नई शिक्षा नीति 2019: पेशेवर शिक्षा से ऐसे बदलेगी देश में बेरोजगारी की तस्वीर
नई शिक्षा नीति 2019 भारतीय परंपरा और आधुनिक शिक्षा की मिश्रित तस्वीर हैं। इसमें देश के युवाओं को पेशेवर बनाने पर जोर दिया है। स्कूली शिक्षा को तीन की जगह चार भागों में विभाजित।
By Taruna TayalEdited By: Published: Thu, 06 Jun 2019 03:08 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jun 2019 03:08 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। रोजगार का न होना या फिर रोजगार के लिए बेहतर कौशल व पेशेवरों का न होना, दोनों ही बातें देश की वर्तमान स्थिति में सटीक बैठती हैं। इसे बदलने के लिए देश में पेशेवर तैयार करने की जरूरत है। ऐसे में नई शिक्षा नीति में पेशेवर शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। नई नीति के प्रारूप के अनुसार देश में कृषि, कानून, स्वास्थ्य, तकनीकी आदि क्षेत्रों में पेशेवर शिक्षा विषय विशेष में और सामान्य उच्च शिक्षा से अलग-थलग रूप में दी जाती है। पेशेवर शिक्षा का प्रयास छात्रों को नौकरियों के लिए तैयार करना होता है, लेकिन रोजगार की योग्यता के रूप में जो परिणाम हैं, वह संतोषजनक नहीं रहे हैं।
बनेगी अलग समितियां
देश में पेशेवरों की कमी है। विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में। इसीलिए नई शिक्षा नीति में पेशेवर शिक्षा के मुख्य क्षेत्रों, कृषि, कानूनी शिक्षा, स्वास्थ्य व तकनीकी शिक्षा में बदलाव की योजना बनाने के लिए अलग समितियों के गठन पर जोर दिया गया है। पेशेवर शिक्षा के साथ सामान्य शिक्षा के जुड़ाव को देखते हुए इसकी नींव स्कूली शिक्षा से ही रखने की जरूरत है। इसलिए स्नातक के पहले पूर्व स्नातक स्तर यानी स्कूल स्तर पर बदलाव और उस स्तर की पेशेवर शिक्षा को उच्च शिक्षा के साथ एकीकरण पर भी विचार करने का सुझाव दिया गया है।
प्री-प्राइमरी शिक्षा को प्रमुखता
न्यूरोसाइंस के साक्ष्यों के अनुसार बच्चे के मस्तिष्क का 85 फीसद विकास छह वर्ष की उम्र तक हो जाता है। मस्तिष्क के उचित विकास के लिए बच्चे के शुरुआती छह सालों के दौरान उत्कृष्ट देखभाल, उचित पोषण, शारीरिक गतिविधियों, सामाजिक वातावरण आदि महत्वपूर्ण हैं। इसके सकारात्मक परिणाम प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल व शिक्षा यानी अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) में मिले हैं। इसीलिए प्री-प्राइमरी शिक्षा को प्रमुखता देते हुए छह साल की बजाय तीन साल की उम्र से ही बच्चों स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाएगा।
बदलेगी स्कूली शिक्षा की रूपरेखा
वर्तमान में कक्षा एक से 12वीं तक की स्कूली शिक्षा चार भागों में विभाजित है। इसमें एक से पांच तक प्राथमिक, छह से आठ तक उच्च प्राथमिक, नौवीं व 10वीं माध्यमिक और 11वीं-12वीं उच्च माध्यमिक है। अब पूर्व प्राइमरी को इसमें जोड़कर अलग चार भाग बनाए गए हैं। नई नीति में पांच साल की बुनियादी शिक्षा होगी। इसमें तीन साल प्री-प्राइमरी के और कक्षा एक व दो होगा। तीन साल की प्राथमिक अवस्था में कक्षा तीन, चार व पांच होगा। तीन साल की माध्यमिक अवस्था में कक्षा छह, सात व आठ होगा। अंत में चार सालों की उच्च अवस्था यानी सेकेंड्री में कक्षा नौवीं से 12वीं तक की शिक्षा होगी।
