Move to Jagran APP

160 साल बाद अदभुत संयोग, पांच माह का चर्तुमास, एक माह बाद पड़ेगा नवरात्र

Amazing coincidence घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम) में लगाएं- ऐसे चित्र देवी-देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय हैं श्रद्धा के प्रतीक हैंहैं।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 03:50 PM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2020 03:50 PM (IST)
160 साल बाद अदभुत संयोग, पांच माह का चर्तुमास, एक माह बाद पड़ेगा नवरात्र

सम्भल, जेएनएन।  इस वर्ष 2020 में सब कुछ बदल गया है। हमारे जीने के तौर-तरीकों से लेकर पूजा-पाठ से जुड़े संयोगों और मुहूर्तों तक में बदलाव आया है। अमूमन चार महीने रहने वाला चतुर्मास इस साल पूरे पांच महीने का हो गया है। वहीं, लीप वर्ष के कारण अधिक मास दो महीने का हो गया है, जहां आमतौर पर श्राद्ध समाप्ति के अगले दिन नवरात्र आरंभ हो जाते थे, वहीं इस बार नवरात्र लगभग एक महीने के अंतराल के बाद होंगे। ऐसा संयोग 160 साल बाद पड़ा है।

loksabha election banner

शहर के कोट पूर्वी निवासी पंडित शोभित शास्त्री ने बताया कि पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है। श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों को एक विशेष समय में 15 दिनों की अवधि तक सम्मान दिया जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है? तो उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है। तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना गया है। इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे। इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा- नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा। चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे। दिवंगत स्वजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। 

श्राद्ध विधि

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र को भी होता है।

जिस तिथि को जिसका निधन हुआ हो, उसका श्राद्ध उसी दिन किया जाता है. यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा को हुई है तो उसे उसी तिथि पर श्रद्धा के साथ याद किया जाना चाहिए. देहावसान की तारीख मालूम न होने की अवस्था के लिए भी कुछ सरल नियम बनाए गए हैं। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमी पर किया जाना चाहिए। जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात के कारण या अचानक हुई हो, उनका चतुदर्शी का दिन नियत है. साधु-सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी पर किया जाना चाहिए। जिनके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है.। इसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।

आचार्य पं शोभित शास्त्री सम्भल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.