नक्सलियों को खोज निकालेगी वानी और चीना की दमदार टीम
नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में झारखंड सीआइडी को आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज में प्रशिक्षित फौजी श्वानों का दस्ता मिला है। फौजी श्वान नक्सलियों के छिपने के ठिकानेे खोजेंंगे ।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 02:44 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 02:44 PM (IST)
मेरठ, [अमित तिवारी]। वानी व चीना की अगुवाई वाला फौजी दस्ता झारखंड के नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में सशस्त्र बलों की आंख-नाक और कान बनेगा। ऑपरेशन के दौरान यह दस्ता जवानों को रास्ता बताएगा। साथ ही नक्सलियों द्वारा बिछाए जाल, बारूद और छिपने के ठिकानों की भी टोह लेगा। यह दस्ता है आरवीसी सेंटर एंड कालेज में प्रशिक्षित फौजी श्वानों का। ट्रेनिंग के बाद 10 श्वानों का यह दस्ता आरवीसी ने झारखंड सीआइडी के सुपुर्द किया है। दस्ता झारखंड पहुंच चुका है।
बारूद सूंघने में महारत
वानी, अवनी, विक, चीना आदि फौजी श्वान एक्सप्लोसिव डिटेक्शन डॉग्स हैं। यानी, इनकी ट्रेनिंग जमीन के भीतर या ऊपर छिपाकर रखे गए बारूद को सूंघकर निकालने की है। इन फौजी श्वानों को दूर से बारूद की गंध भी मिल जाती है, जिसका पीछा करते हुए ये उस स्थान तक पहुंच जाते हैं। रास्ते में छिपाकर या मिट्टी में दबाकर रखे गए बारूद को भी वे आसानी से सूंघ सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में सेना की जरूरतों के अनुरूप प्रशिक्षित इन फौजी श्वानों की मदद से झारखंड में नक्सल विरोधी ऑपरेशन चलाए जाएंगे। दस्ते में सभी श्वान लेब्राडोर नस्ल के हैं।
जंगलों में है इनकी जरूरत
नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं। नक्सली एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करने के साथ ही घात लगाकर सशस्त्र बलों की टुकड़ी पर हमला भी करते हैं। ऐसे में अब ऑपरेशन के लिए निकली जवानों की टोली फौजी श्वानों की अगुवाई में जंगल में प्रवेश करेगी। ये श्वान जवानों को रास्ते की हर हलचल या खतरे से आगाह करते रहेंगे। दूर तक किसी की उपस्थिति भांपने के साथ ही श्वान घने अंधेरे में देखने और सुनने में भी पूर्ण सक्षम हैं। मामूली सी हलचल पर वे हरकत में आ जाते हैं, ताकि उनके पीछे चल रहे जवान पोजीशन लेते हुए आगे बढ़ सकें।
विशेष ट्रेनिंग होती है
एक्सप्लोसिव डिटेक्शन (ईडी) डॉग्स की ट्रेनिंग विशेष तौर पर तरह-तरह के बारूद को सूंघने के लिए ही होती है। सामान्य अनुशासन की ट्रेनिंग के बाद उन्हें एक्सप्लोसिव डिटेक्शन की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के बाद सेना की ओर से फील्ड टेस्ट किया जाता है, जिसमें विभिन्न तरीकों से बारूद को छिपाने के बाद इन्हें खोजने के लिए छोड़ा जाता है। पूरी तरह से प्रशिक्षण में खरा उतरने के बाद ही इन श्वानों को ऑपरेशन के लिए तैयार माना जाता है।
बारूद सूंघने में महारत
वानी, अवनी, विक, चीना आदि फौजी श्वान एक्सप्लोसिव डिटेक्शन डॉग्स हैं। यानी, इनकी ट्रेनिंग जमीन के भीतर या ऊपर छिपाकर रखे गए बारूद को सूंघकर निकालने की है। इन फौजी श्वानों को दूर से बारूद की गंध भी मिल जाती है, जिसका पीछा करते हुए ये उस स्थान तक पहुंच जाते हैं। रास्ते में छिपाकर या मिट्टी में दबाकर रखे गए बारूद को भी वे आसानी से सूंघ सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में सेना की जरूरतों के अनुरूप प्रशिक्षित इन फौजी श्वानों की मदद से झारखंड में नक्सल विरोधी ऑपरेशन चलाए जाएंगे। दस्ते में सभी श्वान लेब्राडोर नस्ल के हैं।
जंगलों में है इनकी जरूरत
नक्सल विरोधी ऑपरेशनों में सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं। नक्सली एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करने के साथ ही घात लगाकर सशस्त्र बलों की टुकड़ी पर हमला भी करते हैं। ऐसे में अब ऑपरेशन के लिए निकली जवानों की टोली फौजी श्वानों की अगुवाई में जंगल में प्रवेश करेगी। ये श्वान जवानों को रास्ते की हर हलचल या खतरे से आगाह करते रहेंगे। दूर तक किसी की उपस्थिति भांपने के साथ ही श्वान घने अंधेरे में देखने और सुनने में भी पूर्ण सक्षम हैं। मामूली सी हलचल पर वे हरकत में आ जाते हैं, ताकि उनके पीछे चल रहे जवान पोजीशन लेते हुए आगे बढ़ सकें।
विशेष ट्रेनिंग होती है
एक्सप्लोसिव डिटेक्शन (ईडी) डॉग्स की ट्रेनिंग विशेष तौर पर तरह-तरह के बारूद को सूंघने के लिए ही होती है। सामान्य अनुशासन की ट्रेनिंग के बाद उन्हें एक्सप्लोसिव डिटेक्शन की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के बाद सेना की ओर से फील्ड टेस्ट किया जाता है, जिसमें विभिन्न तरीकों से बारूद को छिपाने के बाद इन्हें खोजने के लिए छोड़ा जाता है। पूरी तरह से प्रशिक्षण में खरा उतरने के बाद ही इन श्वानों को ऑपरेशन के लिए तैयार माना जाता है।
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