वोटरों के मिजाज से नहीं खुल रहा हार-जीत का राज
कैराना उपचुनाव में हार-जीत की स्थिति स्पष्ट नहीं, वोटरों का मिजाज नहीं भांप रहे नेता। अखिलेश व मायावती नहीं आए, रालोद के बूते छोड़ा चुनाव, सपा की पूरी फौज जुटी।
मेरठ। (लोकेश पंडित) कैराना उपचुनाव में शह-मात को भाजपा-महागठबंधन ने सभी दांव चल दिए हैं। चुनाव में खास बात यह है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती ने कैराना आने की जहमत नहीं उठाई। चुनाव का सारा दारोमदार रालोद के बूते ही छोड़ दिया। हालांकि सपा की फौज चुनाव प्रचार में जुटी है। उधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शामली में सभा के दौरान चुनाव को धु्रवीकरण के मोड़ पर लाने का प्रयास जरूर किया। सभी दलों के करीब 15 हजार कार्यकर्ता और नेताओं ने चुनाव प्रचार में गर्माहट पैदा कर रखी है। फिलवक्त सीन यह है कि मतदाताओं का मिजाज परखने में दोनों ही दल अब तक नाकाम रहे हैं। इसके चलते भाजपा के दिग्गज जीत का दावा करने में सकुचा रहे हैं। इस सवाल का जवाब महागठबंधन के नेताओं के पास भी नहीं है।
कैराना उपचुनाव के लिए 28 मई को मतदान होना है। फूलपुर व गोरखपुर में झटका खा चुकी भाजपा कैराना से मिशन-2019 की ऊर्जा हासिल कर संदेश देना चाहती है। संघ के रणनीतिकारों के अलावा भाजपा के मौजूदा-पूर्व पदाधिकारी, मंत्री, सांसद, विधायक, नेता कैराना में डेरा डाले हैं। ओबीसी के अलावा ब्राह्मण, वैश्य, गुर्जर, राजपूत वोट बैंक को लेकर भाजपा आशान्वित नजर आ रही है। इससे इतर भाजपा दलित-जाट मतदाताओं को अपना बनाए रखने के लिए दंगा, पलायन और विकास के मुद्दों को उछाल रही है। पीएम मोदी मतदान से एक दिन पूर्व 27 मई (आज) बागपत में क्या कहेंगे, यह चुनाव परिणाम की दिशा तय कर सकता है। भाजपा के रणनीतिकारों को मतदान के दिन ध्रुवीकरण की आस है। हर दरवाजा खटखटा रहे बाप-बेटा
महागठबंधन ने कैराना में बड़ा प्रयोग किया है। सपा विधायक नाहिद हसन व बसपा की सांसद रहीं उनकी मां तबस्सुम बेगम को रालोद के ¨सबल पर चुनाव में उतारा गया है। 2014 व 2017 में अपना सब कुछ गवां चुके रालोद सुप्रीमो यहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। अजित सिंह और जयंत चौधरी अस्तित्व बचाने की मनुहार भी अपने वोटरों से कर रहे हैं। कभी वातानुकूलित कमरे से ही अपना पूरा चुनाव लड़ने वाले छोटे चौधरी आज कैराना क्षेत्र के गांव-मोहल्लों में हर दरवाजा खटखटा रहे हैं। दंगे के दौरान भाजपा की भूमिका और फिलवक्त अजित सिंह की मनुहार को लेकर जाट मतदाता कशमकश में है। इस मद्दे पर खाप भी भाजपा व रालोद के बीच बंटती नजर आ रही हैं। पिछले चुनाव में जाटों की एकमुश्त वोट हासिल करने वाली भाजपा बदले समीकरण से फिक्रमंद है। सपा केवल मुस्लिम मतदाताओं, बसपा दलित व रालोद जाट क्षेत्रों को टारगेट कर प्रचार कर रही हैं।