महामारी कोरोना का यह काल आत्मविश्लेषण करने का है
कोरोना के नए वायरस कोविड-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। बड़े-बड़े ज्ञान-विज्ञान भी इस महामारी को अभी तक रोकने में सफल नहीं हो पाए हैं। ऐसे में भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का फैसला लिया।
मेरठ, जेएनएन। कोरोना के नए वायरस कोविड-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। बड़े-बड़े ज्ञान-विज्ञान भी इस महामारी को अभी तक रोकने में सफल नहीं हो पाए हैं। ऐसे में भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन का फैसला लिया। लोगों ने इस पर भरोसा रखते हुए खुद को घरों में कैद कर लिया। यही वह तरीका है, जिससे इस देश में वायरस के बढ़ते कदम को रोका जा सकता है। यह समय सड़क पर दिखने का नहीं है, बल्कि एकांत में रहते हुए आत्मविश्लेषण करने का भी है। यह कहना है प्रसिद्ध कवि डॉ. हरिओम पंवार का। जो खुद इस लॉक डाउन का पूरे अनुशासन के साथ पालन कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन में थाली बजाने और अब घर के बाहर एक दीया जलाने की अपील की है, वह अनायास नहीं है। इसमें भी एक विज्ञान छिपा हुआ है। घर पर फुर्सत के समय उन्होंने दैनिक जागरण के संवाददाता विवेक राव से बात की। -हर परिस्थिति में आपने कविताएं रचीं, क्या इस वैश्विक महामारी के माहौल में भी कलम चली है आपकी?
इस लॉकडाउन में मैने कोरोना पर कोई कविता नहीं लिखी है। मैं तो इस बात से बहुत आक्रोशित हूं, जिसके कारण हमको हमारा प्रोफेशन ही खतरे में नजर आ रहा है। उस पर कविता कोई क्या लिखे। यह कविता का विषय नहीं है। विनाश कोई कविता का विषय नहीं होता है लेकिन, दुख होता है कि कुछ लोग टीवी पर दो-चार पंक्तियां लेकर खड़े हो जा रहे हैं। इस लॉकडाउन में बहुत से संवाद माध्यमों ने मुझसे लाइव होने के लिए कहा, लेकिन मैं लॉकडाउन का पूरी सख्ती से पालन करता हूं। -लॉकडाउन है अभी भी बहुत से लोग सड़कों पर निकल रहे हैं। उनको कोई संदेश देंगे?
कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है। यह सभी जानते हैं। लॉकडाउन में अपने घरों में रहना ही इसका एकमात्र उपाय है। ऐसे में सड़क पर निकलना आत्महत्या करने जैसा है। कुछ लोग अज्ञानता के कारण भीड़ में जुट रहे हैं। कुछ समय की बात है, उन्हें कड़ाई से लॉकडाउन का पालन करना चाहिए। -कुछ लोग सोशल मीडिया पर थाली बजाने के बाद दीपक जलाने को लेकर टिप्पणी कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री ने यह अनायास नहीं किया है। कुछ लोग इसे लेकर गलत टिप्पणी कर रहे हैं। ध्वनि और प्रकाश में शक्ति होती है। इसका वैज्ञानिक प्रभाव रहता है। रविवार को रात नौ बजे नौ मिनट तक रोशनी दीपक, मोमबत्ती और अन्य तरह के रोशनी जलाने की जो बात कही गई है, उसका बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है। दिन और समय का चुनाव वैज्ञानिक गणना से किया गया है। कोरोना संकट में बहुत से लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है। इससे समाज कैसे बाहर निकलेगा?
इस दौर में भी कोई भूखा नहीं रहना चाहिए। सरकार और समाज दोनों का इस ओर ध्यान हैं। लोग आगे भी आ रहे हैं। शहर में किसी भी तरह की मदद चाहिए तो मैं पूरी तरह से तैयार हूं। भारत के लोगों में वह ताकत है कि वह हर मुश्किल हालात से बाहर निकल जाएंगे। घर पर फुर्सत के समय क्या कर रहे हैं? आगे के लिए कोई और योजना है?
इस समय अपनी लाइब्रेरी में अध्ययन में अधिक समय बिता रहा हूं। सुधांशु महाराज की गीता पर एक टिप्पणी है, उसे पढ़ रहा हूं। अध्ययन में रहने से वक्त का पता नहीं चलता। इसके अलावा टीवी पर न्यूज देखने और अखबार पढ़ने में वक्त निकल जाता है। आगे के लिए अभी कोई विशेष योजना नहीं है। यह संक्रमण का समय आत्मविश्लेषण करने का है। आपके अंदर क्या है, उसे महसूस करने का है।