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न्याय की आस में रामलखन खंड़हर में रहने को विवश

थाना क्षेत्र के महंगीपुर गांव के राम लखन अग्रहरि को लगभग 40 वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिल पाया। न्याय की आस में चक्कर काटते उनके बाल काले से सफेद हो गए तथा आज भी अपने जमीन पर कानूनी दांव-पेच के बीच खंडहर में रहने पर मजबूर है तथा घर बनाने का सपना अधूरा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 06:24 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 06:24 PM (IST)
न्याय की आस में रामलखन
खंड़हर में रहने को विवश
न्याय की आस में रामलखन खंड़हर में रहने को विवश

जासं, चील्ह (मीरजापुर) : थाना क्षेत्र के महंगीपुर गांव के राम लखन अग्रहरि को लगभग 40 वर्ष बाद भी न्याय नहीं मिल पाया। न्याय की आस में चक्कर काटते उनके बाल काले से सफेद हो गए तथा आज भी अपने जमीन पर कानूनी दांव-पेच के बीच खंडहर में रहने पर मजबूर है तथा घर बनाने का सपना अधूरा है।

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थाना क्षेत्र के महंगीपुर गांव निवासी राम लखन अग्रहरि ने बताया कि गांव में ही वर्ष 1979 में पांच बिस्वा जमीन बैनामा करा कर उस पर कच्चा घर बना कर परिवार सहित रहा करते हैं। उसी जमीन को लेकर पड़ोसी से विवाद हो गया। पड़ोसी ने सात फरवरी 1981 को एसडीएम सदर के यहां दावा दाखिल किया। एसडीएम सदर ने दोनों के विवाद को देखते हुए 12 मार्च को 145 के तहत कार्रवाई कर दिया। अंतत: एसडीएम सदर ने 34 वर्ष बाद दफा 145 की कार्रवाई के प्रभाव से मुक्त करते हुए दावा खारिज कर दिया। तब तक कच्चा घर खंडहर चुका था। बताया जाता है कि एसडीएम द्वारा दावा खारिज करने के पश्चात पड़ोसी ने पुन: जिलाधिकारी के यहां उक्त बैनामा को निरस्तीकरण का मुकदमा दाखिल किया, कितु जिलाधिकारी ने भी बलहीन बताते हुए दावा को खारिज कर दिया। जिलाधिकारी द्वारा विपक्षी का दावा खारिज होने के पश्चात जब राम लखन अग्रहरि ने घर बनवाना चाहा तो पड़ोसी ने कुछ जमीन अतिक्रमण कर घर बनाने से रोक दिया। पीड़ित ने आरोप लगाते हुए बताया कि तब से अब तक मुख्यमंत्री से लेकर लेखपाल तक तहसील दिवस से लेकर समाधान दिवस तक न्याय की गुहार में पत्राचार करते रहे। किन्तु न्याय में उन्हें मात्र जांच प्रक्रिया में उलझी पत्रावली और उन्हें दौड़-धूप ही मिला।


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