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75 years of Independence: देश के विभाजन का दर्द झेला, पाकिस्‍तान से आकर खड़ा कर दिया सफलता का साम्राज्‍य

75 years of Independence बंटवारे के समय ओम प्रकाश अरोरा पाकिस्तान के हिस्से में आए झंग में रहते थे। पाकिस्तान का गठन होते ही फैसला लिया कि रहेंगे तो भारत के साथ। ओम प्रकाश अरोरा ने यहां आने में देरी नही की।

By Vivek BajpaiEdited By: Published: Sat, 13 Aug 2022 04:50 PM (IST)Updated: Sat, 13 Aug 2022 04:50 PM (IST)
75 years of Independence: अपने चार भाइयों के साथ ओमप्रकाश अरोरा (दाएं से दूसरे)। फोटो-स्वजन

मुरादाबाद, (संजय रुस्तगी)। 75 years of Independence: ये माटी अपनी थी इसलिए विभाजन के वक्त जान हथेली पर रख इधर चले आए। अब यहां जो मिले वह अजनबी थे लेकिन अपने थे। मदद के साथ उनके मीठे बोल राहत दे रहे थे। फिर भी लंबे समय तक रोजी-रोटी की चुनौती थी। ऐसे में मनोबल और संघर्ष से ही सफर तय होना था।

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अरोरा परिवार  का पंजाब साइकिल स्टोर। यह ही पहला प्रतिष्ठान है। जागरण 

अरोरा परिवार ने यह कर दिखाया। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दर्द (Pain of Partition) की यादों के बीच अब सफलता का कारवां है। दो वक्त की रोटी के लिए गलियों में फेरी लगाकर साइकिल ठीक करते हुए पंजाब साइकिल स्टोर स्थापित किया, जो अब शहर की पहचान है। इसके साथ दो साइकिल स्टोर, मुरादाबाद व गजरौला में तीन होटल (प्रेम चुनरिया, क्लार्क इन व जंगल सफारी), प्रेम कलर लैब, प्रेम टूर एंड ट्रेवल्स, प्रेम वंडर लैंड सहित कई प्रतिष्ठानों की चेन है।

बंटवारे के समय ओम प्रकाश अरोरा पाकिस्तान के हिस्से में आए झंग में रहते थे। पाकिस्तान का गठन होते ही फैसला लिया कि रहेंगे तो भारत के साथ। ओम प्रकाश अरोरा ने यहां आने में देरी नही की। जान हथेली पर रख नई सीमा पार कर हिंदुस्तान आ गए। उस वक्त के किस्से याद करते ही सतीश अरोरा थोड़े उदास हो गए।

सतीश अरोरा।  फोटो स्वयं 

बोले- दादा जोधा राम व पिता ओम प्रकाश अरोरा के साथ परिवार ने महसूस किया सम्मान से जिंदगी के दो ही विकल्प हैं। हिंदुस्तान की माटी में ही मिला जाए। ऐसे में झंग में घर छोड़ा, सब्जी की आढ़त छोड़ी और लाखों की जमीन जायदाद भी छोड़ सीमा पार की। सवाल था कहां जाएं, तो मुरादाबाद में कई परिचित थे।

उनके भरोसे यहीं आ गए, पर बोझ किसी पर नहीं बने। गली-मुहल्लों में आवाज लगाकर साइकिल सही कीं। समय के साथ बदलाव किया और पंजाब साइकिल स्टोर के नाम से अपना व्यवसाय शुरू किया। पिता ओमप्रकाश मुरादाबाद में दिन में तो दुकान पर रहते थे और रात में चोरी के डर से दुकान पर ही सोते थे।

ऐसे में उनसे रविवार को स्कूल की छुट्टी होने पर ही मुलाकात होती थी। इसके बाद दूसरे स्टोर, इसी बीच होटल कारोबार में भाग्य आजमाया। कलर फोटो आने पर प्रेम कलर लैब की स्थापना की। माता-पिता तो अब नहीं रहे। चाचा भी कारोबार में हाथ बंटाते हैं। एक होटल, टूर एंड ट्रेवल्स व कलर लैब चाचा के नाम से ही है। परिवार का मेहनत करना ही मूलमंत्र रहा। वर्तमान में परिवार में 46 सदस्य हैं।

हर कदम पर था मौत का साया

सतीश अरोरा बताते हैं कि उनके पिता बताते थे कि विभाजन की घोषणा के साथ ही पाकिस्तान के हिस्से में हिंदुओं का उत्पीड़न शुरू हो गया। लिहाजा दादा जोधाराम, दादी पार्वती देवी, मां कौशल्या, ताऊ किशन लाल व चाचा प्रेमनाथ अरोरा सहित पूरा परिवार रातोंरात कई किलोमीटर पैदल चला। रास्ते में बैलगाड़ी से सफर किया। आखिर खचाखच भरी ट्रेन से अमृतसर पहुंच गए। उस समय चाचा सिर्फ छह माह के थे। कई जगह जान को खतरा था। लुधियाना व जालंधर में पिता ने मजदूरी और रेलवे स्टेशन पर कुलीगीरी भी की।

मुरादाबाद आने की रोचक कहानी

सतीश बताते हैं कि लुधियाना व जालंधर से स्वजन का हरिद्वार आना रहता था। पलायन के बाद अन्य शहरों में बसे लोग भी हरिद्वार आते थे। वहां पुरोहित से अन्य रिश्तेदारों के रुद्रपुर (उत्तराखंड) व मुरादाबाद में होने की जानकारी मिली। एक-दूसरे से बात होने लगी। एक रिश्तेदार के प्रयासों से परिवार मुरादाबाद आकर बस गया। उन्होंने बताया कि परिवार का कारोबार अलग है, लेकिन महीने में एक-दो बार सभी साथ बैठते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुख बांटते हैं।

ननिहाल वाले छह माह पहले आ गए थे

सतीश बताते हैं कि उनकी ननिहाल सम्भल में हैं। नाना मुंशीराम गंभीर भी मूल रूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे। वह विभाजन के बाद की परिस्थितियों को भांप गए थे और छह माह पहले ही सम्भल में आकर बस गए थे। मां-पिता की शादी भारत में आकर ही हुई थी।


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