50 हजार महिला श्रमिकों पर छाया रोजगार का संकट
लॉकडाउन के दो महीने बीतते-बीतते कई बदलाव सामने आने लगे हैं। इनमें से एक बदलाव ऐसा भी है जिसने ग्रामीण श्रमिक महिलाओं के सामने दुश्वारियां खड़ी कर दी हैं। खेतों में मजदूरी करके आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर श्रमिक महिलाओं से अब उनके ही अपने यह रोजगार छीन रहे हैं और खेती का काम करने लगे हैं। जिले के 12 ब्लाक के
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : लॉकडाउन के दो महीने बीतते-बीतते कई बदलाव सामने आने लगे हैं। इनमें से एक बदलाव ऐसा भी है जिसने ग्रामीण श्रमिक महिलाओं के सामने दुश्वारियां खड़ी कर दी हैं। खेतों में मजदूरी करके आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर श्रमिक महिलाओं से अब उनके ही अपने यह रोजगार छीन रहे हैं और खेती का काम करने लगे हैं। जिले के 12 ब्लाक के 809 ग्राम पंचायतों में ऐसी करीब 50 हजार महिलाओं का रोजगार अब संकट में है।
दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, कोलकाता, इंदौर, बंगलुरु सहित देश के विभिन्न शहरों में आजीविका कमाने वाले पुरुष कोरोना के कारण घर वापस आ गए हैं। इससे इनके परिवार कि वे महिलाएं रोजगार से विमुख हो रही हैं जो पहले मजदूरी करके पैसा कमा लेती थीं। ऐसी ही महिला बिदू, आशा, रमपत्ती, शोभना ने बताया कि जो काम वे करती थीं, वहीं काम अब उनके घर के आदमी करने लगे हैं। खेत के मालिक भी अब महिलाओें की जगह पुरुषों से मजदूरी कराने में दिलचस्पी ले रहे हैं। जिले के 809 ग्राम पंचायतों में अमूमन हर पंचायत में सैकड़ों महिलाएं श्रमिक का कार्य करके पैसा कमाती रही हैं। अब उनके पास घर का चूल्हा-चौका करने के सिवाय कोई काम शेष नहीं बचा है। हालांकि वे मानकर चल रही हैं कि पुरुष ज्यादा दिनों तक खेती का काम नहीं कर पाएंगे और वे थक-हारकर परदेस वापस लौटेंगे। तब तक के लिए यह महिलाएं घरेलू काम में ही खुद को ढाल रही हैं।
पूरब से पश्चिम तक इनकी मांग
जनपद की ऐसी महिला श्रमिकों की मांग पूर्वांचल के अन्य जिलों से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक है। चुनार तहसील के किरीयात क्षेत्र में बड़ी मात्रा में बोई जाने वाली सब्जियों, मिर्च, टमाटर, मटर, गोभी आदि के लिए इन्हीं महिला श्रमिकों की मांग रहती है। किसान देवनारायन सिंह बताते हैं कि गेहूं की कटाई से लेकर धान की रोपाई तक हम अपनी गाड़ियां भेजकर महिला श्रमिकों को बुलाते हैं और शाम तक काम करने के बाद उन्हें वाहन से ही घर छोड़ दिया जाता है। इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी महिलाओं को महीने-दो महीने के लिए ले जाया जाता है और काम पूरा होने के बाद पारिश्रमिक देकर घर पहुंचाया जाता है। मनरेगा से इनकी रहती है दूरी
इन महिला श्रमिकों की मानें तो उन्हें खेती का काम करना पसंद है और मनरेगा के तहत मिट्टी की ढुलाई आदि से वे दूरी बनाकर रखती हैं। महिला श्रमिक फूलवती ने बताया कि मनरेगा की कागजी कार्रवाई उन्हें कभी समझ नहीं आती। वहीं खेतों में काम करने पर जब जरुरत पड़ी, पैसा मिल जाता है। साथ ही अनाज व सब्जियां भी उन्हें मिल जाती हैं जिससे घर का खर्च चल जाता है।