जिम्मेदारों ने नहीं सुने धमाके
दीपावली की शाम शहर घूमने निकले तो बुढ़ाना गेट घटाघर कंकरखेड़ा पल्लवपुरम दौराला कस्बा समेत सभी प्रमुख स्थानों पर सड़क किनारे दुकानें सजी थीं।
मेरठ, जेएनएन। दीपावली की शाम शहर घूमने निकले तो बुढ़ाना गेट, घटाघर, कंकरखेड़ा, पल्लवपुरम, दौराला कस्बा समेत सभी प्रमुख स्थानों पर सड़क किनारे दुकानें सजी थीं। आतिशबाजी देख ठिठके, और वहा बैठे एक व्यक्ति से पूछा, भईया इन्हें बेचने पर तो रोक है, खरीदे तो पुलिस आपके साथ हमें भी पकड़ेगी, आपको डर नहीं लगता। उनमें से एक बोला, साहब आप बेफिक्र पटाखे खरीदिए। सब हमसे खुश हैं, आज के लिए अघोषित इजाजत है। डर की कोई बात नहीं है। इतना ही नहीं, बड़े व्यापारियों में भी गजब का आत्मविश्वास था। लिहाजा खूब पटाखे बिके, और रातभर जमकर जले। एनजीटी, सरकार और डीएम ने मजिस्ट्रेट और पुलिस को यह जिम्मेदारी सौंपी थी, उन्होंने जिम्मेदारी निभाई, शहर भर में घूमे, मगर पटाखों के धमाके उन्होंने नहीं सुने। हालाकि, बड़े साहब ने धमाके सुन लिए हैं। उन्होंने इन जिम्मेदारों से जवाब मागा है।
जाम ट्रासफर हो गया है
मुख्यमंत्री के जाममुक्त मेरठ के आदेश का पालन करने में जुटे पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने हापुड़ अड्डा चौराहे पर कमाल ही कर दिखाया है। हर समय जाम के जाल में फंसा रहने वाला चौराहा आजकल बिल्कुल खाली रहता है। अब आप चौराहे के गोलचक्कर पर आसानी से घूमते रहिए। किसी भी रास्ते पर मुड़ जाइए। इस बदलाव पर अफसर अपनी पीठ ठोक रहे हैं। बात भी सही है, समस्या उनके लिए खत्म हो गई है, लेकिन जनता के लिए बरकरार है। अभी तक चौराहा पार करना मुसीबत था, अब चौराहे तक पहुंच पाना। अब जाम चौराहे पर नहीं, बल्कि प्रत्येक सड़क पर 100 मीटर दूर ट्रासफर हो गया है। ई-रिक्शा, टेंपो को ट्रैफिक पुलिस चौराहे से पहले ही रोक लेती है, लेकिन उनकी बेतहाशा संख्या और मनमानी बरकरार है। अब जनता को यहा एक नहीं, दो बार जाम झेलना पड़ रहा है।
अबकी बार दाव पर साख
शिक्षक और स्नातक क्षेत्र के एमएलसी के चुनाव की बिसात बिछ गई है। दो पदों के लिए मैदान में कुल 47 खिलाड़ी भी आ डटे हैं। इनमें से 45 का निशाना केवल दो लोग हैं, जिन्होंने बीते कई दशकों में अच्छे-अच्छों को पटखनी दी है। शिक्षक सीट पर ओमप्रकाश शर्मा लगातार आठ बार जीतकर लगभग 50 साल से विधान परिषद में हैं। हेमसिंह पुंडीर स्नातक सीट से चार बार (24 वर्ष) से उनके हमराही हैं। दोनों का स्थान कब्जाने की होड़ मची है। इस बार दावेदारों की फेहरिस्त लंबी है। हर कोई बदलाव के बड़े बड़े दावे भी कर रहा है। दोनों ही शिक्षक और शिक्षा की राजनीति के पुरोधा हैं। दोनों की ही साख इस बार दाव पर है। प्रतिद्वंद्वियों को इन्हें रास्ते से हटाने की इतनी जल्दी है कि केवल इन दोनों के ही नामाकन पत्रों पर आपत्ति की गई।
जरा संभलकर, फिर आया कोरोना
त्यौहारों की खुशियों में लोग इस कदर डूबे कि सिर पर खड़ी मुसीबत को भी नजरअंदाज कर दिया। अब इस लापरवाही के नतीजे सामने आने लगे हैं। कोरोना वायरस एक बार फिर से पाव पसार रहा है। दिल्ली में इसने प्रकोप दिखाना शुरू किया तो मेरठ समेत एनसीआर में अलर्ट जारी किया गया। सावधानिया अपनाने की तमाम अपीलें की गईं, मगर जनता कहा मानने वाली थी। दशहरा, धनतेरस, दीपावली और भाईदूज की खुशी में इतनी गहराई तक डूबी कि सावधानी भूल गई। इसी का नतीजा है कि मेरठ में कोरोना संक्रमण की दर दो से बढ़कर दस फीसद तक जा पहुंची है। मौतों का आकड़ा भी फिर से बढ़ने लगा है। सरकार अफसरों पर दबाव बना रही है और अफसरों ने सबकुछ जनता के भरोसे छोड़ दिया है। जनता कुछ सुनने को तैयार नहीं है। आशका है कि जल्द फिर से घरों में कैद होने के हालात बन रहे हैं।