मुंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को क्वारंटाइन करो
कोरोना ने देश की हालत ऐसी कर दी है कि पूछो मत। कब किसको कहां से यह बीमारी जकड़ लेगी इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं है इसलिए सभी दो गज की दूरी बनाकर चलने में ही भलाई समझ रहे हैं। इधर पचास दिनों से बंद दुकानों के कारण आवश्यक चीनी चूरन भी मिलना बंद हो गया है।
भोर में अचानक निद्रा टूटी तो स्वप्न से उबरा नागरिक देश की हालत पर मंथन करने लगा। खुद-ब-खुद से बतियाने लगा- कोरोना ने देश की हालत ऐसी कर दी है कि पूछो मत। कब, किसको, कहां से यह बीमारी जकड़ लेगी, इसका तो किसी को कोई अंदाजा नहीं है। ऐसे में भई सभी दो गज की दूरी बनाकर चलने में ही भलाई समझ रहे हैं। इधर 50 दिनों से दुकानों पर ताले लटकने के कारण चीनी-चूरन भी मिलना बंद हो गया है। नागरिक को भी लॉकडाउन की वजह से बिना चीनी के ही चाय पीनी पड़ रही है। सुबह फीकी चाय के साथ श्रमिकों की दर्दनाक तस्वीरें अखबार के पन्नों पर देख नागरिक का मन व्यथित हो उठा।
नागरिक कुछ सोच ही रहा था कि फोन की घंटी घनघना उठी। दूसरी तरफ से नागरिक का लंगोटिया यार छग्गन बोल रहा था। मुंबई में कोरोना महामारी से जूझ रहे छग्गन ने कहा कि यार किसी तरह घर बुलाने की जुगत लगाओ, नहीं तो यहां से मेरा जनाजा ही गांव पहुंचेगा। नागरिक डपटते हुए बोला- ऐसा क्यों बोल रहे हो तुम। कुछ नहीं होगा किसी को, धैर्य बनाए रखो। मगर नागरिक की किसी बात का असर छग्गन पर नहीं हो रहा था, वह दूसरी तरफ रोए जा रहा था और इधर नागरिक की आंखों में भी आंसू छलक रहे थे। इसी बीच नेटवर्क फेल होने से संपर्क टूट गया। नागरिक पुराने दिनों को याद करने लगा जब छग्गन मुंबई से घर आता था तो कैसा आनंद छा जाता था। सफेद पैंट, सफेद शर्ट और सफेद जूता पहने जब छग्गन गांव आता तो लोग उसे बालीवुड का हीरो समझ आगे-पीछे घूमने लगते थे। वह जितने भी दिन गांव में रहता, रोजाना लोग यही गाना गाते थे कि बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो।
अचानक सिविल लाइंस के वासलीगंज से नागरिक का दोस्त धमक पड़ा तो नागरिक की तंद्रा टूटी और वह वास्तविकता के धरातल पर उतर आया। उसने पूछा, अरे भई आप इतने उदास क्यों हैं, क्या हो गया। नागरिक ने फिर वही कहानी दोहराई और कहा कि देखो इस कोरोना ने क्या से क्या कर दिया। जो दोस्त कभी हीरो की तरह गांव आता था, आज वे चोरों की तरह गांव आने की जुगत लगा रहा है। नागरिक कहता रहा, एक वह दिन था जब छग्गन की फटफटिया पर गांव के लड़के बाजार जाते तो लगता कि किसी शहंशाह की सवारी आई है। आज ऐसा दिन है कि छग्गन पैदल ही गांव आने को व्याकुल हो गया है। दोस्त भी नागरिक की बातें सुनता रहा और फिर बोला। इसमें इतना उदास होने की जरूरत नहीं है। वे पहले भी हमारे भाई-बंधु थे और आज भी हैं। क्या हुआ जो कोरोना महामारी फैल गई तो, इससे क्या हम अपनी इंसानियत भूल जाएंगे। नागरिक को थोड़ा संबल मिला तो वह बोला, ठीक ही कहते हो। छग्गन को हम अब भी गले लगाएंगे लेकिन कोरोना महामारी से उसे व खुद को बचाने के बाद। इस पर वह बोला, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। पहले हम गाना गाते थे, बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो। अब हम गाएंगे मुंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को क्वारंटाइन करो। इस बात से आंगन में ठहाके गूंज पड़े।
- नागरिक