नारी सशक्तीकरण: आज भी अबला ही हैं कामकाजी शक्ति स्वरूपा
डिग्री कॉलेज की 200 शिक्षिकाओं और 500 अन्य महिलाओं पर सशक्तीकरण के मानक परखे गए, जिसमें सामने आया कि कामकाजी महिजाएं आज भी अबला ही मानी जाती हैं।
By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 05:00 PM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 05:11 PM (IST)
मेरठ (ओम बाजपेयी)। उच्च शिक्षा और अच्छा वेतन किसी के सबल होने की गारंटी नहीं है, इन दोनों मानकों पर खरा उतरने बावजूद मेरठ के महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षिकाओं को अबला समझा जाता है। जनपद की कामकाजी महिलाओं पर हुए शोध के परिणाम बताते हैं एक तिहाई महिलाएं जो कमाती हैं, उस पर उनका नहीं उनके पिता या पति का हक होता है। अलग-अलग आयु और शैक्षिक वर्ग वाली रोजगार शुदा महिलाओं पर शहर की दो महिला समाजशात्रियों (शिक्षकाओं) ने शोध किया है।
एनएएस डिग्री कॉलेज के समाज शास्त्र विभाग में शिक्षिका डा. प्रियंका कपूर ने पांच सौ महिलाओं को अपने शोध अध्ययन का आधार बना कर रिपोर्ट 'इंपावरमेंट आफ अरबन वूमेन' प्रकाशित की है। जिसके अनुसार 32 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि परिवार के आर्थिक मामलों जैसे संपत्ति, मकान, प्लाट या घरेलू सामान की खरीद फरोख्त होती है उनसे कोई सलाह नहीं ली जाती न ही उनकी पसंद नापसंद पूछी जाती है। जबकि इसमें खर्च होने वाला धन का बड़ा हिस्सा उनकी कमाई का होता है। शोध के दायरे में 88 प्रतिशत महिलाएं विवाहित थी शेष अविवाहित।
एक चौथाई शिक्षिकाएं हैं घरेलू हिंसा की शिकार
दूसरा शोध कनोहर लाल इंटर कालेज में शिक्षिका सुमनलता वर्मा ने किया है। ‘कार्यशील महिलाओं के सशक्तीकरण को प्रभावित करने वाले कारक’ विषय पर किए गए शोध के लिए मेरठ के नौ महाविद्यालयों की पांच शिक्षिकाओं की सूची तैयार की गई। जिसमें रैंडम विधि से दो सौ शिक्षिकाओं से प्रश्नावली और इंटरव्यू के आधार पर जानकारी जुटाई गई। शोध के निष्कर्षो के अनुसार 25.5 प्रतिशत शिक्षिकाओं का कहना था कि वह जब तब घरेलू ¨हसा का शिकार होती है। वहीं 51.5 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि अभी भी परिवार और रिश्तेदारों में अबला माना जाता है।
पति नहीं करते घरेलू कार्य में सहयोग
शोध के दायरे में आने वाली महिलाएं 30 से 70 हजार रुपये प्रति माह कमाने वाली शिक्षिकाएं थी। कई मामलों में उनकी पति से कहीं अधिक पेशागत जिम्मेदारी है। 71.5 प्रतिशत शिक्षिकाओं ने कहा है कि पति रसोई और अन्य घरेलू काम में कोई सहयोग नहीं करते हैं। बाहर के साथ घर की जिम्मेदारी अकेले उठाने पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यह कहना है महाविद्यालयों की शिक्षिकाओं का
- 95 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि अभी भी परिवार में पुरुषों के समान उन्हें सभी कार्य करने में सक्षम नहीं समझा जाता है।
- 43.5 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि पति का व्यवहार समता मूलक नहीं है।
- 77 प्रतिशत शिक्षिकाओं का मानना है कि कार्य स्थल पर उन्हें पुरुषों से कमतर आंका जाता है।
- 93 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि नौकरी के बाद उनकी भूमिका घर के चाहरदीवारी तक सीमित नहीं है
इन्होंने कहा...
