Year Ender 2020 : नाले ढकने की योजना बनीं...लेकिन परवान न चढ़ीं, मेरठ में चार साल से चल रहा यह खेल
शहर में खुले हुए नाले हादसों का सबब बने हैं। कई मासूमों की नाले में गिरकर मौत तक हो चुकी हैं। कई बार शासन तक नाला ढकने के लिए हल्ला भी मचा लेकिन खुले नाले ढकने की योजनाएं कागज से कभी बाहर नहीं निकल सकीं।
मेरठ, जेएनएन। शहर में यूं तो छोटे-बड़े 341 नाले हैं, लेकिन 14 बड़े व प्रमुख नाले हैं। से सभी खुले हुए हैं। इन नालों को ढककर न केवल वाहन पार्किंग की व्यवस्था बनाई जा सकती है, बल्कि शहर की मुख्य समस्या वेंडिंग जोन का हल भी निकाला जा सकता है। साथ ही खुले नालों में गिरकर होने वाली असमय मौत व अन्य हादसों को भी रोका जा सकता है।
शहर के बड़े नालों में आबूनाला एक व दो, ओडियन नाला, चिंदौड़ी नाला, बच्चा पार्क नाला, गुर्जर चौक नाला, रुड़की रोड नाला, नंगलाताशी का नाला, कोटला नाला, फिल्मिस्तान नाला, मकाचीन नाला, पांडव नगर नाला, दिल्ली रोड नाला, रेलवे क्रासिंग से सोफीपुर नाला आदि आते हैं। इन नालों की गहराई तो अच्छी है ही, चौड़ाई भी आठ से 10 फीट के बीच है। 14 नाले ढकने के लिए निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने सर्वे भी किया था। जांच में यह बात सामने आई कि नाले ढकने के बाद लगभग 1,93,600 वर्ग मीटर जमीन काम के लायक निकल सकती है। अगर वाहन पार्किंग के लिए जमीन का इस्तेमाल किया जाए तो कम से कम 15 हजार वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था खुले नाले ढककर की जा सकती है। इसके अलावा कवर्ड एरिया का उपयोग वेंडिंग जोन के रूप में भी किया जा सकता है, लेकिन अभी तक केवल आबूनाला एक का करीब 200 मीटर हिस्सा ही ढका जा सका है। यह बेगमपुल के पास है। उस पर वाहन पार्किंग का ठेका इस साल किया गया है। लगभग दो लाख की आय नाले के कवर्ड एरिया पर वाहन पार्किंग से निगम को हुई है। निगम अधिकारियों ने कुछ माह पहले शासन को भेजे गए नाले ढकने के प्रस्ताव में इस बात का जिक्र भी किया गया।
नाले ढकने के होंगे ये फायदे
- नगर निगम अधिकारी मानते हैं कि खुले नाले के कवर्ड एरिया से नगर निगम को अधिक फायदा है।
- गोबर व कूड़ा की गंदगी नाले में नहीं दिखेगी। लोग नालों को डस्टबिन की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
- खुले नालों से होने वाले जानमाल का खतरा कम हो जाएगा। अभी तो खुले नाले जानलेवा बने हैं।
- नालों के कवर्ड एरिया में वेंडिंग जोन और वाहन पार्किंग से नगर निगम की आय में बढ़ोत्तरी संभव है।
- नालों के कवर्ड एरिया में वेंडिंग जोन व वाहन पार्किंग होने से सड़कों पर ठेले व वाहनों का अतिक्रमण कम होगा।
वर्ष 2017-18 से चल रही नाला ढकने की बात
खुले नालों को ढकने की बात वर्ष 2017-18 से चल रही है। तत्कालीन नगरायुक्त ने नाला ढकने का एक प्रस्ताव बनवाया था, जो शासन को भेजा गया था। लगभग 231 करोड़ का यह प्रस्ताव था। इतना बजट देने में शासन ने हाथ खींच लिए थे। तब निगम अधिकारियों ने थोड़ा-थोड़ा बजट मांगा था, लेकिन इस पर भी शासन ने कोई निर्णय नहीं लिया। हालांकि इस साल अगस्त में एक बार फिर से नाला ढकने का प्रस्ताव शासन ने मांगा तो निगम ने पुराने प्रस्ताव को रिवाइज कर भेजा है, जिस पर शासन स्तर से ही निर्णय होना है।
