Tokyo Olympics 2020: ...तो अकेले मेरठ जीत लेता कई देशों से ज्यादा पदक, जानें कौन सी चीजें बनीं बाधा
Tokyo Olympics 2020 पश्चिम की उर्वर माटी ने एक से बढ़कर एक जांबाज एथलीट पैदा किए हैं। यह खिलाड़ी अपनी क्षमता से क्वालीफाई करते हुए ओलिंपिक तक पहुंचते हैं लेकिन उन्हें खेल सुविधाएं किसी कस्बे जैसी ही मिलती हैं।
जागरण संवाददाता, मेरठ। पश्चिम की उर्वर माटी ने एक से बढ़कर एक जांबाज एथलीट पैदा किए हैं। यह खिलाड़ी अपनी क्षमता से क्वालीफाई करते हुए ओलिंपिक तक पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें खेल सुविधाएं किसी कस्बे जैसी ही मिलती हैं। इन कमियों के चलते मेरठ और आसपास से दर्जनों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पलायन पर मजबूर हुए। उत्तर प्रदेश में उन्हें सुरक्षित जीवन यापन के लिए एक नौकरी तक नहीं मिल सकी। खेल विशेषज्ञों का दावा है कि अगर मेरठ में खिलाडिय़ों को बेहतरीन कोच और स्तरीय ट्रैक मिलते तो दुनिया के कई देशों को अकेले मेरठ शिकस्त दे सकता है।
ट्रैक न कोच, बस हुनर ही पूंजी
उत्तर प्रदेश के दस खिलाड़ी इस बार टोक्यो ओलिंपिक पहुंचे हैं, इनमें आठ तो मेरठ व बुलंदशहर से ही हैं। यह धमाकेदार प्रदर्शन तब है जबकि मेरठ में एथलीटों के लिए सिंथेटिक ट्रैक तक नहीं है, हाकी खिलाडिय़ों के लिए एस्ट्रोटर्फ नहीं है और अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजों के लिए शूटिंग रेंज भी नहीं है। मेरठ समेत पश्चिमी उप्र के पहलवानों ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया, उनके लिए एक वातानुकूलित कुश्ती हाल तक नहीं है। आखिरकार कूलर लगाकर पहलवान प्रैक्टिस करते हैं। दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने भिवानी को सुविधाएं देकर पहलवानों का गढ़ बना दिया। मेरठ के पल्हेड़ा में 25 मीटर का एक बेहतरीन शूटिंग रेंज थी, जिसे न मालूम क्यों गत दिनों बंद कर दिया गया। अब खिलाड़ी पश्चिमी उप्र छोड़कर प्रैक्टिस के लिए पटियाला, नई दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ निकल जाते हैं।
मेडल दर्जनों, मगर नौकरी किसी को नहीं
अस्सी के दशक में मेरठ की हाकी देश में सबसे मजबूत थी। उन दिनों कैलाश प्रकाश स्टेडियम के खिलाड़ी एमपी सिंह और रोमियो जेम्स टीम इंडिया की रीढ़ बनकर 1988 में सियोल ओलिंपिक गए। वो एयर इंडिया की ओर से खेले। सन 1992 बॢसलोना ओलिंपिक में मेरठ की शूटर आभा ढिल्लन पहली भारतीय बनीं। पूर्व अंतरराष्ट्रीय कोच राजाराम बताते हैं कि स्टेडियम से अभिषेक पांडे समेत कई अंतरराष्ट्रीय एथलीटों ने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। जूनियर नेशनल में अब भी एथलीट शानदार प्रदर्शन करते हैं, लेकिन कोच एवं ट्रैक के अभाव में अंतरराष्ट्रीय साख नहीं बटोर पाए। कैलाश प्रकाश स्टेडियम में 2005 तक खेल हास्टल था, जो बाद में सैफई शिफ्ट कर दिया गया। यहां से निकले एथलीटों ने यूपी ही नहीं, बल्कि भारत को भी कई पदक दिलाए लेकिन अर्जुन अवार्डी अलका तोमर को छोड़कर दूसरे किसी खिलाड़ी को यूपी में नौकरी नहीं मिल सकी।
हालात पर गौर करें
खिलाड़ी यूपी नहीं, यहां है जाब
- गरिमा चौधरी, ओलंपियन जुडो हरियाणा
- अन्नू रानी, जेवलिन थ्रो रेलवे
- सीमा पूनिया सीआरपीएफ व अब हरियाणा पुलिस
- एमपी सिंह व रोमियो जेम्स हाकी ओलंपियन एयर इंडिया
- अभिषेक पांडेय, 400 मीट एलआइसी कानपुर
- अन्नू कुमार, लांग जंपर रेलवे व पहले पंजाब पुलिस
- कुलदीप सिंह, 5000 मीटर उत्तर प्रदेश पुलिस
- निधि सिंह, 100 मीटर रेलवे
- प्रियंका गोस्वामी, पैदल चाल नार्थ ईस्ट
इनका कहना-
मेरठ से तकरीबन सभी खेलों में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले। यह सच है कि खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं नहीं मिलीं अन्यथा भारत की झोली में कई ओलिंपिक पदक होते। स्तरीय कोच और बेहतरीन ट्रैक उपलब्ध कराए सरकार, नौकरी भी दे। तब जाकर खिलाड़ी कहीं भी पदक जीतने के लिए तैयार हो पाते हैं।
-राजाराम, पूर्व अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स कोच
जिस स्टेडियम ने दर्जनों अंतरराष्ट्रीय एथलीट और ओलिंपियन हाकी खिलाड़ी दिए वहां अब तक एस्ट्रोटर्फ और सिंथेटिक ट्रैक तक नहीं। किसी एक खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं नहीं, लेकिन हमारे खिलाड़ी अपनी क्षमता से अंतरराष्ट्रीय पदक चूम रहे हैं।
-अन्नू कुमार, कोच व पूर्व अंतरराष्ट्रीय एथलीट