जल संरक्षण की नजीर पेश कर रहे गंगा किनारे बसे ये ग्रामीण
मेरठ के परीक्षितगढ़ क्षेत्र में ग्रामीण घरों से निकलने वाला गंदा पानी नहीं बहाते, एकत्र कर गृह वाटिका में करते हैं प्रयोग
By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 09:00 AM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 09:00 AM (IST)
मेरठ (नवनीत शर्मा)। पानी की उपलब्धता जितनी बड़ी समस्या है, जल का संरक्षण उससे भी बड़ी चुनौती। नमामि गंगे अभियान के तहत केंद्र सरकार हजारों करोड़ रुपये खर्च कर चुकी, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात हैं। ऐसे में मेरठ के परीक्षितगढ़ क्षेत्र में गंगा किनारे बसे गांवों के लोगों ने जल संरक्षण की शुद्ध ग्राम्य शैली को जन्म देकर एक नजीर पेश की है। दरअसल, यह तकनीक मां गंगा के सम्मान की दृढ़ता का ही नतीजा है। ग्रामीण नहीं चाहते कि घरों से निकलने वाला गंदा पानी गंगा के आंचल को मैला करे। इसलिए लोग घरों से निकलने वाले पानी को बहाने की जगह गड्ढों में एकत्र कर फसलों में प्रयोग करते हैं। यही वजह है कि इस गांव में नालियां नहीं है।
तीन गांवों का जल प्रबंधन
महाभारतकालीन कस्बा किला परीक्षितगढ़ क्षेत्र में गंगा किनारे बसे तीन गांवों में जल प्रबंधन की अनूठी शैली उन सबको आईना दिखाती है, जो पानी का मोल नहीं समझते। मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ ब्लॉक मुख्यालय से 20 किमी दूर गंगा किनारे बसा डेढ़ हजार की आबादी वाला गांव है सिकंदरपुर। हर वर्ष बरसात में यहां बाढ़ आती है। घरों में मौसमी सब्जियों और फलदार पौधों की छोटी वाटिका बना रखी हैं। आंगन में बने गड्ढों में एकत्र पानी से ही वाटिका को सींचा जाता है। सिकंदरपुर के साथ शिवपुरी और कालीनगर में भी यही पद्धति अपनाई जा रही है।
चौंक पड़ते हैं लोग
चूंकि, पानी घरों से बाहर नहीं निकलता, इसलिए इन गांवों में कभी नालियां ही नहीं बनीं। ग्रामीण बताते हैं, पहले गांवों में तालाब नहीं था। गंदा पानी गंगा में जाते देख नहीं सकते थे। इसीलिए खुद जल संरक्षण का विकल्प तलाश लिया। साथ ही घर के आंगन में पूर्ण जैविक विधि से तैयार सब्जियां ग्रामीण खुद भी प्रयोग करते हैं और पड़ोसी गांव के लोग भी इन्हें खरीदने आते हैं। इससे उन्हें आय का भी जरिया मिल गया है। इन गांवों के जल प्रबंधन के बारे में सुना है। ग्रामीण घरों के गंदे पानी का सदुपयोग फल-सब्जी उगाने में कर रहे हैं। यह पहल हर किसी के लिए भी प्रेरणादायक हो सकती है।
-अनिल ढींगरा, जिलाधिकारी
गांव में किसी घर से गंदा पानी बाहर नहीं निकलता, जिसके चलते नाली निर्माण की जरूरत ही नहीं पड़ी। रास्ते में जलभराव को लेकर होने वाले झगड़ों से भी ये गांव दूर हैं।
-सुषमा देवी, ग्राम प्रधान, सिकंदरपुर
तीन गांवों का जल प्रबंधन
महाभारतकालीन कस्बा किला परीक्षितगढ़ क्षेत्र में गंगा किनारे बसे तीन गांवों में जल प्रबंधन की अनूठी शैली उन सबको आईना दिखाती है, जो पानी का मोल नहीं समझते। मेरठ जिले के परीक्षितगढ़ ब्लॉक मुख्यालय से 20 किमी दूर गंगा किनारे बसा डेढ़ हजार की आबादी वाला गांव है सिकंदरपुर। हर वर्ष बरसात में यहां बाढ़ आती है। घरों में मौसमी सब्जियों और फलदार पौधों की छोटी वाटिका बना रखी हैं। आंगन में बने गड्ढों में एकत्र पानी से ही वाटिका को सींचा जाता है। सिकंदरपुर के साथ शिवपुरी और कालीनगर में भी यही पद्धति अपनाई जा रही है।
चौंक पड़ते हैं लोग
चूंकि, पानी घरों से बाहर नहीं निकलता, इसलिए इन गांवों में कभी नालियां ही नहीं बनीं। ग्रामीण बताते हैं, पहले गांवों में तालाब नहीं था। गंदा पानी गंगा में जाते देख नहीं सकते थे। इसीलिए खुद जल संरक्षण का विकल्प तलाश लिया। साथ ही घर के आंगन में पूर्ण जैविक विधि से तैयार सब्जियां ग्रामीण खुद भी प्रयोग करते हैं और पड़ोसी गांव के लोग भी इन्हें खरीदने आते हैं। इससे उन्हें आय का भी जरिया मिल गया है। इन गांवों के जल प्रबंधन के बारे में सुना है। ग्रामीण घरों के गंदे पानी का सदुपयोग फल-सब्जी उगाने में कर रहे हैं। यह पहल हर किसी के लिए भी प्रेरणादायक हो सकती है।
-अनिल ढींगरा, जिलाधिकारी
गांव में किसी घर से गंदा पानी बाहर नहीं निकलता, जिसके चलते नाली निर्माण की जरूरत ही नहीं पड़ी। रास्ते में जलभराव को लेकर होने वाले झगड़ों से भी ये गांव दूर हैं।
-सुषमा देवी, ग्राम प्रधान, सिकंदरपुर
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