जल संचय की अनूठी मिसाल सुरभि का रामबाग प्रकल्प
चुनार (मीरजापुर) : डेढ़ दशक पहले उजाड़ बना चुनार का बड़ा क्षेत्र अब हरियाली का पर्याय बना हुआ है। यहां
चुनार (मीरजापुर) : डेढ़ दशक पहले उजाड़ बना चुनार का बड़ा क्षेत्र अब हरियाली का पर्याय बना हुआ है। यहां बनाए गए चेक डैम सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए जल संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण है। सुरभि शोध संस्थान के रामबाग प्रकल्प में बारिश के दिनों में नाले में बहकर पहाड़ों से आने वाले पानी को संचित करने के लिए छह चेक डैम का निर्माण कराया गया है। संस्थान के कार्यकर्ताओं की मेहनत का नतीजा है कि यहां पर संचित होने वाले वर्षा जल का उपयोग सालभर होता है। यही नहीं, परिसर में करीब 50 बीघे भूमि की ¨सचाई भी इसी पानी से की जाती है। बारिश के पानी को संचित करने से इस क्षेत्र का भूजल स्तर भी बना रहता है। इसकी वजह से आसपास का पूरा क्षेत्र हराभरा हो गया है। बारिश के संचित जल से ही यहां आम, अमरूद, बेल, महुआ समेत चार सौ फलदार व छायादार पेड़ों की ¨सचाई होती है। साथ ही सालभर आठ बीघे में सब्जियों की जैविक खेती की जाती है।
सुरभि शोध संस्थान के रामबाग प्रकल्प में बारिश के दिनों में नाले में बहकर पहाड़ों से आने वाले पानी को संचित करने के लिए बनाए गए चेक डैम जल संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण हैं। करीब डेढ़ दशक पहले तक यह इलाका उजाड़ हुआ करता था, लेकिन सुरभि शोध संस्थान के निदेशक सूर्यकांत जालान की सकारात्मक सोच और कार्यकर्ताओं द्वारा उस को साकार रूप देने के लिए की गई मेहनत का नतीजा है कि यहां पर संचित होने वाले वर्षा जल का उपयोग सालभर होता है। यही नहीं, परिसर में करीब 50 बीघे कृषि भूमि की ¨सचाई भी इसी पानी की जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि बारिश के इस पानी को संचित करने से इस क्षेत्र का भूगर्भ जलस्तर भी मेंटेंन बना रहता है।
----------------------- नाले पर बनाए गए 6 चेक डैमों से सहेजते हैं जल की बूंदे
प्रकल्प की दक्षिण दिशा में ऊपर पहाड़ से बह कर आने वाले नाले पर बनाए गए 6 चेक डैमों से वर्षा के जल को संचित किया जाता है। एक-एक बूंद का उपयोग सब्जी की खेती एवं पेड़ों की ¨सचाई में किया जा रहा है। पहाड़ से शुरू हुए लगभग एक किलोमीटर लंबे नाले को बांधकर वर्षा जल का संचय इस तरह से किया गया है कि बरसात में भी पानी व्यर्थ बहकर नहीं जाने पाता है। उसी से भू गर्भ जल स्तर भी बना हुआ है। सुरभि शोध संस्थान द्वारा जल संरक्षण का एक अनूठा नमूना पेश किया है। यदि सिर्फ सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहते तो शायद यह ²श्य नजर न आता।
कभी एकदम वीरान रहने वाला यह इलाका आज हरा-भरा है और कैंपस के अंदर चहुंओर हरियाली है। चेकडैम के सहारे संचित बारिश के पानी से ही परिसर के अंदर करीब आम, अमरूद, बेल, महुआ समेत करीब चार सौ फलदार व छायादार पेड़ों की ¨सचाई होती है और पूरे साल करीब पांच से आठ बीघे में सब्जियों की जैविक खेती की जाती है।
----------------------- गायों के पेयजल का भी है साधन
परिसर में बनाई गई गौशाला में रह रही करीब डेढ़ सौ गायों के पेयजल की व्यवस्था भी इसी पानी से की जाती है। संस्थान के अमित चतुर्वेदी व दीपक ¨सह ने बताया कि सिर्फ वर्षा जल को संचित करना ही उद्देश्य नहीं है हमारे इस प्रकल्प में उसी संचित जल ये वाटर रिचार्जिंग होती है। जिससे पूरे साल हमारे परिसर व आसपास का वाटर लेबल मेंटेंन रहता है। यहां संचित जल का उपयोग नौ से दस महीने तक होता है। गर्मी की सीजन शुरू होते ही चेकडैम सूखने लगता है। मई और जून दो महीने तक पानी बिल्कुल नहीं रहता है। आसपास के लोगों को भी इस प्रयास से सबक लेना होगा। तभी जल संरक्षण की योजना कारगर रूप ले सकेगी।
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