छह करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर
स्कूली शिक्षा में ड्रॉप आउट रेट को कम करना बड़ी चुनौती है। साल 2015 में स्कूल जाने की आयु (छह से 18 साल) वाले 6.2 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर थे। यू-डायस 2016-17 के अनुसार कक्षा एक से पांच तक के लिए सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो/जीईआर) 95.1 फीसद था। कक्षा छह से आठ के लिए जीईआर जहां 90.7 फीसद था वहीं नौवीं-10वीं व 11-12वीं के लिए यह 79.3 फीसद और 51.3 फीसद था, जो बेहद चिंताजनक है।
बनेगी अलग समितियां
देश में पेशेवरों की कमी है। विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में। इसीलिए नई शिक्षा नीति में पेशेवर शिक्षा के मुख्य क्षेत्रों, कृषि, कानूनी शिक्षा, स्वास्थ्य व तकनीकी शिक्षा में बदलाव की योजना बनाने के लिए अलग समितियों के गठन पर जोर दिया गया है। पेशेवर शिक्षा के साथ सामान्य शिक्षा के जुड़ाव को देखते हुए इसकी नींव स्कूली शिक्षा से ही रखने की जरूरत है। इसलिए स्नातक के पहले पूर्व स्नातक स्तर यानी स्कूल स्तर पर बदलाव और उस स्तर की पेशेवर शिक्षा को उच्च शिक्षा के साथ एकीकरण पर भी विचार करने का सुझाव दिया गया है।
प्री-प्राइमरी शिक्षा को प्रमुखता
न्यूरोसाइंस के साक्ष्यों के अनुसार बच्चे के मस्तिष्क का 85 फीसद विकास छह वर्ष की उम्र तक हो जाता है। मस्तिष्क के उचित विकास के लिए बच्चे के शुरुआती छह सालों के दौरान उत्कृष्ट देखभाल, उचित पोषण, शारीरिक गतिविधियों, सामाजिक वातावरण आदि महत्वपूर्ण हैं। इसके सकारात्मक परिणाम प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल व शिक्षा यानी अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) में मिले हैं। इसीलिए प्री-प्राइमरी शिक्षा को प्रमुखता देते हुए छह साल की बजाय तीन साल की उम्र से ही बच्चों स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाएगा।
बदलेगी स्कूली शिक्षा की रूपरेखा
वर्तमान में कक्षा एक से 12वीं तक की स्कूली शिक्षा चार भागों में विभाजित है। इसमें एक से पांच तक प्राथमिक, छह से आठ तक उच्च प्राथमिक, नौवीं व 10वीं माध्यमिक और 11वीं-12वीं उच्च माध्यमिक है। अब पूर्व प्राइमरी को इसमें जोड़कर अलग चार भाग बनाए गए हैं। नई नीति में पांच साल की बुनियादी शिक्षा होगी। इसमें तीन साल प्री-प्राइमरी के और कक्षा एक व दो होगा। तीन साल की प्राथमिक अवस्था में कक्षा तीन, चार व पांच होगा। तीन साल की माध्यमिक अवस्था में कक्षा छह, सात व आठ होगा। अंत में चार सालों की उच्च अवस्था यानी सेकेंड्री में कक्षा नौवीं से 12वीं तक की शिक्षा होगी।
छह करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर
स्कूली शिक्षा में ड्रॉप आउट रेट को कम करना बड़ी चुनौती है। साल 2015 में स्कूल जाने की आयु (छह से 18 साल) वाले 6.2 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर थे। यू-डायस 2016-17 के अनुसार कक्षा एक से पांच तक के लिए सकल नामांकन अनुपात (ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो/जीईआर) 95.1 फीसद था। कक्षा छह से आठ के लिए जीईआर जहां 90.7 फीसद था वहीं नौवीं-10वीं व 11-12वीं के लिए यह 79.3 फीसद और 51.3 फीसद था, जो बेहद चिंताजनक है।
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