नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया अटल ने
मुरादाबाद। अटल बिहारी वाजपेयी का संस्मरण साझा करते हुए साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल कहते हैं।
मुरादाबाद। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संस्मरण साझा करते हुए महानगर के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल कहते हैं कि सन 1965-66 की बात है। मैं हाईस्कूल में पढ़ता था। तब अटल जी मुरादाबाद आए थे। पहली बार अटल जी को मैंने तब ही सुना था। निरंतर धारा प्रवाह वाणी, शब्द मानो कविता के रूप में बह रहे थे। उनकी भाव भंगिमा और बीच-बीच में मनोविनोद और चुटीला अंदाज, मेरे मन पर अंकित हो चुका था। उसके पश्चात मुझे जब भी मुरादाबाद या उसके आसपास उनके आने की सूचना मिलती उन्हें सुनने जाता। संयोग से मेरा विवाह उस परिवार में हुआ जो जनसंघ से जुड़ा था। मेरी पत्नी उन्हें ताऊ जी कहती थीं।
उन्होंने कहा कि सन् 1972 में वह काशीपुर हमारी ससुराल में भी आए थे। हमारे ससुर अक्सर उनसे जुड़े संस्मरण सुनाते रहते थे। उनकी कविताओं में देश प्रेम और हिन्दुत्व का संपूर्ण दर्शन समाहित था। भारत उनके लिए सिर्फ भूमि का टुकड़ा नहीं था बल्कि जीता जागता राष्ट्र पुरुष था। उन्होंने राजनीति में कभी भी नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। सबसे बड़ा दल होने के बाद भी तेरह दिन में विश्वास मत भाषण के पश्चात सरकार से त्याग पत्र दे दिया। फिर एक वोट से तेरह माह की सरकार गिरने दी, लेकिन तोड़ फोड़ की राजनीति नहीं की।
ऐसे युग दृष्टा, उदारमना सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी, प्रखर वक्ता, ओजस्वी कवि, विलक्षण राजनेता के चले जाने से भारतीय राजनीति में ऐसा शून्य बन गया है। जिसकी पूर्ति असंभव है। बातचीत के दौरान अपनी चार पंक्तियों से श्रद्धाजलि अर्पित करते हुए कहते हैं-
युगपुरुष चला गया, शून्य व्याप्त हो गया
मौत से रही ठनी, चली रही तनातनी।
काल के कपाल पर, चल रही थी लेखनी
यकायक जीवन का ज्योति दीप बुझ गया।।