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तालाब नहीं तो क्या, खेत में उगा दिया सिंघाड़ा; आइआइएआर से मिला है फेलोशिप अवार्ड

सिंघाड़ा नाम सुनते ही दिमाग में तालाब की तस्वीर उभर जाती है। कारण यह कि सिंघाड़े की बेल हमेशा तालाब में जल की सतह पर तैरते हुए ही दिखती है। सहारनपुर का एक उन्नत किसान तालाब के बजाय खेत में सिंघाड़े की खेती कर रहा है।

By Prem BhattEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 01:53 AM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 06:32 AM (IST)
तालाब नहीं तो क्या, खेत में उगा दिया सिंघाड़ा; आइआइएआर से मिला है फेलोशिप अवार्ड
खेत में सिंघाड़े की फसल दिखाते सेठपाल।

हेमंत मित्तल, सहारनपुर। सिंघाड़ा नाम सुनते ही दिमाग में तालाब की तस्वीर उभर जाती है। कारण यह कि सिंघाड़े की बेल हमेशा तालाब में जल की सतह पर तैरते हुए ही दिखती है। सहारनपुर का एक उन्नत किसान तालाब के बजाय खेत में सिंघाड़े की खेती कर रहा है। जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कई पुरस्कार जीतने वाले सेठपाल इस वर्ष यूपी के अकेले ऐसे कृषक रहे, जिन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने फेलोशिप अवार्ड दिया है।

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गांव नंदी निवासी सेठपाल पिछले दो दशकों से उन्नत खेती कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लैब टू लैंड के नारे से प्रभावित सेठ पाल बताते हैं कि वर्ष 1997 में पहली बार खेत में फ्रेंच बींस उगाकर उन्होंने उन्नत खेती का रुख किया था। एक बार जोहड़ में सिंघाड़े की बेल देखी तो इसे खेत में उगाने का विचार आया। कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ली। अब खेत में महज एक से डेढ़ फीट पानी में सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। इससे वह 20-25 हजार रुपये प्रति बीघा बचत कर लेते हैं।

मार्च में मिला था पुरस्कार

सेठपाल ने कृषि स्नातक की पढ़ाई के बाद खेती को मिशन बनाया। वर्ष 2008 में प्रोग्रेसिव फार्मर अवार्ड, 2012 में इनोवेटिव फार्मर अवार्ड और 2020 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने उन्हें फैलोशिप (अध्येता) अवार्ड मिला। 10 वर्षों के बाद इस वर्ष देशभर के मात्र 5 कृषकों को यह पुरस्कार दिल्ली में पूसा कृषि मेले में दिया गया। इससे पूर्व यह पुरस्कार वर्ष 2010 में कृषकों को मिला था। इसके लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के पीके सिंह, आरएन यादव, एके मिश्रा व आइके कुशवाहा को प्रेरणास्रोत बताया।

खेत में उगा घाड़ा सिंघाड़ा ज्यादा शुद्ध

सिंघाड़े को आयुर्वेद में बेहद गुणकारी बताया गया है। वात-पित्त रोग, हृदय रोग, मोटापा कम करने, बुखार घटाने, भूख बढ़ाने व वीर्य गाढ़ा करने के औषधीय गुण सिंघाड़े में होते हैं। सेठपाल बताते हैं कि जोहड़ में गंदा पानी आता है, जबकि खेत में स्वच्छ जल से सिंघाड़े की पैदावार होती है। यही कारण है कि तालाब के सिंघाड़े में रासायनिक खादों का इस्तेमाल अधिक होता है, वहीं खेत में संतुलित उर्वरक प्रयोग की जाती है।

अब तो बेल भी कर रहे तैयार

उन्नत कृषि के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए सेठपाल अब सिंघाड़े की बेल स्वयं तैयार कर रहे हैं। इसे उन कृषकों को बेचते हैं जो सिंघाड़े की खेती करना चाहते हैं। सेठ पाल ने बताया कि मध्य जून में बेल का रोपण किया जाता है। अक्टूबर से जनवरी तक फसल ली जाती है। फरवरी में अगली फसल का बीज रोपकर उसे मई के आखिर में तैयार किया जाता है। सिंघाड़े से अब बिस्किट, पाउडर, दवा समेत कई उत्पाद तैयार होते हैं। 


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