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186 बीघे भूमि पर किसी का स्वामित्व नहीं, फर्जी हुआ था नामांतरण

तहसील क्षेत्र अंतर्गत कलवारी माफी स्थित एक आश्रम द्वारा अनाधिकार जमीन कब्जे को लेकर आखिरकार जिला प्रशासन को आना ही पड़ा। लगातार ग्रामीणों के उग्र रवैए को देख गहमा-गहमी के बीच कलवारी माफी प्राथमिक विद्यालय परिसर पर मंगलवार की सुबह एडीएम यूपी सिंह ने सैकड़ों ग्रामीणों से पहले तो मामले की पूरी जानकारी ली और फिर उन्हें पूरी तरीके से आश्वस्त कराया कि जो सही होगा वही होगा।

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 06:25 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 11:39 PM (IST)
186 बीघे भूमि पर किसी का स्वामित्व नहीं, फर्जी हुआ था नामांतरण
186 बीघे भूमि पर किसी का स्वामित्व नहीं, फर्जी हुआ था नामांतरण

जागरण संवाददाता, मड़िहान/कलवारी (मीरजापुर) : तहसील क्षेत्र अंतर्गत कलवारी माफी स्थित एक आश्रम द्वारा अनाधिकार जमीन कब्जे को लेकर आखिरकार प्रशासन को संज्ञान लेना ही पड़ा। भूमि विवाद के इस मामले को उभ्भा जैसी घटना से जोड़ते हुए 'दैनिक जागरण' ने प्रमुखता से खबर- 'कलवारी में लिखी जा रही उभ्भा जैसी घटना की पटकथा' देकर प्रशासन को चेताया था। मामले को लेकर लगातार ग्रामीणों के उग्र रवैए को देख गहमागहमी के बीच कलवारी माफी प्राथमिक विद्यालय परिसर पर मंगलवार की सुबह एडीएम यूपी सिंह ने सैकड़ों ग्रामीणों से पहले तो मामले की पूरी जानकारी ली, फिर उन्हें पूरी तरीके से आश्वस्त कराया कि जो सही होगा, वही होगा। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जाएगी।

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दैनिक जागरण ने 13 जुलाई को पेज नंबर तीन पर कलवारी में लिखी जा रही उभ्भा जैसी घटना की पटकथा'शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसे उच्चाधिकारियों ने संज्ञान में लिया और ग्रामीणों से बातचीत करने के लिए एसडीएम मड़िहान के पहुंचते ही ग्रामीण उग्र हो गए। इससे प्रशासन के हाथ-पांव फूलने लगे। मौके से एसडीएम और पुलिस टीम बैरक वापस लौट गई। दैनिक जागरण ने खबरों का सिलसिला जारी रखा तो मंगलवार को एडीएम यूपी सिंह खुद ग्रामीणों को समझाने कलवारी माफी पहुंचे। कहा कि 186 बीघे जमीन पर बाबाओं का कब्जा नहीं होगा। जब तक कोई नया आदेश नहीं होता है, तब तक यह जमीन खाली पड़ी रहेगी। यह जमीन पूर्व से ही चारागाह के नाम से चली आ रही थी लेकिन 1988 में एक आदेश के तहत इसे बाबाओं ने अपने नाम करा लिया था। इसे पूरी तरीके से अवैध मानकर दोषी तत्कालीन एसडीएम चुनार एके श्रीवास्तव, नायब तहसीलदार गिरधारी लाल व आश्रम के बाबा विवेकानंद के खिलाफ 420 और लोक संपत्ति अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है। पूर्व से ही 438 बीघा 10 बिस्वा दस धुर जमीन वर्ष 1952 में प्रमुख सचिव आदेश के बाद वन विभाग को मिल गई थी लेकिन उसका नामांतरण वन विभाग ने नहीं कराया बल्कि उसका लाभ लेकर उस आदेश को चैलेंज करके स्थगन आदेश लिया है, जो जमीन जीतने के बाद भी ग्रामसभा को नहीं मिलेगी बल्कि वन विभाग को चली जाएगी।

मंडलायुक्त ने स्वत: लिया संज्ञान

दैनिक जागरण में 13 जुलाई के अंक में प्रकाशित खबर-'कलवारी में लिखी जा रही उभ्भा जैसी घटना की पटकथा' का स्वत: संज्ञान लिया। इस पर उन्होंने जिलाधिकारी, आइजी व एसपी को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करते हुए तत्काल निराकरण का निर्देश दिया। मंडलायुक्त प्रीति शुक्ला ने बताया कि दैनिक जागरण की खबर से उन्हें पूरे मामले के बारे में जानकारी ली। इसे गंभीरता से लेते हुए उन्होंने सभी अधिकारियों को पत्र भेजकर मामले पर दोनों पक्षों की सुनते हुए तुरंत निर्णय लेने का निर्देश दिया है। इस बाबत वह आज भी जिलाधिकारी से बात करके पूरे प्रकरण के बारे में जानकारी लेंगी।

