लाल किले पर फहराया था नत्थे सिंह के हाथों से बना पहला तिरंगा
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या.। सुभाष नगर की तंग गली में बामुश्किल 45 गज का मकान। कमरे में सिलाई मशीन की आवाज गूंज रही है लेकिन कान पर फोन लगाए रमेश चंद तिरंगे तैयार करने में मगन हैं।
मेरठ, जेएनएन : स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या.। सुभाष नगर की तंग गली में बामुश्किल 45 गज का मकान। कमरे में सिलाई मशीन की आवाज गूंज रही है लेकिन कान पर फोन लगाए रमेश चंद तिरंगे तैयार करने में मगन हैं। किसी का फोन आता है तो बीच-बीच में बात भी कर लेते हैं लेकिन मशीन अपनी रफ्तार में है। पुराने शहर के इस ठिकाने से शायद ही कोई अनजान न हो लेकिन आजादी के बाद यहां हुई एक खास कारीगरी से कम ही लोग वाकिफ होंगे। यह वही जगह है, जहां से राष्ट्रीय ध्वज तैयार होकर सबसे पहले दिल्ली के लाल किले पर फहराया गया था। इसे बनाया था रमेश चंद के पिता नत्थे सिंह ने। नत्थे सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन हर तिरंगे में उनके हुनर का अक्स नजर आता है।
बीस मशीनों पर पूरी रात चला था काम
यादों के झरोखों में झांकते सुभाष नगर की गली नंबर 11 निवासी रमेश चंद बताते हैं कि तिरंगे बनाना उनका पुश्तैनी पेशा है। आजादी के बाद संसद से प्रस्ताव पास होने पर गांधी आश्रम के जरिए तिरंगे सिलने का डिजाइन सैंपल उनके पिता स्व. नत्थे सिंह को भेजा गया था। उनके ताऊ लेखराज सिंह को गांधी आश्रम से तिरंगे तैयार करने का ठेका मिला था। पूरी रात 20 मशीनों पर काम पूरा कर रात में ही पहली खेप दिल्ली भेज दी गई। लाल किले पर फहराया गया पहला तिरंगा उनके पिताजी ने ही बनाया था।
तिरंगा बनाने में महसूस करते थे गौरव
रमेश चंद बताते हैं कि उनके पिता राष्ट्रीय ध्वज बनाने में खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे। दो माह पूर्व 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। रमेश के परिवार में पत्नी मोनिका और दो बेटियां मुस्कान व रिया हैं।
मानक के अनुसार तैयार होते हैं राष्ट्रीय ध्वज
रमेश चंद बताते हैं, राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए आकार का अनुपात, सिलाई, मोड़ आदि के मानक निर्धारित हैं। बकौल रमेश चंद, बाजार में सिंथेटिक तिरंगे भी बिकते हैं, लेकिन अधिकतर में मानकों का पूर्ण पालन नहीं किया जाता। बताते हैं कि स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के आसपास काम काफी बढ़ जाता है। कश्मीर में धारा 370 व 35ए हटाने के बाद तिरंगे की डिमांड तेजी से बढ़ी है। गांधी आश्रम से मिलने वाले ठेके के अनुसार रमेश चंद व उससे पहले उनके पिता नत्थे सिंह ही राष्ट्रीय ध्वज तैयार करते थे।
-संजीव कुमार सिंह, व्यवस्थापक गांधी आश्रम