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जब घोड़ों से उतरकर टैंक पर सवार हुई थी सेना

भारतीय सेना की आर्मर्ड कोर ने बुधवार (एक मई) को 81वां स्थापना दिवस मनाया। घोड़े से उतरकर आधुनिक टैंकों पर जवानों की सवारी का यह दिन सेना को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला कदम था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 05:00 AM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 06:23 AM (IST)
जब घोड़ों से उतरकर टैंक पर सवार हुई थी सेना
जब घोड़ों से उतरकर टैंक पर सवार हुई थी सेना

मेरठ । भारतीय सेना की आर्मर्ड कोर ने बुधवार (एक मई) को 81वां स्थापना दिवस मनाया। घोड़े से उतरकर आधुनिक टैंकों पर जवानों की सवारी का यह दिन सेना को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला कदम था। एक मई 1938 को पहली बार सेना ने टैंकों, विकर्स लाइट टैंक और सेवरोलेट आर्मर्ड कारों की सवारी शुरू की थी। घोड़ों से उतरकर टैंक की सवारी करने वाली भारतीय सेना की पहली रेजिमेंट सिंदे हॉर्स थी। इसके बाद से धीरे-धीरे सेना में लड़ाई के मैदान पर घोड़ों का इस्तेमाल कम होने लगा और आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित टैंकों की संख्या बढ़ती गई।

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द्वितीय विश्व युद्ध में बदली तस्वीर

साल 1939 से पहले तक के सभी युद्ध घोड़ों पर सवार होकर लड़े गए थे। युद्ध में घोड़ों की अधिक मृत्यु होने के कारण ही अंग्रेजी सेना ने घोड़ों की ब्रीडिंग भारत मे शुरू की और रिमाउंट वेटनरी कोर की स्थापना हुई। साल 1939 में हुए द्वितीय विश्व युद्ध में घोड़ों की जगह टैंक व आर्टीलरी ने ले ली थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आइएवीसी (अब आरवीसी) की 90 यूनिटों को बंद कर दिया गया था।

सेना में हैं 63 आर्मर्ड रेजिमेंट

भारतीय सेना के आर्मर्ड कोर के अंतर्गत 63 आर्मर्ड रेजिमेंट हैं। इनमें प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड, हॉर्स बटालियनें, कैवेलरी बटालियनें, लांसर्स, आर्मर्ड रेजिमेंटलाइट कैवेलरी, डेक्कन हॉर्स आदि शामिल हैं। फ‌र्स्ट हॉर्स मेरठ छावनी में तैनात रह चुकी है और पुना हॉर्स वर्तमान में तैनात है। पुना हॉर्स को साल 1965 के युद्ध में दुश्मन को खाक में मिटाने के लिए फक-रे-हिद का खिताब भी मिला है। पुना हॉर्स ने दो साल पहले गठन का 200वां दिवस भी मनाया था। इसी तरह कई आर्मर्ड रेजिमेंट छावनी में तैनात रह चुकी हैं।

चर्चित है टैंक 'फामागुस्ता' की कहानी

साल 1971 के युद्ध में पुना हॉर्स के सेकेंड ले. अरुन खेत्रपाल सेंचुरियन टैंक 'फामागुस्ता' पर सवार थे। पश्चिमी क्षेत्र में टैंक में दो गोले लग चुके थे। इसके बाद उन्होंने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए दुश्मन के एक-एक टैंक को निशाना बनाना शुरू किया। उन्होंने फामागुस्ता से दुश्मन के आठ टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए। अंतिम टैंक के सामने वह महज 75 मीटर की दूरी पर खड़े थे। वह टैंक पाकिस्तान के 13 लैंसर के कमांडर मेजर निशार का था। अंतिम व चौथा गोला सीधे टैंक के भीतर घुस गया, जिससे सवार नंद सिंह शहीद हो गए और एएलडी नाथू सिंह व अरुन खेत्रपाल बुरी तरह जख्मी हुए। कुछ समय बाद ही अरुन खेत्रपाल शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। सेना की ओर से फामागुस्ता टैंक बटालियन को युद्ध में जीत की निशानी के तौर पर भेंट दिया गया।


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