पारंपरिक हल-बैल से किसान कर रहे खेती
मानसून आने के बाद किसान धान की रोपाई के लिए अपना हल बैल तैयार कर खेत में पहुंचने लगे है। एक तरफ जहां किसान जुताई कर खेत तैयार कर रहे है तो वही पर महिलाएं पारंपरिक गीत के साथ धान रोपाई कर रही है। पानी के बूंदा बांदी के बीच भिगने का परवाह न करते हुए महिला व पुरुष किसान खेती में कार्य में जुट गया है।
जागरण संवाददाता, लालगंज (मीरजापुर) : मानसून आने के बाद किसान धान की रोपाई के लिए अपना हल बैल तैयार कर खेत में पहुंचने लगे है। एक तरफ जहां किसान जुताई कर खेत तैयार कर रहे है तो वही पर महिलाएं पारंपरिक गीत के साथ धान रोपाई कर रही है। पानी के बूंदा बांदी के बीच भिगने का परवाह न करते हुए महिला व पुरुष किसान खेती में कार्य में जुट गया है।
कृषि उपकरण ट्रैक्टर आदि के युग में भी क्षेत्र के छोटे किसान ट्रैक्टर के बजाय पारंपरिक हल-बैल के माध्यम से ही खेतों की जुताई करना बेहतर समझते है। विशेषकर 1970-80 के दशक में मवेशियों की संख्या अधिक हुआ करती थी। पारंपरिक खेती का प्रचलन भी चरम पर था। परंतु अब पशुओं खासकर बैल की संख्या में भारी गिरावट आई है। इससे पारंपरिक खेती करने में किसानों को भारी परेशानी हो रही है। खेती किसानी में तकनीक का प्रयोग बढ़ गया है फिर भी लालगंज में किसान आज भी पारंपरिक खेती को अधिक तरजीह देते हैं। धान की रोपाई के लिए हल बैल से खेती करते हुए पारंपरिक प्रचलन को कायम रखे हुए है। हल और बल से खेती से कई फायदे
अब कहीं-कहीं ही किसी किसान के पास कुछ जुड़े बैल रह गए हैं। जिसके कारण अभी भी पशुओं के गले में घंटी की आवाज अब बहुत कम सुनाई पड़ती है, लेकिन कई किसान आज भी खेती में हल-बैल का प्रयोग कर रहे हैं। गांव के किसान रामसजीवन, मटुक, बैजू, नज्जू खां, लालचंद ने कहा कि हल बैल से खेती करने का अलग ही आनंद है। पारंपरिक हल बैल से जमीन की जुताई अच्छी होती है। जुताई से जमीन अनुरूप समतल होता है और फसल लगने के बाद सिचाई करने में परेशानी नहीं होती है। बैल से हेंगाई किए जाने से खेत अधिक समतल रहता है और पानी का ज्यादा दिनों तक ठहराव बना रहता है।