कार्यशील महिलाओं पर हुए शोध के नतीजे बताते हैं कि पुरुषसत्तात्मक विचाराधारा की जड़ें हमारे समाज में कितनी गहरी हैं। शिक्षा और अर्थ को सशक्तीकरण का आधार माना जाता है। इन दोनों से संपन्न होने के बावजूद महिलाएं सशक्त नहीं हो पाई है। इसके लिए परिवार मे लड़के-लड़कियों के प्रति लिंग भेद समाप्त करना होगा। हालांकि महिलाओं को प्रोत्साहन देने वाली सरकारी योजनाओं से महिला सशक्तीकरण में सुधार हुआ है।
डा. धर्मवीर महाजन, पूर्व विभागाध्यक्ष, समाजशास्त्र, एनएएस डिग्री कॉलेज
एनएएस डिग्री कॉलेज के समाज शास्त्र विभाग में शिक्षिका डा. प्रियंका कपूर ने पांच सौ महिलाओं को अपने शोध अध्ययन का आधार बना कर रिपोर्ट 'इंपावरमेंट आफ अरबन वूमेन' प्रकाशित की है। जिसके अनुसार 32 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि परिवार के आर्थिक मामलों जैसे संपत्ति, मकान, प्लाट या घरेलू सामान की खरीद फरोख्त होती है उनसे कोई सलाह नहीं ली जाती न ही उनकी पसंद नापसंद पूछी जाती है। जबकि इसमें खर्च होने वाला धन का बड़ा हिस्सा उनकी कमाई का होता है। शोध के दायरे में 88 प्रतिशत महिलाएं विवाहित थी शेष अविवाहित।
एक चौथाई शिक्षिकाएं हैं घरेलू हिंसा की शिकार
दूसरा शोध कनोहर लाल इंटर कालेज में शिक्षिका सुमनलता वर्मा ने किया है। ‘कार्यशील महिलाओं के सशक्तीकरण को प्रभावित करने वाले कारक’ विषय पर किए गए शोध के लिए मेरठ के नौ महाविद्यालयों की पांच शिक्षिकाओं की सूची तैयार की गई। जिसमें रैंडम विधि से दो सौ शिक्षिकाओं से प्रश्नावली और इंटरव्यू के आधार पर जानकारी जुटाई गई। शोध के निष्कर्षो के अनुसार 25.5 प्रतिशत शिक्षिकाओं का कहना था कि वह जब तब घरेलू ¨हसा का शिकार होती है। वहीं 51.5 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि अभी भी परिवार और रिश्तेदारों में अबला माना जाता है।
पति नहीं करते घरेलू कार्य में सहयोग
शोध के दायरे में आने वाली महिलाएं 30 से 70 हजार रुपये प्रति माह कमाने वाली शिक्षिकाएं थी। कई मामलों में उनकी पति से कहीं अधिक पेशागत जिम्मेदारी है। 71.5 प्रतिशत शिक्षिकाओं ने कहा है कि पति रसोई और अन्य घरेलू काम में कोई सहयोग नहीं करते हैं। बाहर के साथ घर की जिम्मेदारी अकेले उठाने पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यह कहना है महाविद्यालयों की शिक्षिकाओं का
- 95 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि अभी भी परिवार में पुरुषों के समान उन्हें सभी कार्य करने में सक्षम नहीं समझा जाता है।
- 43.5 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि पति का व्यवहार समता मूलक नहीं है।
- 77 प्रतिशत शिक्षिकाओं का मानना है कि कार्य स्थल पर उन्हें पुरुषों से कमतर आंका जाता है।
- 93 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि नौकरी के बाद उनकी भूमिका घर के चाहरदीवारी तक सीमित नहीं है
इन्होंने कहा...
कार्यशील महिलाओं पर हुए शोध के नतीजे बताते हैं कि पुरुषसत्तात्मक विचाराधारा की जड़ें हमारे समाज में कितनी गहरी हैं। शिक्षा और अर्थ को सशक्तीकरण का आधार माना जाता है। इन दोनों से संपन्न होने के बावजूद महिलाएं सशक्त नहीं हो पाई है। इसके लिए परिवार मे लड़के-लड़कियों के प्रति लिंग भेद समाप्त करना होगा। हालांकि महिलाओं को प्रोत्साहन देने वाली सरकारी योजनाओं से महिला सशक्तीकरण में सुधार हुआ है।
डा. धर्मवीर महाजन, पूर्व विभागाध्यक्ष, समाजशास्त्र, एनएएस डिग्री कॉलेज
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