मेरठ में ट्रॉमा सेंटर को है‘उपचार’ का इंतजार Meerut News
मेडिकल कॉलेज में ट्रॉमा सेंटर सुचारु रूप से शुरू नहीं हो सका। इमारत भी शोपीस बनी हुई है। इसके पीछे की वजह मेडिकल कॉलेज प्रशासन फैकल्टी और उपकरणों की कमी बताता है।
By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 04:19 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jun 2019 04:19 PM (IST)
मेरठ, जेएनएन। घायलों को तत्काल इलाज मुहैया कराने के लिए बनाया गया ट्रॉमा सेंटर खुद बीमार है। करीब चार पहले मेडिकल कॉलेज में बने लेवल-दो स्तर के ट्रॉमा सेंटर में सुचारु रूप से कामकाज शुरू नहीं हो सका है। इसके पीछे की वजह मेडिकल कॉलेज प्रशासन फैकल्टी और उपकरणों की कमी बताता है।
यह है मामला
मेडिकल कॉलेज प्रशासन के अनुसार 2013-14 में केंद्र सरकार से लेवल-दो स्तर के ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए 80 लाख रुपये मिले थे। मेडिकल कॉलेज के आपातकालीन विभाग के अंतर्गत ट्रॉमा सेंटर में वार्ड और तीन ऑपरेशन थियेटर बनाए गए थे। इसके बाद उपकरणों की खरीद करनी थी। इसके लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 4.22 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। यह पैसा आज तक मुहैया नहीं कराया गया। इससे ट्रॉमा सेंटर के उपकरणों की खरीद नहीं हो सकी। वहीं, ट्रॉमा सेंटर के लिए न्यूरो सर्जन, एनेस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जन, सर्जरी, मेडिसिन विशेषज्ञ समेत पैरा मेडिकल स्टॉफ के पद भी सृजित किए गए थे, लेकिन यह भी नहीं भरे गए। इससे मेडिकल कॉलेज में अभी घायलों को ट्रॉमा की सेवाएं मयस्सर नहीं हो रही हैं। यह स्थिति तब है जब मेरठ से महज 70 किमी. दूर देश की राजधानी में पूरी सरकार बैठती है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की नजर मेरठ पर होती है। इसके बाद भी ट्रॉमा सेंटर को फैकल्टी और उपकरणों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। मालूम हो कि मेरठ समेत करीब 14 जिलों के मरीज-घायल यहीं आते हैं।
मिल रहा सामान्य इलाज
दरअसल, ट्रॉमा सेंटर का मतलब है कि बर्न, एक्सीडेंट, हेड इंजरी, आंख में चोट जैसी गंभीर स्थिति में घायलों को एक ही छत के नीचे सभी प्रकार का उपचार मिले। ब्लड जांच, सिटी स्कैन और एक्स-रे जैसी सेवाएं भी सेंटर में ही देनी हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में सिटी स्कैन की सुविधा नहीं है। इसके लिए दुर्घटना के घायलों को रेडियोलॉजी विभाग में कतार में खड़े होना पड़ता है। कहने का अर्थ है कि ट्रॉमा के वार्ड और ओटी का उपयोग तो हो रहा है, लेकिन घायलों को इमरजेंसी में मौजूद सामान्य उपचार ही मिल रहा है।
प्रतिदिन ट्रॉमा के छह से आठ केस
मेडिकल कॉलेज प्रशासन के मुताबिक प्रतिदिन छह से आठ केस ऐसे आते हैं, जिनको ट्रॉमा की सेवाओं की जरूरत होती है। शेष 15 से 20 केस इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करने वाले होते हैं। ट्रॉमा की सुविधाएं बेहतर न होने के कारण अक्सर सड़क दुर्घटना के गंभीर केस दिल्ली के लिए रेफर हो जाते हैं। ट्रॉमा वार्ड में 20 बेड हैं। यहां जो घायल भर्ती होते हैं उनको मेडिकल कॉलेज में पदस्थ न्यूरो सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, जनरल सर्जन और मेडिसिन के डॉक्टर ही देखते हैं। उनके ऊपर मेडिकल कॉलेज की ओपीडी के मरीजों के उपचार का बोझ अधिक होने के कारण वह ट्रॉमा में भर्ती घायलों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं।
इन्होंने बताया
