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गुस्‍से में कहे गए ये शब्‍द, आपके बच्‍चों में भर देते हैं नकारात्‍मकता, आप शब्‍द बदलिए और जिंदगी बदलते देखिए

स्वच्छ भाषा अभियान से समाज में सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है। मेरठ से शुरू अभियान 13 राज्यों में फैला 250 से ज्यादा प्रशिक्षक तैयार।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 15 Dec 2019 01:54 PM (IST)Updated: Sun, 15 Dec 2019 02:05 PM (IST)
गुस्‍से में कहे गए ये शब्‍द, आपके बच्‍चों में भर देते हैं नकारात्‍मकता, आप शब्‍द बदलिए और जिंदगी बदलते देखिए
गुस्‍से में कहे गए ये शब्‍द, आपके बच्‍चों में भर देते हैं नकारात्‍मकता, आप शब्‍द बदलिए और जिंदगी बदलते देखिए

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। मूर्ख हो क्या? बदमाश कहीं के..। शैतान..। तुम्हारा दिमाग ठीक कर दूंगी...। बच्चों के साथ इस तरह का संवाद गाहे-बगाहे हर घर में सुनने को मिल जाएगा। गुस्सा आने पर अभिभावक ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बच्चों को अनुशासित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन वे अनजाने में बच्चों के समूचे व्यक्तित्व और रवैये में नकारात्मकता भर रहे होते हैं। सुभाषी फाउंडेशन इन्हीं गलतियों को अभिभावकों-शिक्षकों को बताकर स्वच्छ भाषा अभियान की अलख जगा रहा है।

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स्‍वच्‍छ भाषा सकारात्‍मक ऊर्जा

इनका कहना है कि स्वच्छ भाषा से बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह उसकी सोच, विचार, व्यक्तित्व को निखारती है। पिछले प्रयासों में इसकी सफलता भी दिखी है। मेरठ निवासी नेहा गुप्ता, जिन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की है, कहती हैं, मेरे मन में आया कि स्वच्छता की बात तब तक अधूरी है, जब तक कि आचार-विचार-व्यवहार की गंदगी को दूर नहीं कर लिया जाए। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति होती है। इसी सोच के साथ अक्टूबर 2017 में स्वच्छ भाषा अभियान की नींव रखी, जो आज 13 राज्यों तक फैली है। संस्था का तर्क है कि ध्वनि ऊर्जा बहुत देर तक वातावरण में बनी रहती है। यही वजह है कि भाव सकारात्मक होते हुए भी भाषा गलत हुई तो यह प्रतिकूल प्रभाव छोड़ जाती है। शिक्षकों के लिए इनका कहना है कि आप बच्चों को यह न कहें कि योर हैंडराइटिंग इज पूअर या तुम्हारी लिखावट खराब है। कहें कि अपनी लिखावट को और बेहतर बनाएं।

दुलार में भी न कहें शैतान

दुलार से भी बेटे को शैतान कहने की बजाए उसे तेज, ऊर्जावान या एक्टिव कहें। स्वच्छ भाषा के इस्तेमाल से लड़ाई-झगड़े भी कम होंगे और हमारे विचार स्वस्थ और स्वच्छ होंगे, जो बेहतर कल का आधार बनेंगे। नेहा ने बताया कि जापानी शोधकर्ता डॉ. मुसारो इमैटो के शोध से निकले निष्कर्ष ही स्वच्छ भाषा अभियान का वैज्ञानिक तर्क हैं। जापानी शोधकर्ता ने इस शोध में समझाया कि हमारे शब्दों व संगीत का पानी पर क्या प्रभाव पड़ता है। निष्कर्ष में मिला कि जब अच्छे शब्द कहे गए और मधुर संगीत बजाया गया तो पानी के अणुओं ने सुंदर और सकारात्मक (क्रिस्टल) छवि बनाई, जबकि कठोर, अपशब्द या कर्कश आवाज से अणुओं की क्रिस्टल छवि नकारात्मक दिखी। ऐसे में स्वच्छ भाषा का इस्तेमाल हमारे शरीर, दिमाग पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा। यही तर्क हमारे शास्त्र-धर्मग्रंथों में भी है।

40 मिनट की है ट्रेनिंग

स्वच्छ भाषा की ट्रेनिंग 40 मिनट की होती है। प्रत्येक शिक्षक कम से कम 50 छात्रों को प्रशिक्षित करते हैं, अधिकांश प्रशिक्षण शिक्षकों को ही दिया जाता है। सामाजिक संगठनों, कालोनियों में भी अभियान चलाया जाता है। आमने-सामने के प्रशिक्षण के साथ टेलीफोनिक ट्रेनिंग भी शुरू कर दी गई है। यह सब कुछ पूरी तरह निश्शुल्क। अब तक 250 से अधिक शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। 100 से अधिक कार्यशालाएं भी हो गई हैं। अकेले मेरठ में ही 70 प्रशिक्षक तैयार हो चुके हैं। मेरठ के साथ ही यह अभियान अब उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ तक पहुंच चुका है। कई मंचों पर संस्था को सराहना भी मिल चुकी है। 


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