिवस इसी तारीख को मनाते रहे हैं, लेकिन यह वस्तुत: स्कूल में नामांकन करवाते वक्त लिखवाई गई तारीख थी। उन्होंने हिंदी साहित्य में एमए व पीएचडी करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। 1959 में चकिया चंदौली से लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद उन्हें बीएचयू छोडऩा पड़ा। बीएचयू के बाद नामवर सिंह ने सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उन्होंने काफी समय तक अध्यापन कार्य किया। नामवर सिंह को कविता के नए प्रतिमानÓ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से साहित्य भूषण सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से शब्दसाधक शिखर सम्मान- 2010 (पाखी तथा इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी की ओर से) महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान - 21 दिसंबर 2010 दिया जा चुका है। वह हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक काशीनाथ सिंह के भाई थे।