परिवहन पर भारी डग्गामारी, उपरौध क्षेत्र की उपेक्षा बन रहा चुनावी मुद्दा
देश में सर्वाधिक पिछड़े तहसील का दर्जा प्राप्त आदिवासी बाहुल्य लालगंज तहसील की लगभग तीन लाख आबादी इलाहाबाद व मीरजापुर परिवहन विभाग ने सुविधा से वंचित कर रखा है। इसकी मुख्य वजह जनप्रतिनिधियों की उदासीनता तथा प्रशासनिक शिथिलता मान सकते है। उनके उपेक्षा के चलते इतनी बड़ी आबादी के लोग परिवहन की सुविधा से दूर है और डग्गामार वाहन से आवागमन करने के लिए विवश है। लोकसभा चुनाव में इसे स्थानीय मुद्दा बनाने की जोरदार चर्चा क्षेत्र के लोग कर रहे है।
जागरण संवाददाता, लालगंज (मीरजापुर) : देश में सर्वाधिक पिछड़े तहसील का दर्जा प्राप्त आदिवासी बाहुल्य लालगंज तहसील की लगभग तीन लाख आबादी इलाहाबाद व मीरजापुर परिवहन विभाग ने सुविधा से वंचित कर रखा है। इसकी मुख्य वजह जनप्रतिनिधियों की उदासीनता तथा प्रशासनिक शिथिलता मान सकते है। उनके उपेक्षा के चलते इतनी बड़ी आबादी के लोग परिवहन की सुविधा से दूर है और डग्गामार वाहन से आवागमन करने के लिए विवश है। लोकसभा चुनाव में इसे स्थानीय मुद्दा बनाने की जोरदार चर्चा क्षेत्र के लोग कर रहे है।
उपरौध क्षेत्र की सुरक्षित छानबे विधानसभा को परिवहन विभाग की उपेक्षा झेलना पड़ रहा है। क्षेत्र की सभी प्रमुख मार्गों पर डग्गामार वाहन चलते है। राहगीरों को यात्रा के मुख्य प्राइवेट वाहन है। कभी प्रमुख सड़कों पर परिवहन की बसें चला करती थी जो वर्तमान में बंद कर दी गई है। वर्ष 1984 में अमिताभ बच्चन जब इलाहाबाद के सांसद चुने गए थे उस समय इलाहाबाद वाया लालगंज-घोरावल तक नई-नई बसें चलाई गई थी लेकिन बाद में इसे डग्गामारी के लिए बंद करा दिया गया। विकास के दौर में इस समय सरकारी कार्यालयों में काम करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। रोजमर्रे के कार्य से सरकारी कर्मचारियों का आना-जाना दिनभर लगा रहता है। इसके साथ इलाहाबाद-मीरजापुर आवागमन करने वाले प्रतिदिन हजारों की संख्या में रहते है। ग्रामीणों ने बताया कि लोकसभा चुनाव में परिवहन बस सेवा की चर्चा होगी। मीरजापुर के दक्षिणांचल स्थिति उपरौध क्षेत्र को जनप्रतिनिधियों ने उपेक्षित कर रखा है क्योंकि यह तहसील प्रदेश के बार्डर मध्यप्रदेश से सटी हुई सर्वाधिक पिछड़ी है। इसलिए ग्रामीण मानते है कि इस तहसील के विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
जान जोखिम में डाल करते हैं डग्गामार वाहन से सफर
अकेले इलाहाबाद के लिए दो दर्जन प्राइवेट बसें चलती है। यही नहीं इस रूट पर यात्रियों की अच्छी-खासी संख्या से विभाग को भी अच्छी आमदनी हो सकती है, बावजूद इसके सभी बस सेवाओं को नहीं चलाने से नागरिकों को आवागमन की कठिनाई झेलना पड़ रहा हैं। इन रास्तों के किनारे बसे गांवों की आबादी को आज भी मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए घरों से एकाध घंटे पहले ही निकलना पड़ता है। ऐसे में यात्रियों को यहां रोज फजीहत झेलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लालगंज मांडा व हलिया वाया लालगंज, गैपुरा, दीपनगर वाया लालगंज इलाहाबाद, ड्रमंडगंज वाया लालगंज इलाहाबाद मार्ग पूरी तरह से डग्गामार वाहनों के कब्जे में है जिससे इस पर यात्रा करना जान को जोखिम में डालने के बराबर है।
तकलीफों का समझौता कर पहुंचते है गंतव्य को
लालगंज बाजार निवासी रमेश ने बताया कि मार्गो की हालत ऐसी है कि अधिकांश जीपों में तकलीफों से समझौता करके ही अपना सफर पूरा करना पड़ता है। इनमें यात्री बैठाए नहीं बल्कि भेड़-बकरियों की तरफ ठूंसे जाते हैं। सरकारी बसों के अभाव में लोग जी-मारकर किसी तरह से अपनी मंजिल की दूरी नापते हैं।