ट्रॉमा सेंटर की इमारत का हम उपयोग कर रहे हैं, लेकिन सुविधाएं ट्रॉमा सेंटर जैसी नहीं है। वजह ये है कि ट्रॉमा सेंटर का अलग से स्टॉफ भर्ती नहीं किया गया है। उपकरणों के लिए अभी तक बजट नहीं मिला है। मेडिकल कॉलेज में न्यूरो सर्जन, प्लास्टिक सर्जन हैं, जिसके चलते इमरजेंसी में घायलों को बेहतर उपचार मिल जाता है। ट्रॉमा सेंटर के लिए कई बार पत्रचार किया जा चुका है।
- डॉ. आरसी गुप्ता, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज
यह है मामला
मेडिकल कॉलेज प्रशासन के अनुसार 2013-14 में केंद्र सरकार से लेवल-दो स्तर के ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए 80 लाख रुपये मिले थे। मेडिकल कॉलेज के आपातकालीन विभाग के अंतर्गत ट्रॉमा सेंटर में वार्ड और तीन ऑपरेशन थियेटर बनाए गए थे। इसके बाद उपकरणों की खरीद करनी थी। इसके लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 4.22 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। यह पैसा आज तक मुहैया नहीं कराया गया। इससे ट्रॉमा सेंटर के उपकरणों की खरीद नहीं हो सकी। वहीं, ट्रॉमा सेंटर के लिए न्यूरो सर्जन, एनेस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जन, सर्जरी, मेडिसिन विशेषज्ञ समेत पैरा मेडिकल स्टॉफ के पद भी सृजित किए गए थे, लेकिन यह भी नहीं भरे गए। इससे मेडिकल कॉलेज में अभी घायलों को ट्रॉमा की सेवाएं मयस्सर नहीं हो रही हैं। यह स्थिति तब है जब मेरठ से महज 70 किमी. दूर देश की राजधानी में पूरी सरकार बैठती है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की नजर मेरठ पर होती है। इसके बाद भी ट्रॉमा सेंटर को फैकल्टी और उपकरणों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। मालूम हो कि मेरठ समेत करीब 14 जिलों के मरीज-घायल यहीं आते हैं।
मिल रहा सामान्य इलाज
दरअसल, ट्रॉमा सेंटर का मतलब है कि बर्न, एक्सीडेंट, हेड इंजरी, आंख में चोट जैसी गंभीर स्थिति में घायलों को एक ही छत के नीचे सभी प्रकार का उपचार मिले। ब्लड जांच, सिटी स्कैन और एक्स-रे जैसी सेवाएं भी सेंटर में ही देनी हैं, लेकिन मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में सिटी स्कैन की सुविधा नहीं है। इसके लिए दुर्घटना के घायलों को रेडियोलॉजी विभाग में कतार में खड़े होना पड़ता है। कहने का अर्थ है कि ट्रॉमा के वार्ड और ओटी का उपयोग तो हो रहा है, लेकिन घायलों को इमरजेंसी में मौजूद सामान्य उपचार ही मिल रहा है।
प्रतिदिन ट्रॉमा के छह से आठ केस
मेडिकल कॉलेज प्रशासन के मुताबिक प्रतिदिन छह से आठ केस ऐसे आते हैं, जिनको ट्रॉमा की सेवाओं की जरूरत होती है। शेष 15 से 20 केस इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करने वाले होते हैं। ट्रॉमा की सुविधाएं बेहतर न होने के कारण अक्सर सड़क दुर्घटना के गंभीर केस दिल्ली के लिए रेफर हो जाते हैं। ट्रॉमा वार्ड में 20 बेड हैं। यहां जो घायल भर्ती होते हैं उनको मेडिकल कॉलेज में पदस्थ न्यूरो सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, जनरल सर्जन और मेडिसिन के डॉक्टर ही देखते हैं। उनके ऊपर मेडिकल कॉलेज की ओपीडी के मरीजों के उपचार का बोझ अधिक होने के कारण वह ट्रॉमा में भर्ती घायलों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं।
इन्होंने बताया
ट्रॉमा सेंटर की इमारत का हम उपयोग कर रहे हैं, लेकिन सुविधाएं ट्रॉमा सेंटर जैसी नहीं है। वजह ये है कि ट्रॉमा सेंटर का अलग से स्टॉफ भर्ती नहीं किया गया है। उपकरणों के लिए अभी तक बजट नहीं मिला है। मेडिकल कॉलेज में न्यूरो सर्जन, प्लास्टिक सर्जन हैं, जिसके चलते इमरजेंसी में घायलों को बेहतर उपचार मिल जाता है। ट्रॉमा सेंटर के लिए कई बार पत्रचार किया जा चुका है।
- डॉ. आरसी गुप्ता, प्राचार्य मेडिकल कॉलेज
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