जमीन को पूर्णत: मुक्त कराने के लिए ग्रामसभा लड़ेगा मुकदमा

अपर जिलाधिकारी यूपी सिंह ने मामले को पूरी तरीके से शांत करने के लिए बताया कि 186 बीघे जमीन पूरी तरीके से अवैध है, इसलिए अब इसका मुकदमा ग्राम समिति स्वयं लड़ेगी। इसमें तहसील का सरकारी वकील मुकदमा लड़ेगा, जो एसडीएम न्यायालय में विचाराधीन होगा। यदि फाइल नहीं मिला तो तहसीलदार स्वयं फाइल तैयार कराएंगे और मुकदमे की पैरवी के लिए मदद भी करेंगे। इस दौरान एडिशनल एसपी महेश कुमार अत्री, तहसीलदार ओमप्रकाश पांडेय, सीओ आपरेशन हितेंद्र कृष्ण, इंस्पेक्टर राजीव सिंह, पांच सब इंस्पेक्टर, चार पूर्व ग्राम प्रधान व सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित रहे।

30 साल पहले भी हुआ था समझौता, नहीं बनी थी बात

कलवारी माफी गांव में जिस प्रकार ग्रामीणों और तहसील के प्रशासनिक अधिकारियों के बीच गहमा-गहमी देखी गई। उसके बाद तो अधिकारियों के भी पसीने छूटने लगे थे कि मामले का हल कैसे निकाला जाए। हालांकि मंगलवार को जब एडीएम यूपी सिंह ग्रामीणों को मनाने गांव पहुंचे तो पूर्व प्रधानों ने बताया कि 1988 में जब फर्जी आदेश के बाद बाबाओं ने खेती-बाड़ी शुरू किया तो हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने इसका विरोध किया था। इसके बाद समझौते में तय हुआ था कि चारागाह की 186 बीघा जमीन जो बकहर नदी के किनारे पश्चिम दिशा में पड़ती है, उसको किसी भी प्रकार से नहीं जोतेंगे लेकिन पांच वर्षों तक छोड़ देने के बाद फिर से बाबाओं का साम्राज्य स्थापित होने लगा। ग्रामीण इसका विरोध करते रहे लेकिन प्रशासन भी बाबाओं की ही मदद करता रहा। तत्कालीन एसडीएम ने 186 बीघा जमीन को अवैध मान रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजी थी। इसके बाद यह रिपोर्ट शासन को भी भेज दी गई।

438 बीघे पर आश्रम रोपेगा धान

समझौते में यह भी तय हुआ कि अब 186 बीघा जमीन पूरी तरीके से प्रतिबंधित रहेगा लेकिन जब तक कोई आदेश पारित नहीं होता है, तब तक 438 बीघा जमीन पर आश्रम के बाबा खेती कर सकेंगे। क्योंकि हाईकोर्ट से स्थगन आदेश प्राप्त है। इसमें प्रशासन कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। हालांकि उनके अनुरोध पर एडीएम ने सुरक्षा के बीच धान की रोपाई करने का आदेश दिया है कि इंस्पेक्टर मड़िहान मौके पर पुलिस बल भेजकर बाबाओं के धान की रोपाई कराएंगे। कहा कि सीओ नक्सल और इंस्पेक्टर मड़िहान ग्रामीणों से बात करके उनको मामले की जानकारी देते रहे कि जमीन को 186 बीघा मुक्त करा दिया गया है लेकिन 438 बीघे जमीन पर बाबाओं का कब्जा रहेगा। यदि इसमें कोई दिक्कत आती है तो प्रशासन इसके लिए तैयार है।

जमीन देख अधिकारी भी गदगद

मड़िहान पहाड़ी क्षेत्र है फिर भी बकहर नदी के किनारे समतल क्षेत्र को देखकर अधिकारी भी गदगद हो गए। इसका श्रेय किसी और को नहीं बल्कि बाबाओं को देने से नहीं चूके कि बड़ी मेहनत से मिट्टी दूर-दूर से लाकर इसे सजाया गया है। इसलिए ऐसा खेत हो गया है।


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