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मां गंगा के आंचल में बसी एक अनूठी दुनिया moradabad news

गंगा के तट पर लगने वाला ऐतिहासिक तिगरी मेला आज भी अपने आगोश में ग्रामीण परिवेश को समेटे हुए पुराने भारत की झलक दिखा रहा है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 07:58 AM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 07:58 AM (IST)
मां गंगा के आंचल में बसी एक अनूठी दुनिया moradabad news
मां गंगा के आंचल में बसी एक अनूठी दुनिया moradabad news

गजरौला (सौरव प्रजापति)। गंगा के तट पर लगने वाला ऐतिहासिक तिगरी मेला आज भी अपने आगोश में ग्रामीण परिवेश को समेटे हुए पुराने भारत की झलक दिखा रहा है। दस दिनों तक श्रद्धालु यहां पर ऐसे बस जाते हैं कि मानों वह यहां के स्थानीय निवासी हो।

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बदले दौर की आधुनिक चकाचौंध से भी दूर रहते हैं। यहां तो सिर्फ मां गंगा में गोता गलाया और खिचड़ी खाई। बाद में मेले का लुत्फ उठाने के लिए निकल पड़े। यह क्रम एक दिन नहीं बल्कि दस दिनों तक जारी रहता है।

जी हां, हवा में उड़ रही गंगा की रेत चेहरे पर ऐसे लिपट जाती है जैसे मानों धरती  भभूत लगाकर हर किसी को वैरागी बना देना चाह रही हो। ङ्क्षचताएं यहां खुद-ब-खुद खत्म हो जाती हैं।

हर चेहरे पर खुशियां बांटने की उत्सुकता दिखाई देती है। गंगा स्नान, खिचड़ी का भोज, चांदनी रात में गंगा किनारे रेत में चहल कदमी बस इतना ही मुख्य कार्यक्रम है। मुरादाबाद से पहुंचे सुरेश कुमार, प्रबल कुमार, राजीव कुमार कहते हैं कि ङ्क्षजदगी जीने के लिए इससे ज्यादा क्या चाहिए। कई सालों से मेले में पहुंचते हैं। अलग ही आनंद आता है।

उधर, गंगा के दूसरे छोर पर बसा गढ़ मेला भी इसी तरह गुलजार हो चुका है। तिगरी से पार के मेला का दृश्य साफ नजर आ रहा है। वहां पर भी घाटों पर आस्था हिलोरें ले रही है।

हुक्के की गुडग़ुड़ाहट और ताश का मजा

तिगरी मेले में पहुंचकर आपको अहसास हो जाएगा कि वाकई यहां का परिवेश ग्रामीण है। चूंकि मेले में पहुंचने के बाद श्रद्धालु हुक्का गुडग़ुड़ाते हुए बातचीत करते हैं। बहुत से श्रद्धालु ताश के पत्ते खेलकर मनोरंजन करते हैं। यही कारण है कि बदलते दौर में भी तिगरी मेला अपनी अनूठी पहचान बनाए हुए हैं। युवा ट्रैक्टर-ट्रालियों पर सवार होकर मेले में घूमते नजर आ रहे हैं।


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