अमिट रचनाओं से हमेशा जीवंत रहेंगी साहित्य शिरोमणि कृष्णा सोबती
साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार, हिंदी अकादमी अवार्ड, शिरोमणि पुरस्कार, शलाका सम्मान। शायद ही हिंदी साहित्य का ऐसा कोई अवार्ड रहा हो जिससे लेखिका कृष्णा सोबती को सम्मानित न किया गया हो। 94 वर्ष की आयु में शुक्रवार को उनका निधन हो गया। इस पर साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
मुरादाबाद (जेएनएन)। साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार, हिंदी अकादमी अवार्ड, शिरोमणि पुरस्कार, शलाका सम्मान। शायद ही हिंदी साहित्य का ऐसा कोई अवार्ड रहा हो जिससे लेखिका कृष्णा सोबती को सम्मानित न किया गया हो। 94 वर्ष की आयु में शुक्रवार को उनका निधन हो गया। इस पर साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। हर किसी ने कहा कि वह भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन कभी न मिटने वाली रचनाओं के माध्यम से वह हमेशा हम सभी के बीच रहेंगी। उन्होंने अपने साहित्य सृजन के माध्यम से हिंदी को नई दिशा दी। विश्व पटल पर उनकी रचनाओं को सराहा गया। अपने लेखन से उन्होंने समाज को स्त्री की महत्ता का बोध कराया।
जिंदगी नामा और मित्रों मरजानी जैसी कालजयी कृतियां कृष्णा सोबती की कलम से निकलीं, जिन्होंने हिंदी कथा एवं उपन्यास साहित्य को गहरा और अधिक सम्मानजनक बना दिया। उनका जाना सिर्फ एक बड़े साहित्यकार का जाना नहीं है बल्कि विभाजन के पहले की जो सांझी मिट्टी थी, उसका जाना है। जिसकी भरपाई नामुमकिन है।
जिया जमीर, शायर
कृष्णा सोबती हिंदी कहानी की महत्वपूर्ण लेखिकाओं में थीं। अपनी रचना के माध्यम से उन्होंने कहानियों की विषयवस्तु और भाषा को नयापन दिया है। उनकी रचनाओं से हिंदी साहित्य का भंडार समृद्ध हुआ है। वह नारी अस्मिता को जीवंत करने वाली लेखिका थीं। उनका निधन हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति है।
कृष्ण कुमार नाज, साहित्यकार