अबकी नहीं सुनाई दी कजली गीतों की धुन, सूना रहा सावन
सावन का महीना जब शुरू होता था तो हमारे जनपद में कजली गीत की गूंज घर-घर सुनाई देती थी लेकिन जैसे जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे कजली गीत भी लुप्त हो गया है। मीरजापुरी कजली सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे भारतवर्ष के कई अंचलों में अपना विशिष्ठ स्थान रखता था। इसको पसंद करने वाले अर्थात इसके कद्रदान काफी दूर दूर तक फैले हुए थे। जिस प्रकार कुश्ती की प्रतियोगिता में दूर दूर के पहलवान आते है
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : सावन का महीना जब शुरू होता था तो जनपद में कजली गीत की गूंज घर-घर सुनाई देती थी लेकिन कोरोना संक्रमण काल के चलते अबकी कजली गीत भी नहीं सुनाई दिया। मीरजापुरी कजली सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं भारतवर्ष के कई अंचलों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। इसको पसंद करने वाले अर्थात इसके कद्रदान काफी दूर दूर तक फैले हुए हैं। जिस प्रकार कुश्ती की प्रतियोगिता में दूर दूर के पहलवान आते हैं और उनका दंगल होता है। विजयी पहलवान व उसके गुरु व अखाड़े का नाम व सम्मान होता रहा। उसी प्रकार कजली के दंगल की भी परंपरा रही है। मीरजापुर के कई अखाड़े, बनारस व कुछ अन्य क्षेत्रों के अखाड़े इसमें सम्मिलित होते रहे। उनका मुकाबला हजारों नागरिकों के बीच में होता रहा। यह बात अलग है कि विगत कुछ वर्षो से कजली प्रेमियों की संख्या जहां घटी वहीं कोराना काल ने इस पर पूरी तरह से विराम लगा दिया। इसकी वजह से कजली की परंपरा काफी प्रभावित हुई।
कजली क्या है और कहां से आई इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिल सका है। साहित्कारों एवं संगीतकारों ने अनुमान द्वारा ही इसकी विवेचना की है कोई इसे मां विध्यवासिनी का नाम तो कोई देवी पार्वती का नाम बताता है। क्योंकि इस दिन महिलाएं रात्रि जागरण कर कजली गाती हैं। माता पार्वती की पूजा अर्चना कर वे अपने सुहाग की रक्षा की कामना करती हैं। एक अन्य दंतकथा के अनुसार कंतित नरेश की पुत्री का नाम कजली था। पति के वियोग में उन्होंने जिन गीतों की रचना की वे कजली के नाम से विख्यात हुई। कालांतर में इसी ढंग के अन्य वियोग गीत भी 'कजली कहे जाने लगे' कजली गायन में तरह तरह के प्रयोग किए गए।
देवी गीत से कजली की शुरुआत
प्राचीन काल से ही मीरजापुर जनपद मां विध्यवासिनी की शक्तिपीठ के रूप में आस्था का केंद्र रहा है। अधिसंख्य प्राचीन कजरियों में शक्तिस्वरूपा देवी का गुणगान मिलता है। आज कजली के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, परंतु कजली गायन का प्रारंभ देवी गीत से ही होता है। हिदू धर्मग्रंथों में श्रावण मास का विशेष महत्व है। इस मास में विशेष तौर पर शंकर जी की आराधना की जाती है। इसी श्रावण मास में कजली गायी जाती है। बारिश में कजली गाए जाने का विशेष महत्व है। लोक गायकों ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान व पहचान दिलाई है।