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'तीन तलाक, हलाला की तरह बहुपत्नी प्रथा भी नाजायज'

तीन तलाक, हलाला और बहुपत्‍‌नी प्रथा के नाम पर मुस्लिम महिलाओं का शोषण हो रहा है। रविवार को यह बात राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के पदाधिकारियों ने प्रेसवार्ता में कही। कहा कि बहुपत्‍‌नी प्रथा के खिलाफ भी कानून बनाए जाने की मांग की जाएगी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 07:00 AM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 07:00 AM (IST)
'तीन तलाक, हलाला की तरह बहुपत्नी प्रथा भी नाजायज'

मेरठ: तीन तलाक, हलाला और बहुपत्‍‌नी प्रथा के नाम पर मुस्लिम महिलाओं का शोषण हो रहा है। रविवार को यह बात राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के पदाधिकारियों ने प्रेसवार्ता में कही। कहा कि बहुपत्‍‌नी प्रथा के खिलाफ भी कानून बनाए जाने की मांग की जाएगी। मंच के प्रांत संयोजक कदीम आलम ने कहा कि मौजूदा दौर में तीन तलाक और हलाला के संबंध में देवबंद के उलमा को बयान दर्ज कर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इस मसले पर उलमा की चुप्पी गलत संदेश दे रही है। हलाला की आड़ में पूर्व नियोजित ढंग से निकाह कराया जा रहा है जो कि इस्लाम की नजर में गलत है। इसी तरह तलाक के बाद महिला को घर से निकालना जुर्म है। मौलाना हमीदुल्लाह खान ने कहा कि बहुपत्‍‌नी प्रथा जब आरंभ हुई थी उस समय जंग का समय था। सैकड़ों की संख्या में सिपाही जान से हाथ धो बैठते थे। उनके परिवार की महिलाओं को सहारा देने के उद्देश्य से इस्लाम में एक से ज्यादा पत्‍ि‌नयों को जायज करार दिया गया है, लेकिन मौजूदा समय में लोग रंगरेलियां मनाने के लिए इस नाजायज प्रथा का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस पर भी अंकुश लगना चाहिए। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय सह संगठन संयोजक तुषारकांत ¨हदुस्तानी ने कहा कि इसी तरह गौ हत्या पर भी उलेमा को आगे आकर इसका मांस खाना नाजायज करार देना चाहिए। इस्लाम में गाय का मीट बीमारी और उसके दूध से बना घी और दूध का सेवन अच्छा करार दिया गया है।

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इस अवसर सुप्रीम कोर्ट में हलाला को लेकर वाद दायर करने वाली महिला फरजाना के घर पर हमले की निंदा की गई। पदाधिकारियों ने कहा कि तीन तलाक और हलाला पीड़ित महिलाओं की कोर्ट में संगठन निश्शुल्क पैरवी कर रहा है। शरई अदालतों का विस्तार करने की जरूरत नहीं

कदीम ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शरई अदालतों के विस्तार की बात करना बेमानी है। कहा कि मुस्लिम समुदाय में न तो पूरी तरह शरई कानून लागू हो रहा है और न ही संविधान का पालन हो रहा है। तलाक तो शरई कानून से दिया जा रहा है लेकिन महिलाएं हर्जा खर्चा के लिए आइपीसी की धारा 125ए का सहारा लेकर कोर्ट में वाद दायर करती हैं। शरई अदालतों का मखौल बन रहा है। तुषारकांत ¨हदुस्तानी ने कहा कि या तो शरई कानून का पूर्ण रूपेण पालन हो या भारतीय संविधान का। शरीय कानून के अनुसार चोरी करने वाले के हाथ काटने की सजा है। इसी तरह हलाला के तहत गलत निकाह कराने वाले मौलवी को भी शरई कानून के तहत दंडित किया जाना चाहिए। नदीमुर्रहमान बेग, डा. अंसार अहमद, साजिद सैफी, अशरफ, जियाउल्लाह, असद उल्लाह आदि मौजूद रहे।


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