जलमग्न मोहल्ले व बेफिक्र अफसर
वर्ष 2018 में 26 जुलाई को मूसलाधार बारिश हुई थी। 27 जुलाई को शहर जलमग्न था। आबूनाला-दो, आरटीओ नाला और बागपत रोड नाले से जुड़े मोहल्लों में नाव चलने की नौबत आ गई थी। इसी तरह वर्ष 2019 में भी जुलाई महीने में ही जलभराव हुआ। इसकी वजह सिर्फ यही थी कि नगर निगम ने वर्ष 2018 की स्थितियों से सबक नहीं लिया था। जलभराव न हो, इसके लिए कोई कार्य योजना नहीं बनाई थी। वर्ष 2020 में भी नाले खूब उफनाए। दिल्ली रोड, बागपत रोड और माधवपुरम का इलाका जलमग्न हुआ। वजह यही रही कि दो साल से लगातार जलभराव की स्थिति बनने पर भी निगम अफसर नहीं चेते। अब वर्ष 2021 आने वाला है। अभी भी इन जलभराव वाले इलाकों के लिए नगर निगम के पास कोई कार्ययोजना नहीं है, जबकि नगर निगम के पास 14वें वित्त का अच्छा-खासा बजट था।
सफाई के लिए हुआ पहली बार सर्वे
वर्ष 2020 में नगर विकास विभाग के निर्देश पर नगर निगम के निर्माण विभाग के इंजीनियरों ने बरसात के मौसम से पहले बड़े नालों का सर्वे किया था। इस सर्वे के जरिए यह पता लगाना था कि नाले में कितनी सिल्ट जमा है। इसकी सफाई कब तक सुनिश्चित कर दी जाएगी। छोटे-बड़े 341 नालों में 10,59,294 मीट्रिक टन सिल्ट जमा होना सर्वे रिपोर्ट में बताया गया। हालांकि कितनी सिल्ट निकाली गई। इसका रिकार्ड आज तक निर्माण विभाग ने नहीं तैयार किया है। यह सर्वे पहली बार शासन स्तर से कराया गया था। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया था कि नालों में दो तरह की गंदगी अधिक है। एक बड़ी मात्रा में बहाया जा रहा गोबर और दूसरा पालीथिन कचरा। इससे नाले आए दिन चोक होते हैं। रिपोर्ट के बाद सामने आए कारणों को दूर करने का निगम ने कोई प्रयास नहीं किया है। जिससे इस सर्वे का भी कोई फायदा नहीं निकला। शासन ने भी इन रिपोर्ट पर दोबारा जानकारी जुटाने की कोशिश नहीं की।
इस साल भी नहीं हो सका मलियाना नाले का निर्माण
डेढ़ साल पहले मलियाना नाले के निर्माण के लिए टेंडर हुआ था। कभी रेलवे की आपत्ति तो कभी निगम की लापरवाही से यह नाला निर्माण रुका रहा। 50,000 आबादी की जलनिकासी इस नाले के जरिए सुनिश्चित की जानी थी। जिले के प्रभारी व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी कई बार नाले की प्रगति मांगी, लेकिन निर्माणाधीन नाले का काम पूरा नहीं हो सका।
ढकने की बात दूर नाले की दीवार नहीं बनाई जा सकी
मवाना रोड पुल से कसेरूखेड़ा पंपिंग स्टेशन तक आबूनाला-दो की दीवार बननी थी। साल बीत गया, लेकिन निर्माण अधूरा पड़ा हुआ। सिंचाई विभाग ने नाले की डिजाइन की अनुमति को लेकर अड़ंगा लगा रखा है। एक डिजाइन बनवाने और अनुमति लेने में नगर निगम जुटा रहा, लेकिन अनुमति ही नहीं मिल सकी। नाले की 300 मीटर दीवार बन भी चुकी है। 850 मीटर और निर्माण होना अभी भी बाकी है।